हिप्पी युग : मलाणा क्रीम का खुमार, कंधे पर थैला- गले में गिटार, अमेरिका–यूरोप के युवक–युवतियों को मनाली से मुहब्बत बेशुमार

हिप्पी युग : मलाणा क्रीम का खुमार, कंधे पर थैला- गले में गिटार, अमेरिका–यूरोप के युवक–युवतियों को मनाली से मुहब्बत बेशुमार
विनोद भावुक। मनाली
1970 का दशक। उस समय जब भारत दुनिया के युवाओं के लिए एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक तीर्थस्थल बन रहा था, जिसके चलते मनाली वैश्विक नक्शे पर एक अनोखी पहचान बना रहा था। अमेरिका–यूरोप से आए हज़ारों युवक–युवतियां अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान के रास्ते होते हुए भारत पहुँच रहे थे। हिमालय की गोद में बसा मनाली और कसोल ‘हिप्पी ट्रेल’ का अंतिम पड़ाव होता था। ओल्ड मनाली, वशिष्ठ और सोलंग की घाटियाँ उस समय हिप्पियों के पसंदीदा ठिकाने थीं।
बीटल्स बैंड के जॉर्ज हैरिसन और बॉब डायलन कुल्लू और मनाली तक पहुँचे थे। विदेशी ट्रैवल राइटर्स टोनी व्हीलर और कैथरीन बर्ड ने लिखा है कि ओल्ड मनाली और वशिष्ठ गांव विदेशी संगीतकारों और लेखकों का ठिकाना बन चुके थे। मलाणा का नाम पहली बार विदेशी ट्रैवल मैगज़ीनों में आया। हाई टाइम्स मैगजीन के 1977 के एडिशन और गार्डियन (यूके) के लेखों में दर्ज है कि मलाणा से मिलने वाली मलाणा क्रीम यूरोप और अमेरिका तक मशहूर हो गई थी।
लंदन- इन्स्ताबुल- काबुल- दिल्ली- काठमांडू- मनाली
बीबीसी ट्रैवल्स ने अपने आलेख ‘द लॉन्ग स्ट्रेंज ट्रिप ऑफ द हैप्पी ट्रेल’ में जिक्र किया है कि
यूरोप और अमेरिका से हजारों युवा 1960–70 के दशक लंदन- इन्स्ताबुल- काबुल- दिल्ली- काठमांडू- मनाली तक यात्रा करते थे, जिसे ओवरलैंड हिप्पी ट्रेल कहा जाता था। मनाली की शांत घाटियाँ, बर्फ़ीली चोटियाँ और सस्ता रहन–सहन उन्हें आकर्षित करता था।
लोनली प्लानेट ने ‘मनाली हैप्पी ट्रेल नोट्स’ में लिखा है, ओल्ड मनाली और वशिष्ठ गाँव, ये दोनों जगहें हिप्पियों की सबसे पसंदीदा रहीं। यहाँ उन्होंने छोटे–छोटे कैफ़े, म्यूज़िक कल्चर, और “चिलिंग स्पॉट्स” बनाए। यही वह दौर था जब विदेशी पर्यटकों ने मनाली को “मिनी एम्स्टर्डैम ऑफ हिमालय कहना शुरू किया।
हशीश कैपिटल ऑफ़ द वर्ल्ड
द गार्डियन में 1970 के कंटेक्स्ट में 2010 में प्रकाशित एक आलेख के मुताबिक,1970 के दशक में मनाली ‘हशीश कैपिटल ऑफ़ द वर्ल्ड’ के रूप में बदनाम भी हुआ। मलाणा और कुल्लू घाटी की ‘मलाणा क्रीम’ विदेशी युवाओं में लोकप्रिय हो गई। बेशक इसने स्थानीय अर्थव्यवस्था को बदला, लेकिन साथ ही सामाजिक–कानूनी समस्याएं भी बढ़ गईं।
जेएनयू के साल 2016 के एक एकेडमिक रिसर्च पेपर ‘हैप्पी ट्रेल एंड इंडिया’ के अनुसार विदेशी पर्यटकों ने यहाँ कैफ़े कल्चर, हैंडलूम–हैंडीक्राफ्ट्स का बिज़नेस और योग–ध्यान पर्यटन को बढ़ावा दिया। आज भी ओल्ड मनाली और कसोल जैसे इलाकों में रेगे म्यूज़िक, ग्राफ़िटी और यूरोपियन स्टाइल कैफ़े उस दौर की झलक पेश करते हैं।
चाय- रोटी के लिए डॉलर में पेमेंट
1970–80 का समय ही था जब मनाली सिर्फ हिमाचल का गाँव नहीं रहा, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय पर्यटन नक़्शे पर दर्ज हुआ। इसके बाद मनाली की छवि ‘रोमांस’, बैकपैकिंग और साहसिक पर्यटन की बन गई। मनाली को मिनी एम्स्टर्डैम, गोआ ऑफ नॉर्थ इंडिया और बैकपैकरस पेरडाइस कहने की 1970 के उस हिप्पी दौर में मिलती हैं।
इतिहासकार बृजमोहन शर्मा अपनी पुस्तक कुल्लू ; हिमालयन अबोड द गोड्स’ में लिखते हैं कि 1970 के दशक में जब विदेशी बैकपैकर मनाली पहुँचे, तो वे चाय, रोटी और आलू की सब्ज़ी के लिए स्थानीय ढाबों पर डॉलर में भुगतान करते थे। यह स्थानीय लोगों के लिए चमत्कार जैसा था, क्योंकि उस दौर में एक डॉलर 7–8 रुपये के बराबर होता था।
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