History of Himachal Pradesh :  28 जनवरी को सोलन के दरबार हॉल की बैठक में हुआ था हिमाचल का नामकरण,  कभी शानो-शौकत की गवाह आज गुमनाम है भवन 

History of Himachal Pradesh :  28 जनवरी को सोलन के दरबार हॉल की बैठक में हुआ था हिमाचल का नामकरण,  कभी शानो-शौकत की गवाह आज गुमनाम है भवन 
विनोद भावुक/ सोलन 
History of Himachal Pradesh में 28 जनवरी 1948 का दिन प्रदेश के लिए ऐतिहासिक दिन है। इसी दिन हिम के आंचल में बसे इस राज्य का नामकरण हुआ था। यह इतिहास जिला सोलन के दरबार हॉल से जुड़ता है। इस ऐतिहासिक इमारत में आज लोक निर्माण विभाग सोलन का दफ्तर चल रहा है, लेकिन यह इमारत उस बैठक की गवाह है जिसमें हिमाचल प्रदेश का नामकरण किया हुआ। जानिए शानो शौकत की गवाह आज तक हेरिटेज में शुमार नहीं हो सकी इस गुमनाम इमारत में हुई बैठक में कैसे प्रदेश का हुआ था नामकरण।

आचार्य दिवाकर दत्त शर्मा ने सुझाया था नाम

History of Himachal Pradesh में 28 जनवरी 1948 का दिन प्रदेश के लिए ऐतिहासिक दिन है। इसी दिन हिम के आंचल में बसे इस राज्य का नामकरण हुआ था। यह इतिहास जिला सोलन के दरबार हॉल से जुड़ता है। इस ऐतिहासिक इमारत में आज लोक निर्माण विभाग सोलन का दफ्तर चल रहा है, लेकिन यह इमारत उस बैठक की गवाह है जिसमें हिमाचल प्रदेश का नामकरण किया हुआ।
उस समय बघाट रियासत के राजा दुर्गा सिंह संविधान सभा के चेयरमैन थे और उन्हें प्रजामंडल का प्रधान भी नियुक्त किया गया था। 28 जनवरी 1948 को उनकी अध्यक्षता में दरबार हॉल में हिमाचल प्रदेश के निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक हुई थी। History of Himachal Pradesh में दर्ज है कि इस बैठक में डॉ यशवंत सिंह परमारस्वतंत्रता सैनानी पदमदेव की उपस्तिथि को लेकर भी तरह-तरह की कहनियां है। कहा जाता है कि डॉ परमार वर्तमान उत्तराखंड राज्य का जौनसर-बाबर क्षेत्र का कुछ हिस्सा भी हिमाचल प्रदेश में मिलाना चाहते थे, लेकिन राजा दुर्गा सिंह इससे सहमत नहीं थे। साथ ही डॉ परमार प्रदेश का नाम हिमालयन एस्टेट रखना चाहते थे जबकि राजा दुर्गा सिंह की पसंद का नाम हिमाचल प्रदेश था। ये नाम संस्कृत के विद्वान आचार्य दिवाकर दत्त शर्मा ने सुझाया था जो राजा दुर्गा सिंह को बेहद भाया। अंत में राजा दुर्गा सिंह की चली और नए गठित राज्य का नाम हिमाचल प्रदेश ही रखा गया।

History of Himachal Pradesh : नाम पर ऐसे लगी मुहर

उस समय बघाट रियासत के राजा दुर्गा सिंह संविधान सभा के चेयरमैन थे और उन्हें प्रजामंडल का प्रधान भी नियुक्त किया गया था। 28 जनवरी 1948 को उनकी अध्यक्षता में दरबार हॉल में हिमाचल प्रदेश के निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक हुई थी। History of Himachal Pradesh में दर्ज है कि इस बैठक में डॉ यशवंत सिंह परमार व स्वतंत्रता सैनानी पदमदेव की उपस्तिथि को लेकर भी तरह-तरह की कहनियां है।

History of Himachal Pradesh के मुताबिक 28 रियासत के राजाओं ने जब एक स्वर में प्रांत का नाम हिमाचल प्रदेश रखने की आवाज बुलंद की तो डॉ. परमार ने भी इस पर हामी भर दी। एक प्रस्ताव पारित कर तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को मंजूरी के लिए भेजा गया। सरदार पटेल ने इस प्रस्ताव पर मुहर लगाकर हिमाचल का नाम घोषित किया। कभी इस इमारत में बघाट रियासत का दरबार सजता था। History of Himachal Pradesh का अनुसार इसी दरबार हॉल में बघाटी राजा दुर्गा सिंह ने 28 रियासतों के राजाओं को राज -पाट छोड़ प्रजामंडल में विलय होने के लिए मनाया था। इसके बावजूद किसी भी समय की सरकार ने इस इमारत को हेरिटेज घोषित नहीं किया।

2015 में धरोहर बनाने की हुई थी घोषणा

वर्ष 2015 में बघाटी सामाजिक संस्था सोलन की मांग पर तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने दरबार हॉल को धरोहर संग्रहालय बनाने की घोषणा की थी। योजना थी कि इसे संग्रहालय के तौर पर विकसित किया जाएगा तथा बघाट व आसपास के क्षेत्रों की संस्कृति से संबंधित दुर्लभ वस्तुओं को इस हॉल में प्रदर्शित किया जाएगा। तब जिला भाषा एवं संस्कृति विभाग को योजना तैयार करने के निर्देश दिए गए थे। आदेशानुसार विभाग ने रिपोर्ट भी बनाई और सरकार को भेजी भी। हालांकि आज तक इससे आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई और न ही दरबार हॉल को हेरिटेज घोषित करने की आधिकारिक नोटिफिकेशन जारी हुई। इस तरह यह History of Himachal Pradesh की महातपूर्ण तारीख बन गई।

 

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