First Interpreter to Dalai Lama: ठाकुर मंगल चंद

First Interpreter to Dalai Lama: ठाकुर मंगल चंद

विनोद भावुक/मनाली

भारत पहुँचने पर तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के First Interpreter to Dalai Lama (पहले आधिकारिक दुभाषिए) लाहौल के ठाकुर मंगल चंद बने थे।

बताया जाता है की तिब्बती संस्कृति और भाषा का उनका ज्ञान इतना अच्छा था कि जब दलाई लामा जब साल 1959 में भारत आए, तो ठाकुर मंगल चंद को उनके First Interpreter to Dalai Lama (पहले आधिकारिक दुभाषिए ) बनाया गया।

सन 1887 को लाहौल के वजीर परिवार में पैदा हुए ठाकुर मंगल चंद के पिता ठाकुर हरि चंद ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया था। वे तिब्बती, उर्दू, अंग्रेजी और हिंदी में धाराप्रवाह थे।

उन्होंने एक साहसिक यात्री के रूप में मानसरोवर, कैलाश, गरटोक, तकलाकोट और यारकंद सहित पूरे तिब्बत की यात्रा की थी। ठाकुर मंगल चंद ने साल 1962 में कर्नाटक में तिब्बतियों के पहले जत्थे के लिए उनकी बस्तियां स्थापित करने में भी बड़ी भूमिका अदा की। साल 1969 में उनका देहांत हो गया था।

First Interpreter to Dalai Lama: बहुआयामी प्रतिभा के धनी

सन 1887 को लाहौल के वजीर परिवार में पैदा हुए ठाकुर मंगल चंद के पिता ठाकुर हरि चंद ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया था। वे तिब्बती, उर्दू, अंग्रेजी और हिंदी में धाराप्रवाह थे। उन्होंने एक साहसिक यात्री के रूप में मानसरोवर, कैलाश, गरटोक, तकलाकोट और यारकंद सहित पूरे तिब्बत की यात्रा की थी। ठाकुर मंगल चंद ने साल 1962 में कर्नाटक में तिब्बतियों के पहले जत्थे के लिए उनकी बस्तियां स्थापित करने में भी बड़ी भूमिका अदा की। साल 1969 में उनका देहांत हो गया था।

First Interpreter to Dalai Lama ठाकुर मंगल चंद एक कुशल प्रशासक, विद्वान, खोजकर्ता, चित्रकार, फोटोग्राफर और तिब्बती चिकित्सा के विशेषज्ञ चिकित्सक होने के नाते एक प्रबुद्ध और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे।

तिब्बती चिकित्सा प्रणाली ‘सोया रिग्पा’ जिसे अब भारत सरकार ने आधिकारिक चिकित्सा प्रणाली के तौर पर मान्यता दे दी है, के बारे में उनका जबरदस्त ज्ञान किसी से पीछे नहीं था।

उन्होंने बड़ी संख्या में रोगियों का मुफ्त में इलाज किया। उनकी बनाई थंका पेंटिंग आज भी लाहौल में जेमूर गोम्पा की की दीवारों को सुशोभित करती हैं।

कई पुस्तकों में उल्लेख

ठाकुर मंगल चंद एक कुशल प्रशासक, विद्वान, खोजकर्ता, चित्रकार, फोटोग्राफर और तिब्बती चिकित्सा के विशेषज्ञ चिकित्सक होने के नाते एक प्रबुद्ध और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। तिब्बती चिकित्सा प्रणाली ‘सोया रिग्पा’ जिसे अब भारत सरकार ने आधिकारिक चिकित्सा प्रणाली के तौर पर मान्यता दे दी है, के बारे में उनका जबरदस्त ज्ञान किसी से पीछे नहीं था।

वह अपने भाई राय बहादुर अमर चंद के निधन के बाद और अपने भतीजे ठाकुर प्रताप चंद के वयस्क होने तक ठाकुर मंगल चंद लाहौल के वज़ीर यानी शासक रहे थे।

पंडित राहुल संस्कृतयन की पुस्तक ‘यात्रा के पन्ने’, निकोलस रोरिक की ‘शाम्बाला’, टायके आर की ‘इन क्वेस्ट ऑफ गेम इन कुल्लू, एपी हरकोर्ट कीकुल्लू लाहौल और स्पीति का हिमालयी जिला’, जीडी खोसला की ‘द हिमालयन सर्किट’ और फ्रांके की ‘एंटीक ऑफ वेस्टर्न तिब्बत’ सहित और कई अन्य पुस्तकों में उनका और उनके कार्यों का उल्लेख किया गया है।

हिमालयन बुद्धिस्ट सोसायटी मनाली की स्थापना

हिमालयन बुद्धिस्ट सोसायटी मनाली की स्थापना वर्ष 1946 में ठाकुर मंगल चंद के प्रयासों से हुई। उन्होंने सार्वभौमिक शांति और सभी संवेदनशील प्राणियों की भलाई के लिए इस सोसायटी की स्थापना की थी। इस सोसायटी के लिए भूमि प्राप्त करने में उन्होंने महावपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके अनुरोध पर ही साल 1960 में देश के देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने नियांगमाप गोम्पा के लिए सोसायटी को जमीन प्रदान की थी।

हिमालयन बुद्धिस्ट सोसायटी मनाली की स्थापना वर्ष 1946 में First Interpreter to Dalai Lama ठाकुर मंगल चंद के प्रयासों से हुई। उन्होंने सार्वभौमिक शांति और सभी संवेदनशील प्राणियों की भलाई के लिए इस सोसायटी की स्थापना की थी।

इस सोसायटी के लिए भूमि प्राप्त करने में उन्होंने महावपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके अनुरोध पर ही साल 1960 में देश के देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने नियांगमाप गोम्पा के लिए सोसायटी को जमीन प्रदान की थी।

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