भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई, सरकाघाट से मंडी पर चढ़ाई, साधारण युवक शोभा राम के नेतृत्व में असाधारण सत्याग्रह की प्रेरकगाथा

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई, सरकाघाट से मंडी पर चढ़ाई, साधारण युवक शोभा राम के नेतृत्व में असाधारण सत्याग्रह की प्रेरकगाथा
रितेश चौहान / सरकाघाट
एक सदी से भी पहले पहले सरकाघाट की क्रांतिकारी जमीन से भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा हुआ जन आंदोलन आज भी मंडी के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। मंडी रियासत में हुआ यह आंदोलन, सत्य, अहिंसा और संगठन की ऐसी पहली मिसाल है, जिसने आगे चलकर भारत में महात्मा गांधी के नेतृत्व वाले सत्याग्रह आंदोलन की नींव तैयार की। साल 1909 का यह शांतिपूर्ण आंदोलन एक चेतावनी थी कि जब प्रजा संगठित हो जाए, तो तख्त हिलते हैं और ताज झुक जाते हैं।
‘राज भवानी सेना रा, हुक्म शोभा राम रा’ साल 1909 की मंडी रियासत में यह कहावत गूंजने लगी थी। एक साधारण नवयुवक के असाधारण साहस ने सत्ता की चूलें हिला दी। सरकाघाट के गधियाणी गांव के शोभा राम भ्रष्टाचार के खिलाफ शांति की मशाल लेकर खड़ा हुआ और रियासत की जनता का मसीहा बन गया। इस जन आंदोलन का नेतृत्व करने वाला एक साधारण नवयुवक शोभा राम न्याय, शौर्य और सत्याग्रह का असाधारण प्रतीक है।
आंखों में आंसू और सीने में ज्वाला
मंडी के राजा भवानी सेन के वजीर जीवानन्द पाधा और उसके भाई-बंधु लोगों से जबरन वसूली करने और किसानों से अनाज सस्ता खरीदकर अकाल के समय दोगुने दाम में बेचने जैसे कृत्यों में संलिप्त थे।
वजीर और उसकी टोली के कारनामों को राजा तक पहुंचा कर भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के लिए शोभा राम ने 572 नवयुवकों का दल बनाया। इस दल ने सरकाघाट से बल्ह, गुटकर होते हुए मंडी के पड्डल मैदान में डेरा डाला। धीरे-धीरे जनसैलाब बढ़ने लगा और देखते ही देखते दो हजार से भी अधिक लोगों का जनांदोलन बन गया।
राजा को अंग्रेजी सरकार से मांगनी पड़ी मदद
इस जन ज्वार से भयभीत होकर मंडी के राजा ने अंग्रेजी सरकार से मदद मांगी। राजा की मदद के लिए अंग्रेज अधिकारी मंडी पहुंचे। ब्रिटिश अफसरों ने पाया कि यह कोई विद्रोह नहीं, बल्कि शांतिपूर्ण सत्याग्रह था। आठ दिन तक राजा का प्रशासन नाममात्र का रह गया। तहसीलदार, नेगी और कोतवाल तक बंदी बना लिए गए। शोभा राम की मर्यादा, अनुशासन और उद्देश्य ने जनता और कर्मचारी—दोनों का विश्वास जीत लिया।
शोभा राम का आंदोलन राजा के विरुद्ध नहीं था। आठवें दिन राजा ने खुला दरबार लगाया, जिसमें छह हजार लोग उपस्थित हुए। राजा ने शोभा राम के शिकायत पर भ्रष्ट वजीर जीवानन्द पाधा को बर्खास्त कर दिया और नए वजीर व सलाहकार नियुक्त किए। यह जनता की जीत थी, शांति की शक्ति की जीत थी।
भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाया, जागीर और पद ठुकराया
राजा भवानी सेन ने शोभा राम को सुरक्षा सेना में नियुक्त करने और जागीर देने की पेशकश की, लेकिन इस स्वाभिमानी युवक ने सब कुछ ठुकरा दिया। शोभा राम राज दरबार में कोई पद नहीं चाहता था। वह तो सिर्फ आम लोगों के लिए न्याय चाहता था और भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाना चाहता था। वह अपने उद्देश्य में सफल रहा था।
‘हिस्ट्री ऑफ मंडी’ लिखने वाले लेखक मनमोहन सिंह ने शोभा राम से मुलाक़ात कर इस आंदोलन को लेकर उनके साथ हुए संवाद को पुस्तक में जगह दी। शोभा राम की कहानी सरकाघाट की मिट्टी से निकली एक प्रेरणा है, जिसे पहाड़ की नई नस्ल को जानना और समझना चाहिए।
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