नो डॉग्स, नो इंडियंस : ब्रिटिश शिमला का वह बोर्ड, जिसे पढ़कर आज भी खून खौल उठता है

नो डॉग्स, नो इंडियंस : ब्रिटिश शिमला का वह बोर्ड, जिसे पढ़कर आज भी खून खौल उठता है
नो डॉग्स, नो इंडियंस : ब्रिटिश शिमला का वह बोर्ड, जिसे पढ़कर आज भी खून खौल उठता है
विनोद भावुक। शिमला
आज आपकी नजर है पहाड़ों की रानी शिमला की एक चुभती हुई सची कहानी, जिसे पढ़कर आज भी खून खौल उठता है। शिमला जिसे अंग्रेजों ने अपनी समर कैपिटल बनाया, वह हिल स्टेशन ब्रिटिश राज में भारत की सबसे बड़ी नस्लभेदी कहानियों का गवाह भी रहा। कड़वा सच है कि शिमला में अंग्रेज़ लोग भारतीयों को हीन भावना से देखते थे।
ऐसी ही एक नस्लभेदी कहानी जिसका सबसे बदनाम प्रतीक है ब्रिटिश शिमला का वह बोर्ड जिस पर लिखा था, ‘ROYAL SIMLA CLUB – NO DOGS OR INDIANS’। ब्रिटिश समर कैपिटल में सार्वजनिक स्थान पर स्थापित एक ऐसा अपमानजनक बोर्ड, जो आज भी ब्रिटिश शासन की मानसिकता का नंगा सच बयान करता है।
शिमला में थे अंग्रेजों के कई ‘गुप्त नियम’
यह क्लब अंग्रेज़ अफसरों, रईसों और सिविल सर्विस के चुनिंदा सदस्यों का अड्डा था। इस क्लब में भारतीयों की एंट्री सख्त मना थी। चाहे कोई भारतीय बैरिस्टर हो, आईसीएस अफसर हो, राजा-महाराजा हो, या स्वतंत्रता आंदोलन का बड़ा नेता हो, उसका भारतीय होना ही अपराध था।
शिमला में ऐसे कई ‘गुप्त नियम’ थे। मशहूर थियेटरों में हिंदुओं-मुस्लिमों के लिए दूसरी सीटें दी जाती थीं। गेयटी थियेटर में भारतीय सिर्फ ऊपरी बालकनी में बैठ सकते थे। माल रोड पर भारतीयों के घूमने पर भी कई बार रोक लगी थी। जाखू और क्लब हाउस जैसी जगहों पर भी एंट्री पर रोक थी।
इतिहास का ‘सबसे बड़ा सबक’
ब्रिटिश साम्राज्य की नस्लवादी मानसिकता में भारतीयों को इंसान नहीं, दूसरे दर्जे की प्रजा माना जाता था। यह बोर्ड सिर्फ अपमान का प्रतीक था। यह उस दौर के शिमला की चमकदार तस्वीर के पीछे छिपी कड़वी सच्चाई थी। यह बोर्ड इतिहास का ‘सबसे बड़ा सबक’ है।
आज जब यही शिमला पर्यटन, संस्कृति, कला और राजनीति का केंद्र है, तो यह बोर्ड हमें याद दिलाता है कि देश की आजादी सिर्फ राजनीतिक बदलाव ही नहीं था, बल्कि सम्मान की लड़ाई भी थी। शिमला की गलियों में घूमें, तो यह कहानी याद रखें कि कभी ये सड़कें कभी हमारे ही लिए बंद थीं।
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Jyoti maurya

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