Mandyali धरोहर सहेजने में मिसाल, अभिनय में कमाल रुपेश्वरी

Mandyali धरोहर सहेजने में मिसाल, अभिनय में कमाल रुपेश्वरी

Mandyali  लेखन की 50 की उम्र में शुरुआत, रूपेश्वरी शर्मा 77 साल की उम्र में भी लोक साहित्य सृजन में सक्रिय

विनोद भावुक/ मंडी 
Mandyali (मंडयाली )शब्द जब प्रचलन में नहीं रहेंगे तो फिर Mandyali  का वजूद खत्म हो जाएगा। इसी चिंतन में एक शिक्षिका ने Mandyali के ऐसे सैकड़ों शब्दों को संजो डाला जो धीरे-धीरे Mandyali बोली के प्रचलन से गायब हो चुके हैं। उन्होंने इन शब्दों के हिंदी अनुवाद सहित अनूठा संकलन तैयार किया है। उन्होंने Mandyali के संस्कार व लोक गीतों, लोक मुहावरों और लोकोक्तियों को सहेजने में अहम भूमिका अदा की है। शब्दों के संरक्षण की इस शिल्पी का नाम है रूपेश्वरी शर्मा। आने वाली नस्लों के लिए मंडयाली शब्द संरक्षित रहें, इसके लिए रूपेश्वरी ने अपने संग्रह को प्रदेश भाषा, कला एवं संस्कृति अकादमी शिमला को सौंप दिया है। उन्होंने वर्षों की मेहनत से बोली के संरक्षण के लिए शब्दों का खजाना जुटाया है।
Mandyali के संरक्षण में जुटी रुपेश्वरी

Mandyali ‘सेहरे’ में सहेजे संस्कार गीत

रूपेश्वरी ने Mandyali में संस्कार गीतों को भी सहेजने का काम किया है। उन्होंने इस सिलसिले में ‘सेहरे’ शीर्षक से एक ऑडियो एलबम का निर्माण कर विवाह गीतों को फिर से सांसें दी हैं। जनपद के पुरातन लोकगीतों को फिर से जिंदा करने के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर ऐसे गीतों का ढूंढ निकाला है।

पचास साल की उम्र में लेखन किया शुरू

Mandyali शब्दों का संरक्षण कर रहीं रुपेश्वरी

रूपेश्वरी शर्मा ने Mandyali साहित्य लेखन का काम 50 साल की उम्र के बाद शुरू किया। हालांकि, उन्हें डायरी लेखन की आदत स्कूल के दिनों से थी लेकिन सार्वजनिक रूप से उन्होंने साहित्य की इस प्रतिभा का एहसास बहुत देरी से करवाया। सेवानिवृत्त खंड शिक्षा अधिकारी रूपेश्वरी शर्मा का कहना है कि जिला भाषा अधिकारी विद्या शर्मा ने उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया।

बच्चे स्कूल गए तो शुरू की पढ़ाई

7 दिसंबर 1947 में पैदा हुई रूपेश्वरी ने 1966 में जेबीटी जूनियर बेसिक टीचर की पढ़ाई की। पढ़ाई पूरी करने से पहले 1965 में उनकी शादी हो चुकी थी। शादी के बाद शिक्षिका के रूप में नौकरी दौरान उन्होंने अपने चार बच्चों की परवरिश की। बच्चे स्कूल जाने लगे तो शादी के 12 साल बाद रूपेश्वरी ने फिर पढ़ाई शुरू कर दी। उन्होंने एमए की और बच्चों रश्मि, सीमा अनामिका व मधुव्रत को उच्च शिक्षित करके उन्हें अपने पांवों पर खड़ा किया।

कौन भूल सकता है सांझ की दादी को

76 बसंत देख चुकी रूपेश्वरी शर्मा आज एक शिक्षिका व साहित्यकार के रूप में जानी जाती हैं, लेकिन वही बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। उन्होंने अभिनय में भी छाप छोड़ी है। कई पहाड़ी फिल्मों में उन्होंने अपने अभिनय का बेहतरीन प्रदर्शन किया है। Mandyali लेखिका रुपेश्वरी शर्मा ने पहाड़ी फिल्म “सांझ” के दादी के रोल में उन्होंने दर्शकों के मन में गहरी छाप छोड़ी है। इसके अलावा डीडी काशिर के धारावाहिक जोहरा बेगम में भी अभिनय किया है।

बाल कहानियां भी लिखीं

रूपेश्वरी ने Mandyali में संस्कार गीतों को भी सहेजने का काम किया है। उन्होंने इस सिलसिले में ‘सेहरे’ शीर्षक से एक ऑडियो एलबम का निर्माण कर विवाह गीतों को फिर से सांसें दी हैं। जनपद के पुरातन लोकगीतों को फिर से जिंदा करने के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर ऐसे गीतों का ढूंढ निकाला है।

Mandyali साहित्यकार, लोक गायिका व अभिनेत्री के रूप में पहचान बनाने वाली रूपेश्वरी शर्मा के दो काव्य संग्रह कोख से कब्र तक और धुंध प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने बाल साहित्य की भी रचना की है। उनकी बाल साहित्य पर आधारित दादी नानी की लोक कथाएं प्रकाशित हो चुकी है।  साहित्यकार पवन चौहान के संपापन में प्रकाशित संग्रह में घर चिडु कथा उनकी कहानी शामिल है। गंगाराम राजी के संपादन में प्रकाशित बाल कथा संग्रह में फतु कहानी, डॉ देवकन्या के संपादन में प्रकाशित 21 श्रेष्ठ नारीमन कथा संग्रह में रामवती और पवन चौहान के संपादन के प्रकाशित बाल कहानी संग्रह में कौआ और स्यारिटी में उनकी कहानी शामिल है।
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