जटोली शिव मंदिर: पत्थर थपथपाने पर डमरू की आवाज़

जटोली शिव मंदिर: पत्थर थपथपाने पर डमरू की आवाज़
Shiv Temple Jatoli
  • दक्षिण-द्रविड़ शैली में बना एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर

हिमाचल बिजनेस/ सोलन

जटोली शिव मंदिर के सावन के पावन महीने में दर्शन करना भगवान भोलेनाथ के भक्तों के लिए एक विशेष अवसर होता है। जटोली शिव मंदिर को एशिया में सबसे ऊंचे मंदिरों में गिना जाता है।

सोलन शहर से करीब सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित जटोली शिव मंदिर दक्षिण-द्रविड़ शैली से बना है। यह मंदिर निर्माण कला का बेजोड़ नमूना है। मंदिर की ऊंचाई 111 फुट है। इस मंदिर को बनने में ही करीब चार दशक का समय लगा।

जटोली शिव मंदिर में प्रवेश के लिए मंडप से मुख्यद्वार तक जाया जाता है, जिसके भीतर गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग के दर्शन किए जाते हैं।स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने यहां तपस्या की और उनके मार्गदर्शन व दिशा-निर्देश पर जटोली शिव मंदिर का निर्माण हुआ।

मंदिर के एक कोने में स्वामी कृष्णानंद की गुफा है। अपने चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध इस मंदिर में लगे पत्थरों को थपथपाने से डमरु की आवाज़ आती है।

4 किलो सोने का 11 फुट लंबा कलश

मंदिर का शिलान्यास वर्ष 1974 में किया गया और निर्माण कार्य वर्ष 1983 में जाकर आरम्भ हुआ। जटोली शिव मंदिर 39 सालों के उपरान्त 24 जनवरी 2013 को शिवलिंग स्थापित होते ही श्रद्धालुओं को समर्पित कर दिया किया गया।

मंदिर का शिलान्यास वर्ष 1974 में किया गया और निर्माण कार्य वर्ष 1983 में जाकर आरम्भ हुआ। जटोली शिव मंदिर 39 सालों के उपरान्त 24 जनवरी 2013 को शिवलिंग स्थापित होते ही श्रद्धालुओं को समर्पित कर दिया किया गया।

मन्दिर निर्माण पर करोड़ों का खर्च आया। मंदिर के चारों तरफ विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। भीतर शिवलिंग के साथ शिव और पार्वती कि मूर्तियां स्थापित की गई हैं। मंदिर के शिखर पर 4 किलो सोने का 11 फुट लंबा कलश मंदिर के सौंदर्य को और भी निखारता है।

शिव की जटों से जटोली

भगवान शिव की लंबे जटा (बालों) से जटोली का नाम मिलता है। मान्यता है कि पौराणिक समय में भगवान शिव यहां आए और कुछ समय यहां रहे थे।
Shiv Temple Jatoli

भगवान शिव की लंबे जटा (बालों) से जटोली का नाम मिलता है। मान्यता है कि पौराणिक समय में भगवान शिव यहां आए और कुछ समय यहां रहे थे। यह मंदिर विशिष्ट दक्षिणी-द्रविड़ शैली की वास्तुकला में बनाया गया है और यह लगातार तीन पिरामिडों से बना है। पहले पिरामिड पर भगवान गणेश की छवि दूसरे पिरामिड पर श्याम नाग की मूर्ति है।

जटोली शिव मंदिर के पीछे मान्यता है कि पौराणिक समय में भगवान शिव यहां आए और कुछ समय के लिए यहां रहे थे। बाद में सिद्ध बाबा श्रीश्री 1008 स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने यहां आकर तपस्या की।

उनके मार्गदर्शन और दिशा-निर्देश पर ही जटोली शिव मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। मंदिर के कोने में स्वामी कृष्णानंद की गुफा भी है।

पवित्र है कुंड का पानी

मंदिर बनने से पहले जटोली में पानी की बहुत समस्या रहा करती थी। लोगों को बहुत दूर से पानी लाना पड़ता था। इस पवित्र स्थान पर स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने अपने तपोबल से एक जल कुंड उत्पन्न किया।

उन्होंने त्रिशूल के प्रहार से जमीन में से पानी निकाल दिया। इसे गंगा नदी के रूप में पवित्र माना जाता है। इस पानी में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं, जो त्वचा रोगों का इलाज कर सकते हैं।

महाशिवरात्रि पर होता है खास आकर्षण

जटोली शिव मंदिर बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। यह मंदिर शिव भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है। यह मंदिर अपने वार्षिक मेले के लिए प्रसिद्ध है, जो महाशिवरात्रि के त्योहार के दौरान आयोजित किया जाता है।

शिवरात्रि को भारी संख्या में शिव भक्त यहां उमड़ते हैं और शिव की अराधना करते हैं। दुनिया के विभिन्न भागों से शिवभक्त इस मंदिर में शिव का आशीष लेने आते हैं।

बाबा की परीक्षा और अजगर की हुंकार

जटोली शिव मंदिर को लेकर प्रचलित एक प्रसंग के मुताबिक इस स्थान पर अचानक एक साधू आकर रहने लगा। आसपास के लोगों ने जब देखा तो एक बार साधू की परीक्षा लेने के लिए गुफा के आसपास छिप गए। थोड़ी देर बाद उन्हें गुफा से एक अजगर की हुंकार सुनाई दी और वे डर गए।

खुद को असहाय पाकर साधू के पांव पड़े और अपनी भूल के लिए क्षमा याचना की। उस साधू ने कई सालों तक यहां तप किया। यह साधू सिद्ध बाबा स्वामी कृष्णानंद परमहंस थे, जिन्होंने चिमटे से यहां पानी निकाला था।

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