Khushwant Singh  : स्विटजरलैंड में सपना, सोलन में केबल कार

Khushwant Singh  : स्विटजरलैंड में सपना, सोलन में केबल कार
विनोद भावुक/ सोलन
Khushwant Singh ‘स्पानिंग कौशल्या’ शीर्ष से द हिंदुस्तान टाइम्स के 11 जून 1988 के अंक में प्रकाशित आलेख में लिखते हैं कि सरहान गांव के रमेश गर्ग ने साल 1977 में स्विटजरलैंड का दौरा किया और एक पहाड़ की चोटी से दूसरे पहाड़ की चोटी पर केबल कार को जाते देखा। घर लौट कर ऐसी ही केबल कार के सपने को साकार कर आसमान में छेद जैसा कर दिखाया।
Khushwant Singh ‘स्पानिंग कौशल्या’ शीर्ष से द हिंदुस्तान टाइम्स के 11 जून 1988 के अंक में प्रकाशित आलेख में लिखते हैं कि सरहान गांव के रमेश गर्ग ने साल 1977 में स्विटजरलैंड का दौरा किया और एक पहाड़ की चोटी से दूसरे पहाड़ की चोटी पर केबल कार को जाते देखा। घर लौट कर ऐसी ही केबल कार के सपने को साकार कर आसमान में छेद जैसा कर दिखाया।
उन्होंने सोलन के पास कौशल्या नदी के दोनों ओर देवदार के जंगलों पर अनुबंधात्मक अधिकार हासिल कर कालका-शिमला राजमार्ग पर एक आकर्षक होटल ‘टिम्बर ट्रेल’ बनाया।
फिर घाटी की दूसरी ओर पहले होटल से दो हजार फुट की ऊंचाई पर टिम्बर ट्रेल हाइट्स होटल का निर्माण किया और फिर दोनों होटलों को देश में सबसे लंबी डेढ़ किलोमीटर लंबी केबल कार से जोड़ा।

पैराडाइज़ फ्लाई कैचर की झलक की उम्मीद

Khushwant Singh की  ‘द वेरी बेस्ट ऑफ खुशवंत सिंह- द विंटेज सरदार’ को पैंगविन ने प्रकाशित किया है, जिसमें संपादक एवं लेखक के तौर पर उनके सर्वश्रेष्ठ लेखन को प्रकाशित किया गया है। ‘स्पानिंग कौशल्या’ शीर्ष से मूल रूप से द हिंदुस्तान टाइम्स के 11 जून 1988 के अंक में प्रकाशित उनके काम को भी जगह मिली है।

Khushwant Singh की  ‘द वेरी बेस्ट ऑफ खुशवंत सिंह- द विंटेज सरदार’ को पैंगविन ने प्रकाशित किया है, जिसमें संपादक एवं लेखक के तौर पर उनके सर्वश्रेष्ठ लेखन को प्रकाशित किया गया है।
‘स्पानिंग कौशल्या’ शीर्ष से मूल रूप से द हिंदुस्तान टाइम्स के 11 जून 1988 के अंक में प्रकाशित उनके काम को भी जगह मिली है। इसमें खुशवंत सिंह लिखते हैं,‘जब भी मैं कालका-शिमला रोड पर जाता था, मैं घने जंगल वाले स्थान पर रुकता था, इस उम्मीद में कि बांस के घने झुरमुटों में बसे पैराडाइज़ फ्लाई कैचर की एक झलक मिल जाए।
मैंने उन्हें शायद ही कभी देखा हो, लेकिन उस स्थान पर इन लंबी पतली पूंछ वाले चांदी-और-बर्फ-सफेद पक्षियों के अलावा और भी बहुत कुछ था।‘

स्तन के आकार का पहाड़, एक निप्पल जैसा किला

Khushwant Singh लिखते हैं, ‘घाटी के उस पार एक पहाड़ था, जो किसी महिला के स्तन के आकार का था और उसके ऊपर एक निप्पल की तरह गोरखाओं द्वारा बनाया गया एक जीर्ण-शीर्ण किला था।
जाहिर तौर पर उन्होंने नेपाल से पश्चिम की ओर अपनी बाहें फैलाई थीं, जब तक कि पहाड़ी राजपूतों और सिखों की संयुक्त सेना ने उन्हें रोक नहीं लिया। उन्होंने 1830 के दशक में कभी इस चौकी को छोड़ दिया। यह अभी भी एक पड़ोसी गांव गढ़ी बनासर के नाम पर है।‘

