अब हिन्दी में पढ़िये महाकवि कालिदास की अमर साहित्यिक कृति ‘मेघदूतम्’, राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने किया एचएएस अधिकारी पुथी पाल सिंह की पुस्तक का विमोचन

अब हिन्दी में पढ़िये महाकवि कालिदास की अमर साहित्यिक कृति ‘मेघदूतम्’, राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने किया एचएएस अधिकारी पुथी पाल सिंह की पुस्तक का विमोचन
अब हिन्दी में पढ़िये महाकवि कालिदास की अमर साहित्यिक कृति ‘मेघदूतम्’, राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने किया एचएएस अधिकारी पुथी पाल सिंह की पुस्तक का विमोचन
विनोद भावुक। शिमला
राजभवन शिमला का माहौल वीरवार को साहित्यिक रंगों से सराबोर रहा। अवसर था कालिदास की प्रख्यात साहित्यिक कृति के हिंदी काव्यात्मक रूपांतरण के विमोचन का। हिमाचल प्रदेश पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम के प्रबंध निदेशक एवं एचएएस अधिकारी पुथी पाल सिंह रचित इस पुस्तक का विमोचन हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने किया।
प्राचीन काल से ही कालिदास भारतीय संस्कृति और साहित्य के अमर प्रतीक माने जाते हैं। उनकी महान कृति मेघदूतम् का हिंदी काव्यात्मक अनुवाद प्रस्तुत करने का साहस पुथी पाल सिंह ने किया है।
लेखक ने अपनी कल्पनाशक्ति और रचनात्मक अभिव्यक्ति से इस ग्रंथ को सरल, सुगम और हिंदी पाठकों के लिए आकर्षक रूप में प्रस्तुत किया है।
इसलिए खास है मुखपृष्ठ और प्रस्तावना
इस पुस्तक की प्रस्तावना हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सुप्रसिद्ध साहित्यकार शांता कुमार ने लिखी है। उन्होंने इसे साहित्यिक उत्कृष्टता का श्रेष्ठ उदाहरण कहा है। पुस्तक का मुखपृष्ठ चंबा के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लघु चित्रकार पद्मश्री विजय शर्मा ने डिजाइन किया है, जिसने पुस्तक की कलात्मक गरिमा को और ऊँचा कर दिया।
पुस्तक विमोचन अवसर पर महामहिम राज्यपाल ने कहा कि कालिदास का साहित्य भारतीय संस्कृति की आत्मा है। मेघदूतम् जैसी अमर कृति को हिंदी में काव्यात्मक शैली में प्रस्तुत करना अत्यंत सराहनीय है। यह कृति न केवल साहित्यकारों और शोधकर्ताओं के लिए दृष्टिकोण प्रदान करेगी, बल्कि विद्यार्थियों को भी नई प्रेरणा देगी।
शास्त्रीय साहित्य और नई पीढ़ी
मेघदूतम् संस्कृत साहित्य की अनुपम रचना है। हिंदी रूपांतरण से यह अब और व्यापक पाठक वर्ग तक पहुँचेगी। इसमें भारतीय संस्कृति, प्रकृति की सुंदरता और मानवीय संवेदनाओं का अद्भुत संगम है। लेखक पुथी पाल सिंह उद्देश्य सिर्फ कालिदास को हिंदी पाठकों तक पहुंचाना ही नहीं है, बल्कि भारतीय शास्त्रीय साहित्य को नई पीढ़ी से जोड़ना भी है।
यह पुस्तक न केवल साहित्यप्रेमियों के लिए एक सौगात है। पुस्तक आने वाली पीढ़ियों को कालिदास की गहराई और भारतीय संस्कृति की धरोहर से जोड़ने के लिए पल का काम करेगी। यह कृति इस बात का प्रमाण है कि साहित्य कभी पुराना नहीं होता, बस उसे नए रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है।
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Jyoti maurya

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