लॉर्ड एल्गिन : शिमला थी जब अंग्रेजों की राजधानी, वायसराय धर्मशाला से लिख रहा था नई कहानी, धर्मशाला के ब्रिटिश फाउंडर के नाम से मशहूर
लॉर्ड एल्गिन : शिमला थी जब अंग्रेजों की राजधानी, वायसराय धर्मशाला से लिख रहा था नई कहानी, धर्मशाला के ब्रिटिश फाउंडर के नाम से मशहूर
विनोद भावुक। धर्मशाला
शिमला उस समय ब्रिटिश सत्ता का केंद्र था। भारत में अंग्रेज़ी शासन के सबसे शक्तिशाली पद पर बैठने वाला इंसान सत्ता का केंद्र में बैठने के बजाए धौलाधार के आंचल तले बसे धर्मशाला से नई कहानी लिख रहा था। 1862–63 में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड एल्गिन धर्मशाला से इतना प्रेम कर बैठा कि उसने अपना
पूरा जीवन यहीं बिताया और उसकी मौत भी धर्मशाला के पहाड़ों में हुई।
पंजाब हिल स्टेट्स गेजेट के अनुसार, लॉर्ड एल्गिन को धर्मशाला का ब्रिटिश फाउंडर कहा जाता है। लॉर्ड एल्गिन का कहना था कि धौलाधार के पहाड़ उनका उपचार करते हैं। शिमला के स्थान पर लॉर्ड एल्गिन ने जिस जगह को अपने रहने के लिए चुना, वह उस समय शांत दुनिया से अनजानी धर्मशाला।
शहर की आत्मा से जोड़ा नाता
लॉर्ड एल्गिन ने ब्रिटिश प्रशासनिक ढाँचा मज़बूत किया, सड़कें बनवाईं, यहां चर्च स्थापित किया और धर्मशाला धीरे–धीरे एक शहर बनने लगा। एक वायसराय ने सत्ता नहीं, एक शहर की आत्मा से रिश्ता जोड़ किया। लॉर्ड एल्गिन ने कहा था, मेरी अंतिम मंज़िल यहीं होगी। उनकी बात सच साबित हुई।
13 नवंबर 1863 को धर्मशाला के पहाड़ों में यात्रा करते समय लॉर्ड एल्गिन गिर पड़े। उनके दिल से दगा दे दिया और उनका निधन हो गया। जिस जगह को उन्होंने अपना अंतिम घर कहा था, वे हमेशा के लिए उसी स्थान पर सो गए। उनको चर्च के पास स्थित कब्र में दफन किया गया।
इतिहास में अमर एल्गिन
लॉर्ड एल्गिन की समाधि सेंट जॉन इन द वाइडरनेस चर्च में देवदारों की छांव तले मौजूद है। मानो धर्मशाला के पहाड़ आज भी उन्हें अपनी बाहों में लिए हुए हों। यह कहानी एक संदेश है कि अगर किसी जगह से या किसी काम से प्रेम हो जाए, तो इंसान अपनी पहचान भी बदल देता है।
उन्होंने सत्ता से नहीं,राज नहीं किया, बल्कि धरती के एक छोटे से हिल स्टेशन से रिश्ते जोड़े और इतिहास में अमर हो गए। धर्मशाला को ब्रिटिश एडमिनिस्टरेटिव सेंटर बनाने का प्रस्ताव उन्होंने दिया था। इसीलिए उन्हें धर्मशाला का ब्रिटिश फाउंडर भी कहा जाता है।
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