कुंदन लाल सहगल: शिमला ने दिया पहला सुपर स्टार

 कुंदन लाल सहगल: शिमला ने दिया पहला सुपर स्टार
  • साल 1928 में पहली बार जम्मू से शिमला आए थे कुंदन लाल सहगल, साल 1931 में चले गए थे कलकत्ता

विनोद भावुक/ शिमला

हिंदी सिनेमा के पहले सुपर स्टार कुंदन लाल सहगल का शिमला से गहरा नाता रहा है। साल 1928 में जम्मू से शिमला आने वाले कुंदन लाल सहगल के अभिनय और गायकी को गेयटी थियेटर शिमला और एमेच्योर ड्रामाटिक क्लब फागली ने पहचान दी।

उन्हें फिल्मों में गाने का ब्रेक भी शिमला में मिला। शिमला में उन्होंने सेल्जमैन के तौर पर काम भी किया। साल 1935 में देवदास फिल्म में उनकी शानदार भूमिका ने उन्हें हिंदी सिनेमा का पहला सुपर स्टार बना दिया।

अपनी इस सफलता को सेलिब्रेट करने के लिए 1936 में सहगल फिर शिमला आए और उनके सम्मान में समारोह हुआ। इस बार वह होटल ग्रांड में रूके।

‘पूर्ण भक्त’ के लिए आए शिमला

कुंदन लाल सहगल साल 1928 में जम्मू से शिमला आए थे। उनकी गायन में गहरी दिलचस्पी थी। एमेच्योर ड्रामाटिक क्लब फागली की ओर से सहगल को पूर्ण भक्त नाटक के मंचन के लिए आमंत्रित किया गया था। यह एक लंबा नाटक था, जिसमें दो अंतराल थे।
एमेच्योर ड्रामाटिक क्लब फागली, शिमला ने सहगल को नाटक के मंचन के लिए आमंत्रित किया था।

कुंदन लाल सहगल साल 1928 में जम्मू से शिमला आए थे। उनकी गायन में गहरी दिलचस्पी थी। एमेच्योर ड्रामाटिक क्लब फागली की ओर से सहगल को पूर्ण भक्त नाटक के मंचन के लिए आमंत्रित किया गया था। यह एक लंबा नाटक था, जिसमें दो अंतराल थे।

नाटक में मुख्य भूमिका अदा करने वाले अभिनेता और गायक डायरिया के चलते बीमार पड़ गए। एमेच्योर ड्रामाटिक क्लब प्रबंधन के लिए यह परेशानी की बात थी। किसी ने तब अच्छी आवाज के मालिक युवा कुंदन लाल सहगल का नाम सुझाया।

चूंकि सहगल नाटक देखने के लिए नियमित आगंतुक थे और हर शो को दिल से देखते थे, इसलिए इस नाटक के गीत दिल से याद थे। सहगल दर्शकों में जबरदस्त हिट हो गए और पूर्ण भक्त नाटक एक बड़ी सफलता बन गई।

भराड़ी में रहते थे कुंदन लाल सहगल

साल 1935 में देवदास की भूमिका ने कुंदन लाल सहगल को फिल्म उद्योग का पहला सुपरस्टार बनाया।
देवदास फिल्म के एक सीन में कुंदन लाल सहगल।

शिमला में रहते हुए कुंदन लाल सहगल भराड़ी के कोडुमल भवन में रहते थे। उन्होंने साल 1928 से साल 1931 तक रेमिंगटन रैंड टाइपराइटर कंपनी में एक टाइपराइटर विक्रेता के रूप में कार्य किया।

रेमिंगटन टाइपराइटर के विपणन का कार्य शिमला की ठाकर, स्पिंक एंड कंपनी करती थी जो किताबें, पोस्टर और तस्वीरें प्रकाशित करने का काम करती थी। कंपनी का कॉम्बेरमेयर ब्रिज के पास इमारत में फोटोग्राफिक स्टूडियो था।

गेयटी में मिला कला का पारखी

कुंदन लाल सहगल जब गियेटी थियेटर के मंच पर गायन की प्रस्तुति दे रहे थे तो महान शास्त्रीय संगीतकार हरिशचंद्र बाली की नजर में चढ़ गए।
कुंदन लाल सहगल पर जारी डाक टिकट।

कुंदन लाल सहगल जब गियेटी थियेटर के मंच पर गायन की प्रस्तुति दे रहे थे तो महान शास्त्रीय संगीतकार हरिशचंद्र बाली की नजर में चढ़ गए।

वे सहगल को अपने साथ कलकता ले गए और फिल्म संगीत के पिता आरसी बोरल से सामने पेश किया। वहां सहगल से बीआर सरकार के स्टूडियो ‘न्यू थियेटर’ ने गायन के लिए करार किया।

झलवाड़ के राजा ने दिया गिफ्ट

कुंदन लाल सहगल अकसर नेशनल एमेच्योर ड्रामाटिक क्लब, फागली और गेयटी थिएटर में प्रस्तुतियां देते थे। उन्होंने गेयटी में खेले नाटकों में से एक में एक में नपुंसक की भूमिका निभाई। उनका गाया गीत ‘सैयां मोरे लागे रे बताशे की जोरी’ गीत स्थानीय लोगों में बेहद लोकप्रिय हो गया।

झलवाड़ के महाराजा सर राजेंद्र सिंह जी देव बहादुर कुंदन लाल सहगल से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें मॉल से खरीदे गए बहुत महंगे सूट का उपहार दिया।

शिमला ने सहगल का सम्मान

सहगल का अकसर मास्टर मदन और उनके बड़े भाई मोहन के घर आना होता था। सहगल ने कलकत्ता में गायन और अभिनय के लिए साल 1931 में शिमला छोड़ दिया। साल 1935 में देवदास की उनकी भूमिका ने उन्हें फिल्म उद्योग का पहला सुपरस्टार बनाया।

धमाकेदार सफलता के बाद साल 1936 में सहगल फिर शिमला आए। उनके सम्मान में कालीबाड़ी हॉल में एक चैरिटी शो आयोजित किया गया।

सहगल ने अपने गीतों से शिमला के लोगों का दिल जीत लिया। इस बार वे ग्रांड होटल में ठहरे थे। 18 जनवरी 1947 को जालंधर में 42 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।

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