’लोक के राग’ – 4 : कलावती लाल ने फिल्मी पर्दे पर किया कमाल, संवेदनशील विचारक, शिक्षाविद और समाज सुधारक

’लोक के राग’ – 4 : कलावती लाल ने फिल्मी पर्दे पर किया कमाल, संवेदनशील विचारक, शिक्षाविद और समाज सुधारक
विनोद भावुक/ शिमला
1930 के दशक में जब महिलाओं का फिल्मों में आना बगावत जैसा था, उस दौर में हिमाचल प्रदेश के सोलन जिला एक छोटे से हिन्नर गांव की लड़की कलावती लाल ने न केवल फिल्मी पर्दे पर अपनी पहचान बनाई, बल्कि हिंदी सिनेमा की शुरुआती क्रांतिकारी नायिकाओं में शुमार हो गईं। उनकी पहली फिल्म ‘अछूत कन्या’ (1935) थी, जिसमें उन्होंने देविका रानी और अशोक कुमार के साथ काम किया था। कलावती लाल ने ‘जंजीर’, ‘ज़िंगारू’, ‘फैशनेबल इंडिया’ जैसी फिल्मों में उन्होंने प्रभावशाली भूमिकाएं निभाईं।
कलावती लाल को भारतीय सिनेमा की दुनिया ने पुष्पा देवी के नाम से पहचाना गया। वह केवल पर्दे की अदाकारा नहीं थीं, संवेदनशील विचारक, शिक्षाविद और समाज सुधारक भी थीं। कलावती लाल को बेशक इतिहास ने भुला दिया, मगर आज भी सिनेमा से राजनीति, महिला सशक्तिकरण से गौ सेवा तक उनका जीवन आज भी प्रेरणा देता है।
लाहौर से कोलकाता, फिर मुंबई
एक किस्सा सुनाया जाता है कि जब उनके पिता ने उनका बाल विवाह विवाह की कोशिश की थी तो उन्होंने कलावती ने साहस से कहा था कि ये जुर्म है। ऐसा करने पर वह जेल भिजवा देगी।
1931 में संस्कृत में ग्रेजुएशन करने के बाद कलावती को उनके परिजनों ने आगे की पढ़ाई के लिए लाहौर भेजा। लाहौर में उनका झुकाव थिएटर और नाटक की ओर हुआ।
नाटक का शौक कलावती को गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के शान्ति निकेतन में ले गया जहां उन्होंने कला भवन में दाखिला लिया। फिल्म अदाकारा देविका रानी गुरुदेव की करीबी रिश्तेदार थीं। वे कला भवन में आती रहती थीं। यहीं कलादेवी की देविका रानी से भेंट हुई और वे उन्हें ‘बॉम्बे टॉकिज़’ में ले गई, जहां कलावती को फिल्म ‘अछूत कन्या’ में एक साइड रोल मिला।
‘फैशनेबल इंडिया’ के साथ थम गया फिल्मी करियर
‘फैशनेबल इंडिया’ फिल्म जब शिमला में रिलीज हुई तो शिमला में जगह- जगह फिल्म के पोस्टर लगे। कलावती लाल की बड़ी- बड़ी तस्वीरें शिमला की गलियों में ढोल-नगाड़ों के साथ घुमाईं गईं। यह बात उनके आर्य समाजी पिता तक पहुंची। पिता को यह नागवार गुजरा और कलावती लाल का चमकदार सिने करियर अचानक थम गया। कलावती ने पिता की इजाज़त से आर्य संस्कृत कॉलिज पट्टी (अमृतसर) में संस्कृत अध्यापिका की नौकरी कर ली।
बतौर फिल्म अभिनेत्री उनकी शोहरत कॉलेज में भी पहुंच चुकी थी। स्टूडेंट्स उनके चेहरे को तकते रहते थे। उनके फैन कॉलेज के अहाते के बाहर उनकी एक झलक पा लेने के लिए घंटों खड़े रहते। कॉलेज के अनुशासन पर आंच आने लगी तो मेनेजमेंट ने उनसे इस्तिफा मांग लिया और दो महीने बाद ही उनकी नौकरी चली गई।
वामपंथी विचारधारा, कश्मीर के लेफ्टिनेंट कर्नल से शादी
नौकरी छूटी तो कलावती दोबारा लाहौर चली गई। कॉलेज के दिनों के गाइड प्रोफेसर नन्द राम की मदद से उनको ऑल इण्डिया रेडियो, लाहौर में नाटक कलाकार की जगह मिल गई। यहां उनकी मुलाकात कामरेड धनवंतरी, फरीदा बेदी और मोहम्मद सादिक से हुई। यहीं से वे वामपंथी विचारधारा की ओर मुड़ गईं।
साल 1940 में कलावती लाल ने कश्मीर के लेफ्टिनेंट कर्नल रामलाल चुनी से विवाह किया। कर्नल साहब ने 1947 के कश्मीर युद्ध में रियासत की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस दौरान कलावती ने भी महिला रक्षा बल बनाने में सक्रिय भूमिका निभाई और बंदूक चलाने की ट्रेनिंग ली।
किसान कन्या पाठशाला हिन्नर’ की स्थापना
काश्मीर में लड़ाई खत्म होने के बाद कलावती अपने पति के साथ सोलन आ गई। उन्होंने लड़कियों की तालीम के लिए किसान कन्या पाठशाला हिन्नर’ को तीन कमरे बनाने के लिए दस हज़ार रुपए का योगदान दिया। 1952 में डॉक्टर यशवंत सिंह परमार के खिलाफ असेंबली चुनाव में उतरी कलावती चुनाव हार जाने के बाद भी खामोशी से अपने तरीके से जरूरतमंदों की भलाई करती रही।
असैवंली चुनाव के कुछ दिनों बाद कर्नल लाल चल बसे और उनका बच्चा दूध पीता बच्चा भी बीमारी के कारण हमेशा के लिए उनसे जुदा हो गया। पति की मृत्यु और बेटे के असमय निधन के बाद भी कलावती नहीं रुकीं। वे अखबार बेचतीं, लालटेन की रोशनी में घास काटतीं और जरूरतमंद महिलाओं को आश्रय देतीं।
सिद्धांतों से नहीं किया कोई समझौता
कलावती लाल ने आखिरी सांस तक सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं किया। उन्होंने डेरी फार्म शुरू किया, 20 से अधिक गायों की सेवा की और उनकी नस्लों को बेहतर बनाकर अन्य किसानों को भी लाभ पहुंचाया। 5 जून 2002 को कलावती लाल इस दुनिया से विदा हुईं, मगर पीछे साहस, विचार और सेवा की एक मिसाल छोड़ गईं।
कलावती लाल का व्यक्तित्व इसलिए प्रेरक है कि जिस दौर में औरतों को घर से बाहर निकलने की भी इजाज़त नहीं थी, उन्होंने सिनेमा, राजनीति, समाज सेवा और गौ सेवा जैसे मोर्चे पर सफल नेतृत्व किया था। कलावती लाल सिर्फ एक नाम नहीं, एक युग की आवाज़ हैं। बड़ा करने का सपना देखने वाली हर लड़की को उनकी कहानी पढ़नी और सुननी चाहिए।
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