कायस्थ धरोहर : भारत में जब पढ़ना था खास लोगों का विशेषाधिकार, नगरोटा बगवां में शिक्षा की रोशनी से हो रहा था चमत्कार

कायस्थ धरोहर : भारत में जब पढ़ना था खास लोगों का विशेषाधिकार, नगरोटा बगवां में शिक्षा की रोशनी से हो रहा था चमत्कार
कायस्थ धरोहर : भारत में जब पढ़ना था खास लोगों का विशेषाधिकार, नगरोटा बगवां में शिक्षा की रोशनी से हो रहा था चमत्कार
विनोद भावुक। नगरोटा बगवां
कांगड़ा घाटी के हरे-भरे विस्तार में बसा नगरोटा बगवां भौगोलिक सौंदर्य के संग सामाजिक और सांस्कृतिक उत्कर्ष का भी साक्षी रहा है। ब्रिटिश शासन के उत्कर्ष काल में जब देश का अधिकांश भाग अशिक्षा और आर्थिक विषमता से जूझ रहा था, तब नगरोटा बगवां के कायस्थ समुदाय ने शिक्षा, सेवा और सामाजिक सम्मान की ऐसी मिसाल कायम की, जिसे आज भी लोग गर्व से याद करते हैं। उदय सहाय और पूनम बाला की पुस्तक Kayasth : An Encyclopedia of Untold Stories’ में कायस्थ समुदाय यह प्रेरक स्टोरी छपी है।
विभाजन-पूर्व भारत में जब उच्च शिक्षा केवल विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों तक सीमित थी, तब नगरोटा बगवां के कायस्थों के 26 युवक स्नातक और कुछ स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त कर चुके थे। यह उस समय के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। इनमें से सात युवाओं ने कांगड़ा और धर्मशाला में वकालत शुरू की, कई अध्यापन से जुड़े और तीन ने सेना में कमीशन प्राप्त कर कर्नल तक का पद पाया।
व्यापार और प्रशासन में प्रभाव
कायस्थ समुदाय ने व्यापार और सरकारी सेवाओं में भी अपनी गहरी छाप छोड़ी। वे नगरोटा बगवां के आधिकारिक कमीशन एजेंट बने, जिनके हाथों से शहर का अधिकतर कारोबार संचालित होता था। भू-राजस्व प्रशासन में उनकी दक्षता इतनी प्रसिद्ध थी कि कई परिवारों को मुआफ़ी जागीरें (कर-मुक्त भूमि) प्रदान की गईं। पांच कायस्थ तहसीलदार, छह पटवारी व कानूनगो, और कुछ उच्च पदों पर पहुंचकर राजस्व प्रणाली की रीढ़ बन गए।
प्रशासनिक सेवा में उपस्थिति
कायस्थों ने प्रशासनिक सेवा में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। एक युवक पीसीएस अधिकारी, दूसरा डीएसपी, और तीसरा आयकर आयुक्त के पद तक पहुँचा। इसी वर्ग के कई लोग इंजीनियर, डॉक्टर और शिक्षाविद् बने। भू-राजस्व विभाग के अलावा, कायस्थों को जैलदार और लंबरदार जैसे सम्मानित ग्रामीण पद प्राप्त थे। ये पद भले प्रशासनिक दृष्टि से छोटे थे, पर ग्रामीण समाज में इनकी प्रतिष्ठा बहुत बड़ी थी। वे शासन की आंख और कान माने जाते थे। वे न्याय, कर और जनता के बीच सेतु की भूमिका निभाते हुए।
समाजशास्त्र की प्रयोगशाला
लेखक को नगरोटा बगवां के मशहूर साहित्यकार एवं प्रसाशनिक अधिकारी स्वर्गीय डॉ प्रेम भारद्वाज ने बताया था कि कायस्थों के जीवन, कार्य संस्कृति और रीति-रिवाजों की बेहतर समझ के लिए नगरोटा बगवां से बेहतर प्रयोगशाला कोई और नहीं हो सकती। यहाँ के कायस्थ न केवल शिक्षा और प्रशासन में आगे थे, बल्कि समाज के सांस्कृतिक जीवन में भी उनका योगदान गहरा था।
एक वर्ग नहीं, एक विचारधारा
नगरोटा बगवां के कायस्थ केवल एक जातीय पहचान नहीं। शिक्षा केवल उनके लिए ज्ञान का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और आत्मनिर्भरता का अस्त्र थी। वे उस सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक हैं, जिसने शिक्षा को समाजसेवा से जोड़ा और परंपरा को प्रगति से। उनकी यह कहानी बताती है कि जब ज्ञान और कर्म एक साथ चलते हैं, तो इतिहास केवल लिखा नहीं जाता, रचा जाता है। उनकी यह उपलब्धियां न केवल व्यक्तिगत सफलता की कहानियां हैं, बल्कि एक सामूहिक सामाजिक चेतना का प्रतिबिंब भी हैं।
नगरोटा बगवां : नाम और इतिहास
नगरोटा’ शब्द का अर्थ है नगर के आसपास का नगर। कांगड़ा रियासत की राजधानी के पास बसा नगरोटा बगवां, इतिहास के आईने में एक ऐसा नगर है, जिसने सामाजिक संरचना, शिक्षा और आर्थिक प्रगति में अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए। यहां केवल कायस्थ ही नहीं, बल्कि महाजन, खत्री, ब्राह्मण और चौधरी समुदाय भी रहते थे, किंतु अपने परिश्रम और दूरदृष्टि से कायस्थ समुदाय ने एक अलग पहचान बनाई।
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Jyoti maurya

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