जिंदगी की मुश्किलों में ग़ज़लों से उजाले बिखेरते कुलदीप गर्ग ‘तरुण’, ‘उजालों का हुजूम’ से मिली पहचान

जिंदगी की मुश्किलों में ग़ज़लों से उजाले बिखेरते कुलदीप गर्ग ‘तरुण’, ‘उजालों का हुजूम’ से मिली पहचान
जिंदगी की मुश्किलों में ग़ज़लों से उजाले बिखेरते कुलदीप गर्ग ‘तरुण’, ‘उजालों का हुजूम’ से मिली पहचान
बिजनेस हिमाचल/ सोलन
सोलन जिला के अर्की के एक छोटे से गांव के कुलदीप गर्ग ‘तरुण’ पिछले 8–10 वर्षों से वे ग़ज़ल की विधा में सक्रिय हैं। उन्होंने गुरूवर विजय कुमार स्वर्णकार से ग़ज़ल का शिल्प सीखा है। उनकी ग़ज़लें सुख़नवन, हिमप्रस्थ, गिरिराज जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छपी हैं। साझा संग्रह परवाज़-ए-ग़ज़ल-5 और गुलदस्ता-ए-ग़ज़ल में भी उनकी रचनाएँ शामिल हैं। उनका व्यक्तिगत ग़ज़ल संग्रह ‘उजालों का हुजूम’ पाठकों के बीच चर्चित रहा है।
शुरुआत मुक्त छंद कविताओं से हुई। कविताएँ कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। ‘In No Time’ संग्रह में उनकी कविता अंग्रेज़ी अनुवाद सहित प्रकाशित है। बाद में वे ग़ज़लकार के तौर पर अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे। मंचों पर उनकी गजलों पर जमकर तालियां बजती हैं।
उतार- चढ़ाव और लेखन
कुलदीप गर्ग ‘तरुण’, का जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा, लेकिन ग़ज़ल और कविता ने हमेशा उन्हें संबल दिया। सोलन ज़िले की अर्की तहसील के वनिया देवी में जन्मे कुलदीप गर्ग ने अपनी शुरुआती शिक्षा बखालग और अर्की स्कूल से पाई।
कुलदीप गर्ग का करियर कभी सीधा नहीं रहा। कई बार झटके लगे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
वर्तमान में वे अर्की में गारमेंट्स का कारोबार कर रहे हैं और साथ ही साहित्यिक लेखन भी निरंतर जारी है।
ग़ज़लें ही हैं जिनका परिचय
कुलदीप गर्ग को विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं ने सम्मानित किया है। फेसबुक और सोशल मीडिया ने उन्हें देशभर के उस्तादों और मित्रों से जोड़ा, जिससे उनका साहित्यिक सफ़र और समृद्ध हुआ है।
कुलदीप तरुण कहते हैं, ‘मेरी ग़ज़लें ही मेरा परिचय हैं।‘
कुलदीप गर्ग ‘तरुण’ इस बात का जीता-जागता उदाहरण हैं कि साहित्य कोई शौक़ नहीं, बल्कि आत्मा की आवाज़ है। चाहे कारोबार हो या जीवन की मुश्किलें, उनके शब्द हमेशा उजाले बिखेरते रहते हैं।
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Jyoti maurya

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