लिविंग लिजेंड : इंडियन आर्मी के इस जवान ने बर्फीले तूफान के बीच अकेले माउंट एवरेस्ट पर फहरा दिया था तिरंगा, अद्वितीय साहस के लिए शौर्य चक्र से सम्मानित स्पीति के छेरिंग नोरबू बोध

लिविंग लिजेंड : इंडियन आर्मी के इस जवान ने बर्फीले तूफान के बीच अकेले माउंट एवरेस्ट पर फहरा दिया था तिरंगा, अद्वितीय साहस के लिए शौर्य चक्र से सम्मानित स्पीति के छेरिंग नोरबू बोध
लिविंग लिजेंड : इंडियन आर्मी के इस जवान ने बर्फीले तूफान के बीच अकेले माउंट एवरेस्ट पर फहरा दिया था तिरंगा, अद्वितीय साहस के लिए शौर्य चक्र से सम्मानित स्पीति के छेरिंग नोरबू बोध
विनोद भावुक / शिमला
23 मई 2001 दिन, एवरेस्ट अभियान पर रवाना हुई टीम जानलेवा बर्फीले तूफान के चलते पीछे हटने को मजबूर थी। टीम के एक पर्वतारोही ने सामने दिख रही मौत ललकारते हुए संकट की इस घड़ी में भी हार मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने रात 10 बजे ‘डेथ जोन’ चढ़ाई चढ़नी शुरू की। हर कदम पर मौत का साया था। ऑक्सीजन की कमी, हड्डियों तक जमा देने वाली ठंड और थकान के बावजूद वे ‘हिलेरी स्टेप’ वाले खतरनाक चट्टानी हिस्से को पार कर एवरेस्ट के शिखर तक पहुंचने में सफल रहे। इस अद्वितीय साहस के लिए उन्हें भारत के तीसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।
मौत को चकमा देकर एवरेस्ट पर तिरंगा लहराने वाले पर्वतारोही छेरिंग नोरबू बोध स्पीति घाटी के एक छोटे से गांव चोबरांग के निवासी हैं। 1988 में भारतीय सेना में भर्ती होकर छेरिंग नोरबू बोध ने देश की रक्षा के साथ दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों पर तिरंगा फहराकर भारत का नाम रोशन किया।
अन्नपूर्णा-1 और ल्होत्से जीतने वाले पहले भारतीय
छेरिंग नोरबू बोध ने अपने करियर में माउंट एवरेस्ट, कंचनजंगा, ल्होत्से, अन्नपूर्णा, चो ओयू और धौलागिरी जैसी घातक ऊंचाइयों पर विजय प्राप्त की। अन्नपूर्णा-1 और ल्होत्से पर चढ़ाई करने वाले वे पहले भारतीय हैं। ये दोनों पर्वत विश्व की सबसे कठिन पर्वतारोहण चुनौतियों के लिए जाने जाते हैं। पर्वतारोहण उनके लिए शारीरिक शक्ति और मानसिक दृढ़ता का प्रतीक रहा और हर पर्वतारोहण अभियान एक मिशन रहा।
छेरिंग नोरबू बोध ने भारतीय सेना और देश को गौरवान्वित किया है। उन्होंने साल 2005 में सेना के महिला एवरेस्ट अभियान को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई।
संकल्प से तय होती हैं ऊंचाईयां
छेरिंग नोरबू बोध सिर्फ एक पर्वतारोही नहीं हैं, वे भारतीय साहस, निष्ठा और राष्ट्रप्रेम की जीती-जागती मिसाल हैं। उनसे यह मिलती है कि यदि इरादे बुलंद हैं तो कोई भी चोटी इतनी ऊंची नहीं होती जिसे फतह न किया जा सके। जब कोई व्यक्ति हिमालय की बर्फीली चोटियों को जीतने निकलता है, तो वह सिर्फ चढ़ता ही नहीं, अपनी इच्छाशक्ति, साहस और समर्पण की भी परीक्षा देता है। उनसे सीख मिलती है कि ऊंचाइयां शरीर से नहीं, आत्मा और संकल्प से तय होती हैं।
ओरनरी कैप्टन छेरिंग नोरबू बोध को देश एक वीर सिपाही, साहसी पर्वतारोही और प्रेरणा के स्रोत के रूप में जानता है। वे एक कट्टर तिब्बती बौद्ध हैं। उनके जीवन में सादगी, अनुशासन और साहस सर्वोपरि हैं। असंभव को संभव करने वाले छेरिंग नोरबू बोध का जीवन युवाओं के लिए एक जीवंत उदाहरण है।
पर्वतारोहण के लिए सम्मान और पुरस्कार
2001 में माउंट एवरेस्ट चढ़ाई में अद्वितीय साहस के लिए छेरिंग नोरबू बोध को शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। साल 2005 में उन्हें तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार मिला। उन्हें भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन ने स्वर्ण पदक प्रदान किया है।
साल 2008 और 2010 में उन्हें सेना प्रमुख की तरफ से प्रशंसा प्रदान किया गया। सेवानिवृत्ति के समय उन्हें मानद कैप्टन की उपाधि दी गई है। छेरिंग नोरबू बोध लिविंग लिजेंड हैं।
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Jyoti maurya

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