मेहनत करने से कभी नहीं कतराई, अनु ठाकुर ने हुनर से मंजिल पाई

मेहनत करने से कभी नहीं कतराई, अनु ठाकुर ने हुनर से मंजिल पाई
प्रेरक : मेहनत करने से कभी नहीं कतराई, अनु ठाकुर ने हुनर से मंजिल पाई
अजय शर्मा/ नलागढ़
आज उसके पास आकर्षक पैकेज वाली जॉब है। सोशल मीडिया पर उनके नाम की तूती बोलती है। आकाशवाणी और दूरदर्शन पर उनकी रचनाएं प्रसारित होती हैं। लोक संस्कृति के संरक्षण को लेकर कंटेन्ट क्रिएटर और इन्फ़्ल्युंसर के तौर अपनी खास इमेज बनाने वाली अनु ठाकुर के लिए यहां तक का सफर कभी इतना आसान नहीं रहा।
अनु ठाकुर कभी कपड़े सिलने का काम करती थी। पशु पालन के साथ मनरेगा तक में दिहाड़ी- मजदूरी करने वाली अनु ठाकुर ने कड़ी मेहनत से अपने हिस्से का सूरज उगाया है। बच्चों को पढ़ाने के साथ खुद पढ़ाई की और साबित कर दिया कि जिद और जुनून से सपनों में रंग भरे जा सकते हैं।
कंप्यूटर साइन्स में मास्टर डिग्री
अनु ठाकुर का जन्म पांच सितंबर 1986 को हमीरपुर जिला के सपनेहड़ा गांव के दंपति कमलेश कुमारी और प्रताप सिंह ठाकुर की पहली संतान के रूप में बेहद साधारण परिवार में हुआ। पिता राज मिस्त्री का काम करते थे और माता गृहणी थी।
उनकी एक छोटी एक बहन और एक भाई हैं। अनु ठाकुर ने हाई स्थानीय सरकारी स्कूल स्कूल बराड़ा से स्कूली पढ़ाई की। डिग्री कॉलेज अणु, हमीरपुर से ग्रेजुएशन की है। शादी के बाद उन्होंने कंप्यूटर साइन्स में मास्टर डिग्री ली है।
‘अम्मा जी’ पहली गुरु
अनु ठाकुर के दादा फ़ौज में रहे थे, जो अनु के पैदा होने के छह महीने बाद चल बसे। दादी रोशनी देवी को अनु ‘अम्मा जी’ बुलाती थी। अम्मा को दादा की पेंशन मिलती थी। स्कूल से एक दिन की छुट्टी लेकर अनु दादी के साथ जाती। वह अम्मा की जगह खड़ी हो जाती।
वह अपनी अम्मा के अलावा बैंक में आने वाले अन्य पेंशनरों के भी विड्राल फॉर्म भरती, जिसके उन्हें ढेर सारा आशीर्वाद और दुलार मिलता। अनु अपनी अम्मा को अपना पहला गुरु मानती हैं। बेशक अम्मा अनपढ़ थी, लेकिन अनु ने ज़िंदगी की बारीकियां, नुस्खे, खाना बनाना और पढ़ाई करना उन्हीं से सीखा।
बेटी के लिए पिता हैं रोल मॉडल
अनु ठाकुर अपने पिता को रोल मॉडल मानती हैं और उनकी सीख पर खरा उतरने की कोशिश करती हैं।
उनके पिता हमेशा कहते थे, ‘सच गलाणा कने सच कमाणा।‘ मतलब कथनी और करनी एक जैसी हो और और सच के रास्ते पर चलो। उनके पिता चाहते थे कि बेटी बड़ा नाम कमाए।
अनु ठाकुर को मलाल है कि बेटी उनके बताए रास्ते पर चल रही है और अच्छा कर रही है, पर यह देखने के लिए उनके पिता इस दुनिया में नहीं हैं। उनका कहना है कि दिल में बसे पिता हमेशा उनके लिए प्रेरक रहेंगे।
पीठ पर बस्ता, सिर पर घास
अनु ठाकुर के मायके में भैंस, गाय, बैल, भेड़ और बकरियां थीं। पढ़ाई के साथ घर के काम में बराबर हाथ बंटाना होता था। सुबह स्कूल जाने से पहले घासनी से घास लाना और स्कूल से छुट्टी होने पर फिर घासनी से घास काटना फिर सिर पर घास और पीठ पर स्कूल का बस्ता टांग कर घर आना उनकी दिनचर्या में शामिल था।
अनु ठाकुर को बचपन से ही लेखन पसंद था, लेकिन घर पर किसी को खबर नहीं थी। समझ भी कम थी और तराशने वाला भी कोई नहीं था। अनु को अपनी प्रतिभा को समझने में खूब वक्त लगा। वह जब भी अखबार या मैगज़ीन हाथ में पकड़ती, तो सोचती काश! ऐसा दिन आए जब वह भी अखबार में फोटो सहित छपे और लोग पढ़ें।
