Inspirational Story कभी कचरा बीनते थे, आज इंजीनियर और डॉक्टर
विनोद भावुक/ धर्मशाला
Inspirational Story में संघर्ष से सफलता की कहानी उस बच्चों की, जिनके हाथ दो दशक पहले तक या तो कचरा बीन रहे होते थे या फिर भीख मांगने का काम करते थे। आज वे बच्चे इंजीनियर और डॉक्टर बन कर समाज को अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
कभी वे बच्चे ऐसे वातावरण में रहते थे कि बचपन से ही कुपोषण का शिकार थे। पैदा होते ही भूख से मुठभेड़ ने उनको रोगी बना दिया था। अचानक एक दिन एक भिक्षु महात्मा बुद्ध की करुणा को विस्तार देने उनकी बस्तियों तक पहुंचा।
पहले भूख शांत की फिर थमाई कलम
Inspirational Story में मोड तब आया जब उस भिक्षु ने पहले बस्ती में भूख शांत करने का इंतजाम किया, फिर दवाई की व्यवस्था और फिर एक रोज सभ्य समाज में कचरा समझे जाने वाले इस बच्चों के हाथों में कलम थमा दी।
यह दो दशक से साधनारत एक भिक्षु के हठयोग का परिणाम है कि आज ऐसे बीस से ज्यादा बच्चे डॉक्टर और इंजीनियर बन चुके हैं।
ऐसे ही तीन सौ से ज्यादा बच्चे इस भिक्षु के गुरुकुल में अपने हिस्से के सूरज को उगाने के लिए शिक्षा हासिल कर रहे हैं। मानों बुद्ध खुद उनका जीवन बदलने आए हों।
ऐसे हुई मिशन की शुरूआत
बात वर्ष 2003 की है। लोबसांग जामयांग मैकलोडगंज में तिब्बती धर्म की शिक्षाओं का अध्ययन कर रहे थे। उसी दौरान कई छोटे बच्चे भीख मांगते या कचरा बीनते हुए मिल जाया करते थे।
वे बच्चों की अक्सर मदद करते थे। एक दिन उन बच्चों के साथ वह चरान खड्ड के पास स्थित उनकी बस्ती में पहुंच गए। बस्ती में गंदगी का सम्राज्य था। बीमारी खूब फल फूल रही थी। भूख से मुकाबले के लिए बचपन दांव पर लगा हुआ था। लोबसांग जामयांग ने पहले बस्ती के लिए पौष्टिक भोजन की व्यवस्था करवाई। उसके बाद बस्ती में उपचार की व्यवस्था की।
टोंग लेन संस्था की पहल
वर्ष 2004 में इस Inspirational Story की तब शुरुआत हुई जब लोबसांग जामयांग ने टोंग लेन संस्था बनाकर डिपो बाजार से ऐसे बच्चों के लिए शिक्षा का प्रबंध करने की पहल की। यह आसान काम नहीं था।
शुरू में कोई स्कूल ऐसे बच्चों को अपने यहां पढ़ाने को तैयार नहीं था, लेकिन लोबसांग जामयांग के प्रयासों से यह सब संभव हुआ।
उसके बाद टोंग लेन संस्था ने धर्मशाला- सराह रोड़ पर रेजिडेंशियल स्कूल की शुरूआत की।
खुद मुसीबतों से उलझे भिक्षु
लोबसांग जामयांग 1997 में तिब्बत से आए। उनके भारत पहुंचने की दास्तां बड़ी दर्द भरी है। उन्हें यहां पहुंचने के लिए कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा। उन्हें बर्फ से लकदक कई ग्लेशियरों को पार करना पड़ा। उनके साथ तिब्बत से भारत के लिए चले कई भिक्षुओं की रास्ते में मौत हो गई। कई भिक्षु नेपाल में गिरफ्तार कर लिए गए।
अनपढ़ ने शुरू किया पढ़ाने का मिशन
लोबसांग जामयांग को भी गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बावजूद वह भारत पहुंचने में कामयाब रहे। वे तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा की शरण में पहुंचे और यहां तिब्तव धर्म की शिक्षा ग्रहण करने लगे।
इस Inspirational Story का एक पक्ष यह भी हैं कि लोबसांग जामयांग के पास किसी कॉलेज अथवा युनिवर्सिटी की कोई डिग्री नहीं है। बावजूद उन्होंने अंग्रेजी और हिंदी बोलना सीखा है और सबसे हाशिये पर रहने वाली जमात को शिक्षा की रोशनी दे रहे हैं।
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