ब्रिटिश राज में शिमला के सबसे अमीर तुर्क हीरा व्यापारी जैकब, जिनके ग्राहकों में शामिल थे वायसराय, दुनिया में सातवें सबसे बड़े हीरे के सौदे ने कर दिया था दिवालिया

ब्रिटिश राज में शिमला के सबसे अमीर तुर्क हीरा व्यापारी जैकब, जिनके ग्राहकों में शामिल थे वायसराय, दुनिया में सातवें सबसे बड़े हीरे के सौदे ने कर दिया था दिवालिया
विनोद भावुक/ शिमला
उस दौर में सबसे अमीर भारतीयों में शामिल अलेक्जेंडर मैल्कम जैकब 1870 के दशक में शिमला पहुंचे और उन्होंने कीमती रत्नों और कलाकृतियों का व्यापार शुरू किया। काम की गुणवत्ता के कारण उस समय भारत के कुछ सबसे धनी और सबसे प्रभावशाली लोग से उनके ग्राहक बन गए।
उन पर’ डायमंड मर्चेन्ट, मेजीशियन एंड स्पाई’ किताब लिखने वाले जॉन जब्रजिस्की लिखते हैं कि वायसराय और कमांडर-इन-चीफ, सिविल सरवेंट व क्लर्क, बंगाली बाबू तथा अमीर मारवाड़ी व्यापारी पहले उनके ग्राहक बने और फिर उसके विश्वासपात्र बन गए।
रत्न बेचने का कमाल का तरीका
जैकब का हीरे और कीमती रत्न बेचने का तरीका कमाल का था। वे घरों, दुकानों, क्लबों, सरकारी कार्यालयों और सेना शिविरों में दरवाजे के पास लगे छोटे टिन के डिब्बे में अपना कॉलिंग कार्ड छोड़ते। उन्हें इसका जबरदस्त रिसपोन्स मिलता।
जैकब भारत में किसी भी महत्व के लगभग हर कीमती रत्न के जानकार थे और उनके अधिकांश ग्राहक उन पर आंख मूंदकर भरोसा करते थे। रत्नों की विद्या के बारे में जैकब की समझ उनकी सफलता का राज थी।
होटल से शुरू किया व्यापार, शिमला में घर
शिमला के पहले कुछ वर्षों में जैकब की पसंदीदा जगह लॉरीज़ थी। 1830 के दशक में बना यह शिमला का सबसे पुराना और सबसे बड़ा होटल था। होटल की तीन मंजिला इमारत रिज के ठीक नीचे और मॉल के सामने थी। इसमें एक आरामदायक और अच्छी तरह से स्टॉक किया हुआ लाउंज था।
जैकब ने एक कमरा सोने के लिए और एक अपने व्यवसाय के लिए बुक किया। व्यवसाय वाले कमरे में प्राचीन वस्तुएं, पुराने कालीन, तिब्बती मुखौटे, पीतल की मूर्तियों, मुगल लघुचित्र और एक स्टील की अलमारी राखी थी, जिसमें जैकब अपने कीमती पत्थर और आभूषण रखता था। बाद में जैकब ने शिमला में बेल्वेडियर के नाम से एक आलीशान घर बनाया।
सप्ताह के हर दिन के लिए अलग रत्न
जैकब के लिए, सप्ताह के प्रत्येक दिन का अपना विशेष रत्न था। रविवार को माणिक, सोमवार को मोती, मंगलवार को मूंगा, बुधवार को पन्ना, गुरुवार को पुखराज, शुक्रवार को हीरा और शनिवार को नीलम पहनता था। जैकब ब्रह्मचारी, शाकाहारी, शराब न पीने वाला और धूम्रपान न करने वाला था।
दिवंगत लोगों के साथ संवाद करने के जैकब के कौशल ने उसे वायसराय के विशेष समूह में शामिल कर दिया। वायसराय लिटन अक्सर मॉल में उनकी दुकान पर जाता था। एक बार लिटन ने अपनी पत्नी के लिए हीरे का कंगन भी खरीदा था। उन्होंने जैकब के निवास बेल्वेडियर में भी कई दिन बिताए थे।
जैकब डायमंड के सौदे ने किया दिवालिया
जैकब को जैकब डायमंड बेचने के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है, जो दुनिया में ज्ञात सातवां सबसे बड़ा हीरा है। पहले इसे विक्टोरिया डायमंड, इंपीरियल डायमंड या ग्रेट व्हाइट डायमंड के नाम से जाना जाता था। यह हैदराबाद के निज़ाम के स्वामित्व में था। जैकब डायमंड सौदे ने जैकब को बर्बाद कर दिया।
उन पर धोखाधड़ी के आरोप में मुकदमा चलाया गया और कोलकाता उच्च न्यायालय में लंबी सुनवाई के बाद ही उन्हें बरी किया गया। जैकब को न उनका बकाया पैसा मिला और न ही हीरे को वापस पाने का कोई तंत्र था। कानूनी लड़ाई ने उन्हें दिवालिया बना दिया। वह 1901 के अंत में शिमला छोड़कर बॉम्बे चले गए।
बॉम्बे, हैदराबाद, कोलकाता, दिल्ली फिर शिमला
1849 में तुर्की के इज़मिर में पैदा हुए जैकब के दादा एक इंजीनियर थे और उनके पिता ओटोमन साम्राज्य में पहले साबुन निर्माता थे। दस वर्ष की आयु में जैकब को एक पाशा को दास के रूप में बेच दिया गया, जिसने उसे शिक्षित किया। जैकब ने पूर्वी जीवन, भाषा, कला, साहित्य, दर्शन और गुप्तविद्या का ज्ञान प्राप्त किया।
जैकब बाद में बॉम्बे आ गए जहां अरबी के अपने ज्ञान के आधार पर एक क्लर्क के रूप में काम किया। फिर वे हैदराबाद चले गए, जहां उन्होंने अमी-उल-कबीर के लिए काम किया। फिर वे कोलकाता चले गए, जहां उन्होंने जौहरी चार्ल्स नेफ्यू एंड कंपनी के लिए काम किया। उन्होंने कुछ समय के लिए रामपुर और धौलपुर के नवाबों के लिए काम किया। उसके बाद वे दिल्ली होते हुए शिमला पहुंचे थे।

दिवालिया घोषित होने के बाद शिमला छोड़कर बॉम्बे जाने के बाद जैकब ने अपनी आंखों की रोशनी खो दी। चौदह साल के अंधेपन के बाद एक सर्जन की मदद से उनकी आंखें तो ठीक हो गई, लेकिन जीवन की सांझ में उनकी बिगड़ी किस्मत फिर ठीक नहीं हुई।
जैकब के अंतिम वर्ष बॉम्बे यॉट क्लब के सामने स्थित वॉटसन एनेक्सी के एक मामूली से कमरे में बीते। जैकब के अंतिम शब्द थे ‘मेरा प्यार शिमला को देना’। उनकी मृत्यु 1921 में हुई।
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