सिलाई का हुनर आया काम
जब 12वीं की बरसात की छुट्टियां हुईं तो अनु की मम्मी ने सिलाई सीखने ताई के घर भेज दिया।
सिलाई सीखने का बिलकुल शौक नहीं था, पर मां ने पिता का डर दिखाया। अनु का दिमाग तेज था। स्कूल की छुट्टियां पूरी होने के 12-13 दिन ही बचे थे, उन्हीं दिनों में अनु ने सिलाई सीख ली।
उनकी ताई सिलाई सिखाने के लिए 100 रुपए महीने की फीस लेते थे, पर अनु ने 45 रुपए फीस देकर दो सप्ताह से भी कम समय में सिलाई में पारंगत हो गई। उसके बाद अनु खुद के कपड़े खुद सिलती ही हैं, साथ ही पास- पड़ोस और रिश्तेदारों के कपड़े सिलकर आय भी अर्जित करती हैं।
शादी के बाद की पढ़ाई
ग्रेजुएशन के बाद 29 अक्टूबर 2007 को अनु ठाकुर की शादी मंडी जिला के सरकाघाट क्षेत्र के टिहरा में हो गई। अनमने मन से ससुराल में सिलाई की दुकान करनी पड़ी। घास, गोबर और पशुओं की जिम्मेवारी साथ थी। दो साल बाद पहली बेटी हुई। बेटी थोड़ी सी बड़ी हुई तो दो साल की कंप्यूटर साइंस से मास्टर्स की डिग्री ली।
पढ़ाई का जब दूसरा वर्ष था तो फर्स्ट ईयर स्टूडेंट्स की क्लास लेने की पार्टटाइम जॉब का ऑफ़र मिला। खुद पढ़ते हुए अब उसने पढ़ना भी शुरू कर दिया। दूसरी बेटी हुई तो जॉब छोड़नी पड़ी। तब तक उनकी मास्टर्स डिगी भी पूरी हो गई थी।
मजदूरी से जॉब तक का सफर
अनु ठाकुर ने कुछ समय गाँव में मनरेगा में भी काम किया है। पति के साथ चंडीगढ़ जाना हुआ तो कॉल सेंटर में जॉब के बारे में पता चला। पति ने सहयोग किया और अनु ने जॉब जॉइन कर ली। चार माह बाद पति से वादे के मुताबिक अनु ने जॉब छोड़ दी घर लौट आई।
मायके के जिस सरकारी स्कूल से अनु ने दसवीं की थी, उसी स्कूल में कंप्यूटर टीचर और क्लर्क का काम करने लगी। बाद में टिहरा के एक प्राइवेट स्कूल में ज्वॉइन किया। छुट्टियों में पति के पास नालागढ़ गई तो एक स्कूल में इंटरव्यू दिया और जॉब मिल गई।
सोशल मीडिया पर नाम और पैसा
अनु ठाकुर ने अब लेखन को समय देना शुरू कर दिया। उनकी रचनाएं विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में छ्पने लगीं। उनको लोक संस्कृति से बेहद लगाव है। अनु ठाकुर साल 2022 से फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब चैनल Himachal Darshan Anu Thakur पर लोक संस्कृति के संरक्षण में जुटी हैं। उनके कंटेन्ट को खूब पसंद किया जाता है और मिलियंस में व्यूज़ आते हैं। अनु ने जॉब के साथ सोशल मीडिया से अपना एक्स्ट्रा इनकम सोर्स जैनरेट किया है।
उन्होंने अपनी संस्कृति संरक्षण और नशा मुक्त बनाने समाज के लिए दो बार ऑफलाइन कार्यक्रम किए हैं। करोनाकाल में बहुत सारे ऑनलाइन साक्षात्कार किए और देश और विदेश से साहित्यकारों के साथ कवि सम्मेलन किए।
काम को मिला सम्मान
अनु ठाकुर अब किसी पहचान की मोहताज नहीं है। वे सामाजिक क्षेत्र में एक जाना- पहचाना चेहरा है।
रक्तदाता के तौर पर 13 अगस्त 2023 को पहली बार रक्तदान करने वाली अनु अब तक पांच बार रक्तदान कर चुकी हैं।
एक साहित्यकार के तौर पर अनु ठाकुर को आकाशवाणी हमीरपुर, डी डी हिमाचल और टीवी चंडीगढ़ से अपनी रचनाएं प्रस्तुत करने का अवसर भी मिला है। उन्हें लोक संस्कृति संरक्षण और साहित्य सृजन के लिए अनेक मंच और संस्थाएं सम्मानित कर चुकी हैं।
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Jyoti maurya

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