HPPWD Engineer : किन्नौर की दुर्गम तरंडा ढांक का निर्माण कर इतिहास रचने वाले इंजीनियर राज बहादुर सिंह

HPPWD Engineer  : किन्नौर की दुर्गम तरंडा ढांक का निर्माण कर इतिहास रचने वाले इंजीनियर राज बहादुर सिंह

विनोद भावुक/ शिमला

पहाड़ों के बीच से निकाला गया मार्ग और एक तरफ कई फुट गहरी बहती हुई सतलुज नदी, इस मार्ग से गुजरते हुए उस इंजीनियर को सलाम किया जाना चाहिए जिसने किन्नौर के इस तरंडा ढांक का निर्माण कर भारत को चीन की सीमा से जोड़ा था। 1975 में प्रकाशित हुई एक बुकलेट में कर्मयोगी नाम से सम्मानित और महज 51 वर्ष की उम्र में दुनिया छोड़ गए HPPWD Engineer के दुर्गम क्षेत्रों में कई सड़कों व पुलों के निर्माण आज भी उनके महान कार्यों की गवाही देते हैं। पढ़िये भारत-पाकिस्तान विभाजन की त्रासदी में पिता के खोने के बाद देहरादून के झंडा मोहल्ला में मां के कड़े संघर्षों से पले इस इंजीनियर की प्रेरक कथा।

देहरादून में पैतृक घर, नाहन में ननिहाल

HPPWD Engineer राजबहादुर सिंह के तीन बेटे थे। उनके बड़े बेटे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से बैंक मैनेजर रिटायर्ड अजय ठाकुर पंचकूला में रहते हैं और छोटे बेटे आर्मी एजुकेशन कोर से रिटायर्ड सुबेदार भुवनेश्वर सिंह ठाकुर चंबा के बकलोह कैंट में रहते हैं। वे वर्तमान में शिक्षा विभाग में बतौर अध्यापक सेवाएं दे रहे हैं। मंझले बेटे संजय ठाकुर भी आर्मी में थे। उनकी मृत्यु हो चुकी है। छोटे बेटे भुवनेश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि उनके पिता का पैतृक घर देहरादूर के झंडा मोहल्ला में था। जिला सिरमौर के नाहन में उनके ननिहाल हुआ करते थे। उनकी जन्म 1921-22 में हुआ होगा, इसकी पुख्ता जानकारी नहीं हैं। वे देहरादून के झंडा मोहल्ला में केदार सिंह और हेमावती देवी के घर पैदा हुए थे और वे दो भाई बहन थे। चंबा के बकलोह कैंट में उनके ससुराल हैं। उनकी माता का नाम सुकन्या देवी था जिनका 2012 में देहांत हो गया था।

विभाजन में खो गए पिता, मां ने की परवरिश

HPPWD Engineer राजबहादुर सिंह के छोटे बेटे भुवनेश्वर सिंह ठाकुर बताते हैं कि वे थर्ड क्लास में थे तो पिता की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी लेकिन आज भी कई लोगों से उनके संघर्ष की कहानियां सुनने को मिलती हैं। वे अपने काम, सादगी और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। वे बताते हैं कि उनके दादा केदार सिंह भारत पाकिस्तान विभाजन के दौरान गुम हो गए थे। उनकी दादी हेमावती देवी ने देहरादून के झंडा मोहल्ला में दोनों भाई बहन की परवरिश की और बेहतर शिक्षा दिलाकर मुकाम तक पहुंचाया। पिता की बहन बाला देवी भी शिक्षक थीं और वर्तमान में वे नाहन में रहती हैं। उन्होंने बताया कि कई लोग कहते हैं कि वे फुटबाल के बेहतर खिलाड़ी थे और इस खेल में उन्होंने कई मेडल भी जीते थे।

