लिविंग लिजेंड : 84 साल के ओम प्रकाश प्रभाकर की मेहरबानी, जिद और जुनून से लिख रहे लोकनाट्य ‘भगत’ को जिंदा करने की प्रेरक कहानी

लिविंग लिजेंड : 84 साल के ओम प्रकाश प्रभाकर की मेहरबानी, जिद और जुनून से लिख रहे लोकनाट्य ‘भगत’ को जिंदा करने की प्रेरक कहानी
विनोद भावुक/ धर्मशाला
हिमाचल प्रदेश के सरकारी शिक्षा जगत की जिन दो महान हस्तियों शक्ति चंद राणा और ओम प्रकाश प्रभाकर को इस फोटो फ्रेम में देख रहे हैं, बुढ़ापे की सांझ में भी युवाओं से ज्यादा सोसायटी के लिए कंट्रीब्यूट कर रह रहे हैं। जीवट के धनी इतने कि जीवन के 90 बसंत देख चुके बैजनाथ के शक्ति चंद राणा कैंसर को हराकर गीतकार, गायक और साहित्यकार के तौर पर सुपर एक्टिव हैं, तो जयसिंहपुर के तलबाड़ गाँव के 84 साल के ओम प्रकाश प्रभाकर कांगड़ा जनपद की पारंपरिक लोकनाट्य शैली ‘भगत’ को पुनर्जीवित करने के श्रमसाध्य काम में जुटे हैं।
इस तस्वीर में जिस विद्वान ओम प्रकाश प्रभाकर का सम्मान किया जा रहा है, वे ही आज की प्रेरककथा के नायक हैं। साहित्य-संस्कृति के संरक्षण और मानव सेवा के क्षेत्र में उनका अमूल्य योगदान उन्हें पूजनीय बनाता है। अपने जीवन को केवल अध्यापन तक सीमित नहीं रखा, बल्कि समाज के सबसे उपेक्षित और हाशिए पर खड़े वर्गों के लिए समर्पित कर दिया। वे ट्रांसजेंड समुदाय के लिए सामाजिक सुरक्षा दिलाने, लोकनाट्य ‘भगत’ के संरक्षण, साहित्य-संस्कृति के संवर्धन, और मानव कल्याण के क्षेत्र में अमूल्य योगदान देते आ रहे हैं।
गुरु- शिष्य परंपरा के गुरु
ओम प्रकाश प्रभाकर 84 वर्ष की उम्र में भी गुरु- शिष्य परंपरा के तहा अपने घर पर बच्चों को अभिनय, संगीत और लोकनाट्य सिखाते हैं। अभी- अभी उन्होंने एनजेडसीसी पटियाला के लिए छह माह के लिए लोकनाट्य स्कूल का संचालन कर लोक कलाकारों की नई नस्ल तैयार की। इन दिनों वे ज्ञान विज्ञान समिति के एक कार्यक्रम में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
लोक रंगमंच के प्रेमी शिक्षक ओम प्रकाश प्रभाकर ने हिमाचल प्रदेश की पारंपरिक भगत शैली को पुनर्जीवित करने का अथक कार्य किया है। उन्होंने 14 से अधिक नाटक लिखे हैं और रामलीला के मंच पर 16 वर्षों तक राम की भूमिका निभाई है। आज भी उनकी एक्टिंग और डायलोग डिलिवरी की तारीफ की जाती है।
सामाजिक सरोकार, साहित्य सृजन से प्यार
ओम प्रकाश प्रभाकर का नाम वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकार और पहाड़ी कवि के रूप में प्रदेश के सृजनशील साहित्यकारों में लिया जाता है। उन्हें राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों में सम्मानित किया गया है। उनका लेखन केवल भावनाओं का नहीं, बल्कि समाज की पीड़ा और यथार्थ का प्रतिनिधित्व करता है।
ओम प्रकाश प्रभाकर कुछ वर्षों तक पत्रकारिता से भी जुड़े रहे। उन्होंने बुजुर्गों को पेंशन, गरीबों को मकान दिलवाने के लिए सोशल एक्टिविस्ट के रूप में काम किया है। वे साक्षरता मिशन के अंतर्गत जिला साक्षरता समिति से जुड़े रहे हैं और पैरा लीगल वॉलंटियर के रूप में अहम योगदान दिया है।
ट्रांसजेंड समुदाय के मसीहा
समाज में ट्रांसजेंडर समुदाय को अक्सर उपेक्षा और तिरस्कार का सामना करना पड़ता है। ऐसे में ओम प्रकाश प्रभाकर ने अपने प्रयासों से 1800 से अधिक ट्रांसजेंडरों को वृद्धावस्था पेंशन, पहचान और सम्मान दिलवाया है। यह आंकड़ा सिर्फ एक सरकारी सुविधा नहीं, बल्कि एक इंसान की खोई हुई गरिमा की वापसी का प्रतीक है।
ओम प्रकाश प्रभाकर आज जब 84 वर्ष की आयु में भी समाज, संस्कृति और शिक्षा के लिए सक्रिय हैं, पहाड़ के लिए एक जीती-जागती प्रेरणा हैं। उनका जीवन बताता है कि उम्र बाधा नहीं, साधना की गहराई होती है। समाज उनके जैसे तपस्वियों के कारण ही सुन्दर और समरस बनता है।
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