लोककथा : भेड़पालक दोर्जे की बांसुरी की धुन पर मोहित हो गई चंद्रताल की राजकुमारी

लोककथा : भेड़पालक दोर्जे की बांसुरी की धुन पर मोहित हो गई चंद्रताल की राजकुमारी
लोककथा : भेड़पालक दोर्जे की बांसुरी की धुन पर मोहित हो गई चंद्रताल की राजकुमारी
हिमाचल बिजनेस/ शिमला
समुद्रतल से 4,300 मीटर की ऊँचाई पर बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच, एक झील चमकती है—चंद्रताल। नीले आसमान का आईना, जिसकी लहरों में सदियों से एक रहस्य छिपा है। यहाँ के बुजुर्ग कहते हैं, ‘यह झील सिर्फ पानी नहीं, यह कहानियों का घर है।‘इन्हीं कहानियों में सबसे प्रसिद्ध है हंसा गाँव के दोर्जे की कहानी।
दोर्जे, हंसा का एक सादा-सा युवक, गर्मियों में अपनी भेड़ों को चंद्रताल के किनारे चराने लाता था। दिनभर वह पहाड़ों में घूमता, और शाम को पथरीली ढलानों पर बैठकर बाँसुरी बजाता। कहते हैं, उसकी धुन में ऐसा जादू था कि बर्फीली हवा भी थमकर सुनती, और पानी की लहरें भी धीमी हो जातीं।
चंद्रताल झील से निकली राजकुमारी
एक शाम, जब सूरज पहाड़ों के पीछे डूब रहा था, झील का पानी हल्के-हल्के गोल-गोल घूमने लगा। लहरों से एक युवती निकली—श्वेत वस्त्र, चमकते गहने, और आँखों में जैसे आधा आसमान समाया हो।उसने मुस्कुराकर कहा, ‘मैं चंद्रताल की राजकुमारी हूँ। तुम्हारी बाँसुरी मुझे रोज़ यहाँ खींच लाती है।‘
उस दिन से, हर शाम वे मिलते। उनकी बातें, हँसी और मौन में भी गहरी समझ। फिर एक दिन राजकुमारी ने दोर्जे को पानी के नीचे अपने महल में बुलाया। सोने के स्तंभ, रंगीन बाग और झील की सतह से छनकर आती धूप का सुनहरा जाल। बस, एक शर्त थी—‘कभी इस रहस्य को किसी से मत बताना।‘
भाभी के ताने, टूट गया वचन
गर्मियाँ खत्म हुईं तो दोर्जे गाँव लौट आया। एक दिन उसकी भाभी ने हँसी-हँसी में ताना मारा—
‘तू मर्द है भी या नहीं? शादी-ब्याह के काबिल तो है नहीं!’ गुस्से में, दोर्जे ने सब कुछ उगल दिया—राजकुमारी, महल, और उनके बेटे तक का ज़िक्र। तब भाभी ने चुनौती दी, ‘अगर सच है तो इस बार उसे गाँव लेकर आ।‘
अगली गर्मियों में, दोर्जे बेचैन होकर चंद्रताल पहुँचा। हफ्ते गुजर गए, राजकुमारी नहीं आई। और फिर, एक ठंडी शाम, वह प्रकट हुई, लेकिन बिना मुस्कान, बिना शब्द। उसने अपने बेटे का हाथ दोर्जे में थमाया और झील में समा गई जैसे ही दोर्जे ने बेटे का हाथ थामा, उसका चेहरा कुरूप हो गया। मानो झील ने उसका सुख छीन लिया हो।
आज भी बाकी है कहानी
कहते हैं, दोर्जे का बेटा बड़ा होकर भेड़ें चराने लगा और आज भी उसके वंशज हंसा गाँव के ऊपरी हिस्से में रहते हैं। गाँव के बुजुर्ग आगाह करते हैं, ‘चंद्रताल की राजकुमारी का राज खोलोगे, तो खुशियाँ खो दोगे।‘
कुछ स्थानीय गाइड तो यह भी मानते हैं कि झील की बदलती रंगत नीले से हरे, और कभी-कभी दूधिया सफेद रंग दरअसल राजकुमारी की मनःस्थिति को दर्शाती है। आज भी यह कहानी इस क़बायली घाटी में सुनी- सुनाई जाती है।
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Jyoti maurya

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