किन्नौर तरंडा ढांक व कई सड़कों का निर्माण

HPPWD Engineer राजबहादुर सिंह की स्कूलिंग शिक्षा देहरादून में हुई थी। उसके बाद लखनऊ पॉलिटेक्निक कॉलेज से उन्होंने इंजीनियरिंग की। 1951 से उन्होंने हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग में सेवाएं देनी शुरू कीं। प्रतिनियुक्ति पर शिमला हाउसिंग बोर्ड में भी उन्होंने अपनी सेवाएं दीं। 1970 के आसपास इंजीनियर राजबहादुर के नेतृत्व में किनौर तरंडा ढांक निर्माण हुआ था जो आज एचपीपीडब्ल्यूडी के इस कर्मयोगी की महान उपलब्धि मानी जाती है। आज बड़ी-बड़ी कंपनियां अत्याधुनिक संसाधनों के साथ सड़क निर्माण में लगी हुईं हैं लेकिन साठ-सतर के दशक में पहाड़ी राज्यों के दुर्गम क्षेत्रों में बनी सड़कें आज भी उस दौर के कर्मियों और मजदूरों की कड़ी मेहनत की गवाही देती हैं। उस दौरान इंजीनियर राज बहादुर के नेतृत्व में पांगी, लाहौल, किन्नौर, काजा और हरिपुरधार जैसे दुर्गम क्षेत्रों में कई सड़कों को निर्माण हुआ। इसके अलावा रामपुर-सराहन सड़क का निर्माण और रोहड़ू के पास पुल का निर्माण किया गया।

मजदूरों के बड़े भाई थे इंजीनियर राजा

अपने स्टाफ में राजा के नाम से फेमस इंजीनियर राज बहादुर सिंह अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। वहीं वे मजदूरों की सहायता करने में भी आगे रहते थे। कई बार मजदूरों की आर्थिक मदद के लिए वे अपना वेतन तक खर्च कर देते थे। मजदूरों के साथ वे सहानुभूति का व्यवहार रखते थे। मजदूर अपने इस इंजीनियर को बड़े भाई के नाम से संबोधित करते थे। कहा जाता है कि वे गोरखा मजदूरों के साथ उनकी झोपड़ियों में रहते थे। शिमला और किन्नौर में बहुत से लोग राजबहादुर को व्यक्तिगत जानते थे।

जीप दुर्घटना में दो कर्मियों के साथ हुई मौत

15 जनवरी 1975 को जब हिमाचल प्रदेश हाउसिंग बोर्ड में अपनी सेवाएं दे रहे थे। वे जीप में अपने दो कर्मी जूनियर इंजीनियर प्रकाश चंद और ड्राइवर संघी राम के साथ दिल्ली जा रहे थे तो हरियाणा के जिला सोनीपत के पास जीटी रोड पर एक तेज रफ्तार ट्रक ने उनकी जीप को टक्कर मार दी। इस दुर्घटना में इंजीनियर राज बहादुर सिंह समेत तीन कर्मियों की मृत्यु हो गई थी। उस समय इंजीनियर राजबहादुर सिंह 51 वर्ष के थे और जूनियर इंजीनियर प्रकाश चंद 22 और ड्राइवर संघी राम 21 वर्ष का था।

शवयात्रा में शामिल हुए थे हजारों लोग

भुवनेश्वर ठाकुर ने बताया कि जब उनके पिता की एक्सीडेंट में मृत्यु हुई तो वे शिमला में थर्ड क्लास में पढ़ते थे।17 जनवरी 1975 को उनका अंतिम संस्कार टुटीकंडी, शिमला में हुआ था। अपनी ईमानदार छवि के लिए प्रसिद्ध इंजीनियर राज बहादुर सिंह की मृत्यु पर हिमाचल प्रदेश के उच्च स्तर के अधिकारियों समेत हजारों लोग शवयात्रा में शामिल हुए थे, लेकिन आज कम ही लोग इस महान इंजीनियर के बारे में जानते हैं।

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