कत्थक गुरु : प्रथम राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने थपथपाई जिसकी पीठ, मिला फिल्म में अतिथि कलाकार का प्रस्ताव, पहाड़ पर कत्थक के लिए जमीन तैयार करने वाली इला पांडे

कत्थक गुरु : प्रथम राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने थपथपाई जिसकी पीठ, मिला फिल्म में अतिथि कलाकार का प्रस्ताव, पहाड़ पर कत्थक के लिए जमीन तैयार करने वाली इला पांडे
कत्थक गुरु : प्रथम राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने थपथपाई जिसकी पीठ, मिला फिल्म में अतिथि कलाकार का प्रस्ताव, पहाड़ पर कत्थक के लिए जमीन तैयार करने वाली इला पांडे
विनोद भावुक/ चंडीगढ़
साल था 1955 का। शास्त्रीय नृत्य में निपुण एक युवती ने देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से सामने अपनी कला पेश कर जमकर तालियां बाटोरीं। 1962 में दिल्ली के अशोका होटल में फ़िल्मकार शिवाजी गणेशन और सीने तारिका हेमामालिनी के सामने नृत्य प्रस्तुति देकर उनका दिल जीत लिया। शिवाजी गणेशन ने अपनी फिल्म ‘सारथी’ में अतिथि-कलाकार बनने का प्रस्ताव रखा, जिसे माता-पिता की सहमति न मिलने पर प्रस्ताव को विनम्रता से ठुकरा दिया।
रोचक, मनोरंजक और ज्ञानवर्धक कहानियों के प्लेटफॉर्म हिमाचल बिजनेस पर आजकी प्रेरककथा की नायिका हैं गायन, वादन और नृत्य में माहिर इला पांडे। एक ऐसी नर्तकी जिसने आदर्श शिक्षिका बनकर पहाड़ पर शास्त्रीय नृत्य की नई पौध तैयार की है। 5 सितंबर को इला पांडे अपना 80 जन्मदिन मनाने जा रही हैं। हिमाचल बिजनेस की ओर से उन्हें जन्मदिन की अग्रिम शुभकामनाएं।
नृत्य के लिए आधी सदी का समर्पण
साल 1962 में नाहन में राजकीय कला महाविद्यालय की स्थापना हुई, जहां ललित कलाओं के साथ-साथ संगीत और नृत्य की शिक्षा की व्यवस्था भी थी। नृत्य शिक्षिका के रूप में वहां इला क्षेत्री की नियुक्ति हुई, जो बाद में इला पांडे के नाम से चर्चित हुई। कला महाविद्यालय को नाहन के बाद चम्बा और फिर शिमला में बदला गया।
वर्ष 1972 में कला कॉलेज के बंद हो जाने पर संगीत और नृत्य प्रभाग राजकीय गर्ल्स कॉलेज शिमला में स्थापित कर दिया गया, जहां बाद दोपहर से शाम तक संगीत और नृत्य का प्रशिक्षण चलता। नृत्य की शिक्षा देने में चार दशक तक इला पांडे ने भरपूर योगदान दिया। सेवानिवृत्त होने के बाद भी ‘थिरकन’ संस्था के माध्यम से यह सिलसिला जारी रहा।
नाहन की बेटी ने नाहन में दिखाई कला
इला पांडे के परिवार का संबंध सिरमौर रियासत से है। उनका जन्म 5 सितम्बर 1945 को नाहन में हुआ। पिता डॉ. भगत राम फौज से सेवानिवृत्त होकर देहरादून में ही प्रेक्टिस करते थे। इला पांडे ने देहरादून में ‘श्री कृष्ण कला मंदिर’ में नृत्य की तालीम ली। उन्होंने गुरु शंकर झा से नृत्य सीखने के साथ गायन की शिक्षा गुरु राजा राम कम्बोज से, तबला वादन की मामा बीर सिंह रावत तथा उस्ताद अज़ीजुद्दीन से और सितार वादन की शिक्षा पंडित सीता राम चैटर्जी से ली।
