Hindi Sinema ke Sabse Ameer lekhak बनने वाले शिमला नगरपालिका के एक क्लर्क
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कहानीकार और गीतकार के रूप में चमके राजिंदर कृष्ण
विनोद भावुक/शिमला
यह शिमला नगरपालिका के एक क्लर्क की Hindi Sinema ke Sabse Ameer lekhak बनने की प्रेरककथा है, जिसने चालीस के दशक में बॉम्बे की राह पकड़ी और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कहानीकार और गीतकार के रूप में चमके। हम बात कर रहे हैं राजिंदर कृष्ण की जिन्हें Hindi Sinema ke Sabse Ameer lekhak माना जाता था। महात्मा गांधी की हत्या के बाद, उनके लिखे एक गीत ‘सुनो- सुनो ऐ दुनियावालों, बापू की ये अमर कहानी’ की जबरदस्त कामयाबी ने उनकी शोहरत को घर- घर तक पहुंचा दिया था। राजिंदर कृष्ण के लिखे फिल्म ‘खानदान’ (1965) के गीत “तुम ही मेरे मंदिर, तुम ही मेरी पूजा” के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था।
मेहनती क्लर्क के रूप में पहचान
Hindi Sinema ke Sabse Ameer lekhak राजिंदर कृष्ण का जन्म 6 जून 1919 को गुजरात जिले (वर्तमान पाकिस्तान में) के जलालपुर जट्टां के एक दुग्गल परिवार में हुआ था। जब वह आठवीं कक्षा में पढ़ रहे थे तब कविता की ओर आकर्षित थे। अपने प्रारंभिक जीवन में उन्होंने शिमला में नगरपालिका कार्यालय में एक क्लर्क की नौकरी की, जहां उन्होंने 1942 तक कड़ी मेहनत की और उनकी गिनती नगरपालिका के मेहनती कर्मचारियों में होती थी।
शिमला में लगा पढने- लिखने का चस्का
शिमला में नौकरी करने की अवधि के दौरान, Hindi Sinema ke Sabse Ameer lekhak राजिंदर कृष्ण पूर्वी और पश्चिमी लेखकों को बड़े पैमाने पर पढ़ा और कई कविताएं लिखी। उन्होंने फ़िराक़ गोरखपुरी और अहसान दानिश की उर्दू शायरी के साथ-साथ पंत और निराला की हिंदी कविताओं को खूब पढ़ा। उन दिनों दिल्ली-पंजाब के अखबार कृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में विशेष परिशिष्ट निकलते थे और कविता प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती थीं, जिसमें उन्होंने नियमित रूप से भाग लेते थे।
शिमला से बॉम्बे की उड़ान
1940 के दशक के मध्य में, Hindi Sinema ke Sabse Ameer lekhak राजिंदर कृष्ण हिंदी फिल्म उद्योग में पटकथा लेखक बनने के लिए बॉम्बे (अब मुंबई) चले गए। उनकी लिखी पहली पटकथा ‘जनता’ (1947) थी। बतौर गीतकार उनकी पहली फिल्म जंजीर (1947) थी। उन्हें पहली बार मोतीलाल-सुरैया स्टारर ‘आज की रात’ (1948) की पटकथा और गीतों से पहचान मिली। महात्मा गांधी की हत्या के बाद, कृष्ण ने एक गीत ‘सुनो- सुनो ऐ दुनियावालों, बापू की ये अमर कहानी’ गीत लिखा। इस गीत को मोहम्मद रफ़ी ने गाया गया और हुस्नलाल भगतराम ने संगीतबद्ध किया। अपने दौर का यह एक बड़ा हिट गीत था।
गीतकार के तौर पर सफल
Hindi Sinema ke Sabse Ameer lekhak राजिंदर कृष्ण ने ‘बड़ी बहन’ (1949) और ‘लाहौर’ (1949) फिल्मों से गीतकार के रूप में भी सफलता का स्वाद चखा। उनका संगीतकार सी. रामचंद्र के साथ ख़ासा जुड़ाव रहा। उन्होंने शंकर-जयकिशन, रवि, राजेश रोशन, मदन मोहन, हेमंत कुमार, सज्जाद हुसैन, सचिन देव बर्मन, राहुल देव बर्मन, एस मोहिंदर, चित्रगुप्त, सलिल चौधरी और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल सहित कई अन्य संगीत निर्देशकों के साथ भी काम किया।
लो प्रोफाइल और सादगी पसंद
23 सितंबर 1987 को मुंबई में Hindi Sinema ke Sabse Ameer lekhak राजिंदर कृष्ण का निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद, एचएमवी ने एक एलपी निकाला, जिसमें उनके 12 गाने थे। राजिंदर कृष्ण लो प्रोफाइल रहने के लिए जाने जाते थे और अपने बारे में ज्यादा प्रचार नहीं करते थे। यही कारण है कि उनके लिखे गीतों को पसंद करने वाले बहुत से लोग उनके बारे में कम ही जानते थे।
घुड़दौड़ में लगा जैकपोट
Hindi Sinema ke Sabse Ameer lekhak राजिंदर कृष्ण को हिंदी सिनेमा का सबसे अमीर लेखक माना जाता था। कारण यह था कि उन्होंने घुड़दौड़ में 4,600,000 रुपए का जैकपोट जीत लिया था। सत्तर के दशक के अंत में इस राशि को एक बड़ी राशि माना जाता था। राजिंदर कृष्ण ने फिल्म खानदान (1965) के गीत “तुम ही मेरे मंदिर, तुम्हारी मेरी पूजा” के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता था।