इल्म की रोशनी : एक सदी पहले सीमांत क्षेत्र में जला गए शिक्षा की मशाल, चौधरी मल्लाह सिंह ने कांगड़ा में किया कमाल

इल्म की रोशनी : एक सदी पहले सीमांत क्षेत्र में जला गए शिक्षा की मशाल, चौधरी मल्लाह सिंह ने कांगड़ा में किया कमाल
पंकज दर्शी/ रेहन
यह प्रेरक कहानी है पंजाब से सटे कांगड़ा जिला के सीमांत क्षेत्रों में शिक्षा की ज्योति जलाने वाले चौधरी मल्लाह की। 22 फरवरी 1855 को इंदौरा के जागीरदार सुंदर सिंह के घर पैदा हुए चौधरी मल्लाह सिंह पिता की मौत के बाद वह जागीरदार बने। खुद बेशक वे महाजनी लिपि टांकरी ही जानते थे, लेकिन इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि जीवन में शिक्षा का क्या महत्व है।
पुत्र अनंत की अचानक हुई मौत के बाद चौधरी मल्लाह सिंह ने अपने दोस्त पंडित बेली राम के सुझाव पर क्षेत्र में शिक्षा व्यवस्था करने के लिए खुद को समर्पित कर दिया और शिक्षा के क्षेत्र में मजबूत नींव रखने का कार्य शुरू कर दिया। यह उनकी दूरदर्शी सोच का ही परिणाम है कि उनकी यश कीर्ति आज भी अगर लोगों की जुबान पर है।
शिक्षा की अलख जगाई
29 फरवरी 1916 को चौधरी मल्लाह सिंह ने इंदौरा में एक विधालय की आधारशिला रखी। साल 1921 में दस कमरे,एक हाल, दस अध्यापकों के लिए आवास, दो हास्टल, तीन भंडार कक्ष ओर एक खेल मैदान सहित यह किलेनुमा स्कूल जनता को समर्पित कर दिया। बेटे अनंत के नाम पर एक हास्टल बनवाया। 2016 में स्कूल के 100 साल होने पर स्कूल में चौधरी मल्लाह सिंह की प्रतिमा स्थापित की गई है।
चौधरी साहब ने इंदौरा कॉलेज के लिए करोड़ो रुपयों की जमीन दान की। यही कारण है कि इंदौरा के राजकीय महाविद्यालय के प्रांगण में स्थापित चौधरी मल्लाह सिंह की प्रतिमा को लोग आज भी प्रणाम करते हैँ। वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला सुजानपुर व स्नातन धर्म कॉलेज पठानकोट का निर्माण भी चौधरी मल्लाह सिंह के अथक प्रयासों का ही फल था।
सादा जीवन, उच्च विचार, वसियत में सब कुछ दान
23 दिसंबर 1929 को चौधरी मल्लाह सिंह का देहांत
होने से पहले उन्होंने अपनी वसीयत में तमाम जमीन, जायदाद मानवता के लिए दान कर दी। अपने जीते जी उन्होंने गरीब परिवारों की लड़कियों के विवाह पर मदद करने, पानी की कमी को दूर करने के लिए कुओं, बावड़ियों का निर्माण को प्राथमिकता दी। इंदौरा और नूरपुर में दो सरायें और पेयजल के लिए पक्के कुंए भी बनवाए।
चौधरी मल्ला सिंह का रहन-सहन बड़ा ही सादा रहा। वह खद्दर के कपड़े पहनते थे। जूता भी गांव के किसी स्थानीय कारीगर का बना हुआ होता था। वे धार्मिक वृत्ति के व्यक्ति थे और शाम की आरती करने वह मंदिर अवश्य जाते थे।वे स्वभाव से नरम, मिलनसार, अहंकार रहित और दृढ संकल्पी थे।
ठुकरा दिया था ब्रिटिश गवर्नर का खिताब
साल 1905 में कांगड़ा में भयंकर भूकंप आया, जिसने भारी तबाही मचाई। आपदा की उस घड़ी में चौधरी मल्लाह सिंह ने गरीबों और जरूरमंदों की मदद के लिए सारे खजाने खोल दिये। उन्होंने भूकंप पीड़ितों की हर संभव सहायता की।
उनके इस उपकार के लिए तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के पंजाब के गवर्नर ने चौधरी मल्लाह सिंह को राय बहादुर का ख़िताब दिया और साथ ही सौ एकड़ जमीन भी उन्हें देने की घोषणा की। मल्लाह सिंह ने ब्रिटिश हुकूमत के गवर्नर का यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया।
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