उपज को बाजार तक पहुंचाना मुश्किल

Khushwant Singh लिखते हैं, ‘गोरखा किले के अलावा, जिसे देखने का मैंने हमेशा खुद से वादा किया था कि मैं एक दिन वहां जाऊँगा, पूरी पहाड़ी पर धान, मक्का, आलू और अन्य सब्जियां उगाने वाले खेत थे।
जिस तरह मैं 50 मील का जीप योग्य रास्ता लिए बिना दूसरी तरफ नहीं जा सकता था, उसी तरह किले के नीचे बसे सैकड़ों गांवों के किसान अपनी उपज को मैदानी इलाकों के बाजारों तक तब तक नहीं पहुंचा सकते थे।

रीढ़ तोड़ने वाली यात्रा

‘द वेरी बेस्ट ऑफ खुशवंत सिंह- द विंटेज सरदार’ के मुताबिक ‘किसानों को पांच हजार फुट नीचे की ओर घाटी में जाना पड़ता था, जहां से कौशल्या नदी घग्घर के साथ संगम तक जाती थी। फिर दो हजार फुट ऊपर की ओर कालका-शिमला सड़क पर पहुंचना पड़ता था।
यह एक रीढ़ तोड़ने वाली यात्रा होती थी, जिसमें पूरा दिन लग जाता था। जब तक वे कालका पहुंचते, उनकी सब्जियां बासी हो चुकी होती थीं और उन्हें इसके लिए बहुत कम दाम मिलता था।‘

आम हिमाचली का खास सपना

Khushwant Singh लिखते हैं, ‘अगर कोई रस्सी के पुल से कौशल्या की घाटी को पाट सके तो ही पहाड़ी की पूरी सूरत बदल सकती है। कोई भी व्यक्ति यह काम नहीं कर सकता था।
मुझे उम्मीद थी कि एक दिन राज्य सरकार यह काम करेगी। लेकिन यह हिमाचल प्रदेश की सरकार नहीं थी, बल्कि सरहान गांव का एक हिमाचली रमेश गर्ग थे, जिन्होंने इस सपने को साकार किया। 1977 में उन्होंने स्विटजरलैंड का दौरा किया और एक पहाड़ की चोटी से दूसरे पहाड़ की चोटी पर केबल कार को जाते देखा।
घर वापस आकर उन्होंने कौशल्या के दोनों ओर देवदार के जंगलों पर अनुबंधात्मक अधिकार हासिल कर लिए।‘

टिम्बर ट्रेल से टिम्बर ट्रेल हाइट्स तक सफर

‘द वेरी बेस्ट ऑफ खुशवंत सिंह- द विंटेज सरदार’ के मुताबिक, ’सबसे पहले उन्होंने कालका-शिमला राजमार्ग पर एक आकर्षक होटल, टिम्बर ट्रेल, बनाया। फिर उन्होंने घाटी के दूसरी ओर अपने पहले होटल से दो हजार फुट ऊपर एक और होटल बनाया और इसका नाम टिम्बर ट्रेल हाइट्स रखा।
फिर उन्होंने दोनों को डेढ़ किलोमीटर लंबी (देश में सबसे लंबी) केबल कार से जोड़ा। स्टील के खंभे और चार स्टील की केबल से बना पूरा उपकरण भारत में कलकत्ता की उषा ब्रेको द्वारा बनाया गया था।‘

केरीज़ रोपवे ने बदली किसानों की किस्मत

Khushwant Singh लिखते हैं, ‘शिमला की पहाड़ियों पर जाने वाले किसी भी व्यक्ति खासकर चंडीगढ़, पटियाला और अंबाला के लोगों के लिए के लिए केबल कार की यात्रा जरूरी हो गई है।
मुझे नहीं पता कि उन्हें अपना निवेश वापस पाने में कितना समय लगेगा, लेकिन मुझे पता है कि उन्होंने हजारों हिमाचली किसानों के लिए समृद्धि ला दी है, जो अब अपनी उपज को 18 घंटे की जगह आठ मिनट में कैरिज रोपवे द्वारा घाटी के पार ले जाते हैं।‘

बदलाव के सबूत

Khushwant Singh लिखते हैं, ‘सबूत यहां किसी के भी देखने के लिए मौजूद हैं। बिजली की रोशनी और टीवी एंटीना के साथ नए खेत। बनासर के होटल से आपको कौशल्या और घग्गर नदी, हरियाणा और पंजाब के मैदान, सुखना झील और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ का शानदार नज़ारा दिखाई देता है।
हिमाचल को रमेश गर्ग जैसे और हिमाचलियों की ज़रूरत है। शाबाश!’
 इस विषय से संबन्धित अन्य पोस्टें – 
  1. Himalayan Rocket Stove : ऑस्ट्रेलिया के रसेल कोलिंस ने मनाली में विकसित किया स्टोव, लद्दाख और चंडीगढ़ में लगाई प्रोडक्शन यूनिट्स

himachalbusiness1101

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *