Freedom Fighter of Himachal Pradesh: पत्रकार पंडित इंद्रपाल 

Freedom Fighter of Himachal Pradesh: पत्रकार पंडित इंद्रपाल 

विनोद भावुक/ नादौन

Freedom Fighter of Himachal Pradesh पत्रकार पंडित इंद्रपाल के जीवन के बारे में तो आपने पढ़ा होगा, लेकिन लाहौर ओर रावलंपिंडी में पत्रकार के तौर पर अखबारों के अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने के उनके जीवन के प्रसंगों से शायद ही आप बाकिफ हों। स्वतंत्रता संग्राम में कूदने से पहले पंडित इंद्रपाल ने अखबार की दुनिया में प्रबंधकों के अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी ओर पीड़ित पत्रकारों को उनके हक दिलवाने में कामयाब हुए। इन्द्रपाल के एक पुराने साथी Freedom Fighter of Himachal Pradesh रूपचन्द पंडित अपने संस्मणों में लिखते हैं कि पंडित इंद्रदत्त अखबार के दिनों से ही अन्याय के खिलाफ मुखर हो गए बोलने वाले पत्रकार थे और उन्होंने इसके लिए कड़ा संघर्ष किया। उन्होंने अखबार प्रबंधनों को पत्रकारों का हक देने के लिए मजबूर किया। 1938 में Freedom Fighter of Himachal Pradesh पंडित इन्द्रपाल जेल से रिहा हुए और उन्होंने वीर प्रताप के संपादकीय स्टाफ में कार्य करना आरम्भ कर दिया। पाकिस्तान बन जाने पर वे लाहौर छोड़कर अपने गांव नादौन लौटे। जीवन के आखिरी दौर तक वे लेखन में जूते रहे।  नादौन लौट कर उन्होंने एक पुस्तक का प्रकाशन किया।

नौकर बने, दुकान पर बर्तन मांजे फिर पत्रकार

1938 में Freedom Fighter of Himachal Pradesh पंडित इन्द्रपाल जेल से रिहा हुए और उन्होंने वीर प्रताप के संपादकीय स्टाफ में कार्य करना आरम्भ कर दिया। पाकिस्तान बन जाने पर वे लाहौर छोड़कर अपने गांव नादौन लौटे। जीवन के आखिरी दौर तक वे लेखन में जूते रहे।  नादौन लौट कर उन्होंने एक पुस्तक का प्रकाशन किया।

नादौन के पंडित हरिराम के घर 5 अप्रैल 1905 को पैदा हुए इंद्रपाल बचपन से तीक्ष्ण बुद्धि के थे। उन्होंने मिडिल की परीक्षा देहरा गोपीपुर से पास कर स्कालरशिप हासिल की। कुछ दिन बनी और चौकी मनीयार के स्कूलों में अध्यापन का काम किया और फिर जा पहुंचे लाहौर। वहां घरेलू नौकर बन काम किया, दुकान पर बर्तन मांजे और बाद में मास्टर नन्द लाल कातिब के शागिर्द बन गए। Freedom Fighter of Himachal Pradesh रूपचन्द पंडित लिखते हैं कि लाहौर में कातिबी (लीथो प्रेस पर छपने के लिए एक विशेष कागज पर विशेष स्याही से लिखने का काम) सीखने के बाद इंद्रपाल अखबारों का काम करने लगे। बर्ष 1925 में सनातन धर्म सभा रावल॑पिंडी के उर्दू साप्ताहिक ‘सुदर्शन चक्र’ की किताबत करने राबलपिंडी पंहुच गए। कुछ समय वहां काम करने के बाद वे रावलपिंडी से वापस लाहौर आकर सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा के उर्दू दैनिक ‘भीष्म’ में नौकर हो गए। यहां उन्होंने कातिबों की सभा का झण्डा बुलंद किया और प्रबन्धकों ने आशिंक तौर पर कुछ दे दिला कर पत्रकारों से पीछा छुड़ाया।

Freedom Fighter of Himachal Pradesh: अखबार प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा

उन दिनों उर्दू अखबारों में कातिबों की दशा दयनिय थी। संपादकों  की खुशामद करने वाले कातिब तो बहुत पैसा कमा लेते थे,परन्तु स्वाभिमान रखने वाले कातिबों की आय बहुत कम बैठती थी। इससे आहत होकर Freedom Fighter of Himachal Pradesh पंडित इंदपाल ने भीष्म अखबार के कातिबों की एक यूनियन बनाई और प्रबंधकों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। नतीजा यह हुआ कि अखबार प्रबंधन को कातिबों को उनकी लिखाई की योग्यता के अनुरूप आय तय करनी पड़ी।

अंग्रेजों ने दी काले पानी की सजा

बाद में Freedom Fighter of Himachal Pradesh इंद्रपाल देश को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए स्वतन्त्रता आंदोलन में शामिल हो गए। क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने पर इंद्रपाल को फांसी की सजा और आजीवन कारावास या काले पानी की सजा तथा 20 साल कैद की सजा मिली। हाईकोर्ट में उनकी अपील में फांसी की सजा माफ हुई। वर्ष 1938 में पंडित इन्द्रपाल जेल से रिहा कर दिए गए।1948 में जब महात्मा गांधी को गोली मार दी गई तो वे बेहोश हो गए। इरविन अस्पताल दिल्ली में एक महीना दाखिल रहने के बाद 13 अप्रैल 1948 को उनकी मृत्यु हो गई।

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