पेशे से कारोबारी गोपाल शर्मा ने साहित्यकार के तौर पर बनाई अपनी खास पहचान, हिन्दी काव्य संग्रह ‘अनुभूतियों का आइना’ तथा पहाड़ी काव्य संग्रह ‘बज्जे ढोल’ प्रकाशित

पेशे से कारोबारी गोपाल शर्मा ने साहित्यकार के तौर पर बनाई अपनी खास पहचान, हिन्दी काव्य संग्रह ‘अनुभूतियों का आइना’ तथा पहाड़ी काव्य संग्रह ‘बज्जे ढोल’ प्रकाशित
पेशे से कारोबारी गोपाल शर्मा ने साहित्यकार के तौर पर बनाई अपनी खास पहचान, हिन्दी काव्य संग्रह ‘अनुभूतियों का आइना’ तथा पहाड़ी काव्य संग्रह ‘बज्जे ढोल’ प्रकाशित
ज्योति मौर्या / धर्मशाला
जय मार्केट कांगड़ा के कारोबारी गोपाल शर्मा ने साहित्यकार के तौर पर अपनी खास पहचान बनाई है। वे हिंदी और पहाड़ी दोनों भाषाओं में सृजन करते हैं। उनके दो काव्य संग्रह, हिन्दी काव्य संग्रह ‘अनुभूतियों का आइना’ तथा पहाड़ी काव्य संग्रह ‘बज्जे ढोल’ प्रकाशित हो चुके हैं, जबकि कहानी संग्रह ‘भंवर में भोर’ प्रकाशनाधीन है।
गोपाल शर्मा को मशहूर लेखक स्वर्गीय संसार चंद प्रभाकर से पहाड़ी भाषा में लिखने की प्रेरणा तथा प्रोत्साहन मिला। उनकी कविताएं तथा कहानियां हिमप्रस्थ, गिरिराज, सोमसी तथा हिम भारती में प्रकाशित होती आ रही हैं। आकाशवाणी धर्मशाला तथा शिमला रेडियो स्टेशन से भी उनकी रचनाओं का प्रसारण होता आ रहा है।
पिता की बीमारी के चलते छोडनी पड़ी पढ़ाई
गोपाल शर्मा का बचपन कांगड़ा जिला की इंदौरा तहसील के बड़ुखर गांव में बीता। उनके पिता व्यवसायी थे और मिलनसार स्वभाव व समाजसेवा की भावना के कारण क्षेत्र में उनका बहुत सम्मान था। दसवीं पास करने के बाद गोपाल शर्मा ने साल 1976 में धर्मशाला कालेज में प्रैप मैडिकल में दाखिला लिया। उन दिनों डीएवी कॉलेज जालंधर का बड़ा नाम था। अगले साल उनके पिता ने उनका दाखिला प्री मेडिकल में वहां करवा दिया, पर नियति को कुछ और ही मंजूर था।
एक दिन उनके पिता अचानक बीमार हो गए। पिता की देखभाल तथा पारिवारिक व्यवसाय को संभालने के लिए उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। पढ़ने का शौक बाद में पत्राचार के माध्यम से पूरा किया और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला से हिंदी में स्नातकोत्तर कर पूरा किया।
पत्रकारिता में आजमाया हाथ
गोपाल शर्मा को स्कूल के दिनों से ही कविताएं पढ़ने का शौक था, जो कालेज तक आते- आते कविताएं लिखने तक पहुंच गया। उनकी कविताएं तथा कहानियां कालेज मैगजीन ने प्रकाशित हुई तो इससे उनका हौसला बढ़ा। कॉलेज छूटा तो गोपाल शर्मा ने गांव में आकर वहां की समस्याओं को उठाने के लिए पत्रकारिता शुरू कर दी।
हिमाचल केसरी साप्ताहिक से शुरू हुआ लिखने का सिलसिला दैनिक अजीत समाचार, दिव्य हिमाचल, तथा दैनिक जागरण तक पहुंच गया और उनके समसामयिक आलेख मुख्यधारा की अखबारों में यदा-कदा प्रकाशित होने लगे।
पंचायत के उप प्रधान, फिर कांगड़ा में कारोबार
छब्बीस साल की आयु में गोपाल शर्मा पंचायत के उपप्रधान चुने गए। अपने क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के लिए पत्रकारिता और राजनीतिक प्रभाव का उपयोग किया। पंचायत में पेयजल, यातायात तथा चिकित्सा संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए संघर्ष किया, जिसके साकारात्मक परिणाम मिले।
साल 1994 में व्यवसायिक आवश्यकताओं के कारण वे गांव से कांगड़ा स्थानांतरित हो गए। यहां उन्हें साहित्य सृजन के लिए बढ़िया वातावरण मिला। स्वर्गीय पीयूष गुलेरी, प्रत्यूष गुलेरी, गौतम शर्मा व्यथित, रमेश चन्द्र मस्ताना और द्विजेंद्र द्विज जैसे बड़े साहित्यकारों का स्नेह मिला और और उच्च बड़े साहित्यिक मंचों से रचनापाठ करने का अवसर मिला।
साहित्य में योगदान, कई संस्थाओं ने दिया सम्मान
गोपाल शर्मा बताते हैं कि बिना परिवार के सहयोग के साहित्य साधना के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। साहित्य सृजन में उन्हें पत्नी का पूरा सहयोग मिलता है। उनके बेटा और बहू दोनों मैनेजमेंट की नौकरी कर रहे हैं। उनकी बेटी पीएचडी कर आईएचबीटी पालमपुर में एक प्रोजेक्ट पर काम कर रही है तथा दामाद एमबीबीएस करके स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत हैं। घर के सभी सदस्य साहित्य के गंभीर पाठक हैं। अब तो उनकी पौत्री भी उनकी कविताओं का पाठ करने लगी हैं।
साल 2015 में गोपाल शर्मा को रीडर्स एंड रायटर्स सोसायटी ऑफ इंडिया, चंडीगढ़ ने साहित्य सृजन के लिए उन्हें सम्मानित किया है। साल 2017 में उन्हें आथर्ज गिल्ड तथा साल 2025 में अवाम संस्था जसौर ने भी उन्हें साहित्य में योगदान के लिए सम्मानित किया है।
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Jyoti maurya

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