नृत्य की शिक्षा उन्होंने मुज़फ्फरनगर के पं. विशन लाल मिश्र तथा मुंबई के चौबेजी महाराज से भी प्राप्त की। इला पांडे नृत्य में ‘प्रवीण’ तथा गायन में ‘संगीत प्रभाकर’ की उपाधि ली। अक्तूबर 1960 में इला ने नाहन में आयोजित दूसरे नाट्य सम्मेलन में अपने शानदार नृत्य से दर्शकों का मन मोह लिया।
निखारे नृत्य के कई सितारे
इला पांडे को उनके हुनर के चलते अनेक संस्थानों ने अपनी परामर्श समितियों से जोड़ा है। संगीत नाटक अकादमी, उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र और आकाशवाणी शिमला परीक्षण समिति ने उन्हें सदस्यता प्रदान की। छठे दशक के शुरू में वे भारतीय पर्यटन विकास निगम की निष्पादक कलाकार रही। साल 1993 में इला पांडे ने गेयटी, थिएटर,शिमला में खुद कत्थक नृत्य पेश किया था।
इला पांडे की शिष्या संगीता शर्मा की एक हादसे में मौत हो गई थी। उसकी पहली जयंती पर ‘संगीतांजलि 1993’ कार्यक्रम में श्रद्धांजलि के रूप में इला पांडे ने गेयटी थियेटर में खुद नृत्य प्रस्तुत किया था। प्रदेश की अनेक प्रतिभाओं ने उनके निर्देशन में शास्त्रीय नृत्यों के क्षेत्र में अपनी कला का प्रभावशाली प्रदर्शन किया है और कर रहीं हैं।
पति की मौत के बाद छूट गया शिमला
इला की शादी 1967 में नाहन के प्रोफेसर रमेश पांडे से हुई। पति ने उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया। उनके जीवन में सब कुछ ठीक चल रहा था, किन्तु नियति को कुछ ओर ही मंजूर था। उनकी अठारह वर्षीय पुत्री का आकस्मिक निधन हो गया। इस गम को सीने से छुपाए वे नृत्य को नया आकाश देती रहीं। सेवानिवृति के शिमला के संजोली में ‘थिरकन अकादमी’ का संचालन शुरू किया।
हिमाचल प्रदेश के पहले कत्थक नर्तक उनसे शिष्य सुंदरनगर निवासी दिनेश गुप्ता बताते हैं कि कोविडकाल में जब उनके पति की मौत हो गई तो इला पांडे अपने बेटे के पास चंडीगढ़ में रहने वाले चली गई। इला पांडे ने अब सार्वजनिक मंचों पर शिरकत करना छोड़ दी है, फिर भी अपने स्टूडेंट्स से संपर्क में हैं। अगले माह सितंबर 5 को इला पांडे 80 वां जन्मदिन मनाएंगी।
अकादमी के ‘शिखर सम्मान’ से सम्मानित
शिमला के संजोली की ‘थिरकन नृत्यशाला’ ने अनेक होनहार विद्यार्थियों को नृत्य की ओर प्रेरित किया है। साल 2016 में इला पांडे को हिमाचल प्रदेश कला-भाषा-संस्कृति अकादमी ने कत्थक में उनके विशेष योगदान के लिए ‘शिखर सम्मान’ से सम्मानित किया तो उन्होंने पुरस्कार राशि मुख्यमंत्री राहत कोष में दान दे थी।
अब भी शिक्षा, मंच और संस्कृति की सेवा में उनका योगदान ताज़ा और प्रेरणास्पद बना हुआ है। नृत्य के जरिये पहाड़ की नस्लों को नाचने के हुनर में उस्ताद बनाने वाली आदर्श शिक्षिका के सुखद स्वास्थ्य और दीर्घायु की हम कामना करते हैं।
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Jyoti maurya

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