पहली बार कैमरे में कैद हुआ कांगड़ा किला, धर्मशाला से स्पीति के लिए हिमालय की पहली फोटोग्राफिक यात्रा
पहली बार कैमरे में कैद हुआ कांगड़ा किला, धर्मशाला से स्पीति के लिए हिमालय की पहली फोटोग्राफिक यात्रा
विनोद भावुक / धर्मशाला
आज का हिमाचल प्रदेश 162 साल पहले बर्फ़, रहस्य और अनजाने रास्तों की धरती था, तब एक अंग्रेज़ अफसर फिलिप हेनरी एगर्टन कैमरा लेकर धर्मशाला से स्पीति की ओर निकल पड़ा। उस वक़्त न सड़कें थीं, न पुल, न बिजली। बस पहाड़, बर्फ़ और साहस। यह हिमालय की पहली फोटोग्राफिक यात्रा थी। इस यात्रा ने इतिहास रच दिया।
एगर्टन के कैमरे में कैद हुए वो पल कांगड़ा किला, धर्मशाला चर्च, कुल्लू का एक साधारण दंपत्ति, शिगरी ग्लेशियर, गद्दी परिवार, स्पीति की महिलाएँ, संगीतकार और भिक्षु जैसी तस्वीरों में आज भी अमर हैं। इन तस्वीरों ने पश्चिमी दुनिया को पहली बार बताया कि हिमालय संस्कृति और सौंदर्य की जीवित कहानी है।
एगर्टन : डिप्टी कमिश्नर, खोजकर्ता, यात्री और कलाकार
1863 में जब फिलिप हेनरी एगर्टन कांगड़ा के डिप्टी कमिश्नर थे, तो उन्होंने सिर्फ़ प्रशासनिक काम ही नहीं किया, एक खोजकर्ता, एक यात्री और एक कलाकार की तरह काम किया। ब्रिटिश सरकार का लक्ष्य था तिब्बत के साथ ऊन के व्यापार का नया रास्ता खोलना।
एगर्टन का उद्देश्य इस रहस्यमयी धरती को समझना और उसके चेहरे को कैमरे में अमर करना था। धर्मशाला से फिलिप हेनरी एगर्टन ने हम्पटा दर्रा पार किया। कुल्लू से होकर की मठ, किब्बर, काज़ा, डंककर, पिन फिर ताबो पहुँचे और आखिर में सुम्दो तक गए, जहाँ बर्फ़ और आसमान एक हो जाते हैं।

दुर्लभ किताब में दर्ज यात्रा का ब्यौरा और तस्वीरें
फिलिप हेनरी एगर्टन ने तिब्बत के गारपून (नगारी प्रांत के प्रमुख) से बातचीत करने की कोशिश भी की,
लेकिन तिब्बती उस समय यूरोपीय ताक़तों पर भरोसा नहीं करते थे। फिर भी एगर्टन ने अपने दूत के ज़रिये जो रास्ता चुना, वही बाद में स्पीति-तिब्बत मार्ग के नाम से जाना गया।
अपनी यात्रा का ब्यौरा बाद में ‘A Tour from Spiti to the Frontier of Chinese Thibet’ (1864) में लिखा। यह एक ऐसी किताब जो आज इतनी दुर्लभ है कि पिछले 25 सालों में उसकी एक भी मूल प्रति बाज़ार में नहीं मिली।

ब्रिटिश म्यूज़ियम आर्काइव में सुरक्षित दुर्लभ तस्वीरें
1893 में एगर्टन की मृत्यु समुद्र यात्रा के दौरान हुई, लेकिन उनकी तस्वीरें आज भी ब्रिटिश म्यूज़ियम आर्काइव में सुरक्षित हैं। उनकी हर तस्वीर जैसे कहती है, जब दुनिया हिमालय को नहीं जानती थी, तब मैं उसे दुनिया तक ले गया।
यह कहानी सिर्फ़ इतिहास नहीं, एक प्रेरणा है, क्योंकि 162 साल पहले बिना तकनीक, बिना रास्ते और बिना मदद एक इंसान ने अपने जज़्बे और कैमरे से वो कर दिखाया, जो आज भी प्रेरणा देता है कि
अगर इरादा सच्चा हो, तो हिमालय भी रास्ता दे देता है।

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