Father of Hindi Theater शिमल़ा के मनोहर, हर रोल में माहिर
विनोद भावुक/ शिमला
Father of Hindi Theater के बारे में जिक्र हो तो शिमला के मनोहर सिंह की याद ताज़ा हवा के झोंके की आती है। पहाड़ के उस कलाकार ने अपने अभिनय की ऐसी अमिट छाप छोड़ी कि उसके न होने पर भी आज दुनिया उसके हुनर की कायल है।
कला के प्रति दिवानगी के कारण सरकारी नौकरी छोडक़र अभिनय की ओर रुख करने वाले मनोहर सिंह ने थियेटर से लेकर फिल्म व टीवी इंडस्ट्री में दमदार अभिनय कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। रंगमंच के दीवाने उसे Father of Hindi Theater के नाम से जानते हैं।
बेशक, फेफड़ों के कैंसर से 64 वर्ष की उम्र में दिल्ली के अपोलो अस्पताल में 14 नवम्बर 2002 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनके अभिनय के किस्से आज भी खूब चर्चित हैं।
सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के ड्रामा इंस्पेक्टर
शिमला जिले के क्वारा (जुनगा) से संबंध रखने वाले रंगमंच के दीवाने Father of Hindi Theater मनोहर सिंह थियेटर कला में निपुण थे। 12 अप्रैल 1942 को जन्मे मनोहर सिंह में बचपन से ही कुछ नया करने का जज्बा रहता था।
साल 1962 में वे सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में ड्रामा इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए। फिर साल 1968 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा नई दिल्ली में नियुक्ति होने पर उन्होंने सरकारी नौकरी छोड दी।
हिमाचली थियेटर में महारत
1968 से 1983 के बीच Father of Hindi Theater मनोहर सिंह ने भारतीय थियेटर व हिमाचली थियेटर में विश्वभर में ख्याति प्राप्त की। उन्होंने देश और विदेश में अपार प्रसिद्धि हासिल की। इसी दौरान उन्हें लंदन स्थित रॉयल अकादमी फॉर आर्ट्स से स्कालरशिप मिली।
हिंदी फिल्मों में अभिनय की छाप
Father of Hindi Theater मनोहर सिंह ने कई फिल्मों में अभिनय किया है, जो कि उस समय काफी चर्चित रहीं। उन्होंने किस्सा कुर्सी का, डैडी, पार्टी, दामुल, रुदाली, मैं आजाद हूं तथा तिरंगा फिल्मों में जो जोरदार अभिनय किया, वह वास्तव में ही सराहनीय था।
तुगलक से बने Father of Hindi Theater
दिल्ली स्थित पुराना किला में इब्राहिम अल्काजी के निर्देशन में तुगलक नामक नाटक में अभिनय करने के बाद इन्हें काफी प्रसिद्वि मिली और उन्हें Father of Hindi Theater की उपाधि दी गई। साल 1983 में हिमाचल सरकार ने उन्हें उनकी अभिनय प्रतिभा के लिए राज्य सम्मान से सम्मानित किया।
नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के स्टूडेंट
Father of Hindi Theater मनोहर सिंह नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के स्टूडेंट रहे। उस दौरान ही उन्होंने थियेटर में अपनी पहचान क़ायम कर ली थी। उनको मशहूर नाटक तुग़लक़ में उनकी भूमिका के लिए आज भी याद किया जाता है।
उनके अन्य लोकप्रिय नाटक थे, मोहन राकेश का आधे-अधूरे और संध्या छाया, किंग लियर, मुद्रा राक्षस, ऑथेलो और मदर करेज थे।
सीरियलों में एक्टिंग की छाप
नब्बे के दशक में Father of Hindi Theater मनोहर सिंह का छोटे पर्दे की ओर रुझान हुआ और उन्होंने मुल्ला नसरुद्दीन और राज से स्वराज में अपनी छाप छोड़ी। इन सीरियलों के निर्माता फ़ैसल अलकाज़ी के मुताबिक वह हर पक्ष में रुचि लेते थे। यहां तक कि परिंधानो में पूरा उत्साह रहता था।
फिल्मों में भी दिखाई प्रतिभा
कुछ टीवी सीरियल जिनके लिए Father of Hindi Theater मनोहर सिंह को हमेशा याद किया जाएगा, वे हैं- दर्द, गुमराह, पल- छिन, राग दरबारी और महायज्ञ।
फि़ल्मों में उनका प्रवेश काफ़ी देर में हुआ, लेकिन उन्होंने कुछ अविस्मरणीय भूमिकाएं कीं। जैसे, किस्सा कुर्सी का, सुधीर मिश्र की यह वह मंज़िल नहीं, गोविंद निहलानी की पार्टी, प्रकाश झा की दामुल, रोमेश शर्मा की न्यू डेलही टाइम्स और विधु विनोद चोपड़ा की 1942 ए लव स्टोरी प्रमुख हैं।
Father of Hindi Theater, कामयाबी के मील पत्थर
Father of Hindi Theater मनोहर सिंह ने साल 1968 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा नई दिल्ली में प्रवेश। उन्हें साल 1968 से 1983 भारतीय थियेटर व हिमाचली थियेटर में ख्याति हासिल हुई।
इसी दौरान उन्हें लंदन स्थित रॉयल अकादमी फॉर आर्ट्स से स्कालरशिप मिली।
उन्हें साल 1982 में संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली और साल 1983 में हिमाचल सरकार के राज्य सम्मान से सम्मानित किया गया।
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