पांडवकालीन श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर चनौर, जहां हर रोज लगता है भंडारा, श्रद्धालुओं के लिए ठहरने की निशुल्क व्यवस्था

पांडवकालीन श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर चनौर, जहां हर रोज लगता है भंडारा, श्रद्धालुओं के लिए ठहरने की निशुल्क व्यवस्था
श्री लक्ष्मी नारायण मन्दिर चनौर को लेकर एक कथा प्रचलित है. कथा के अनुसार मूर्ति स्थापना के बाद अम्ब का राजा भंडारे के लिए 125 मन चावल लाया. जब चावल पके तो उसने कांगड़ा के राजा घमण्ड चन्द से कहा कि इतना कौन खायेगा ?
राजा का इतना बोलना था कि भंडारे में इतने लोग आए कि भोजन कम पड़ गया और आधे लोग मंदिर से भूखे गए, इससे राजा की बहुत किरकिरी हुई,
राजा वापिस अपनी रियासत में पहुंचा तो उस पर भगवान का कोप पड़ गया। राजा को हर समय लक्ष्मी नारायण की मूर्ति दिखाई देती. मूर्ति उससे कहती कि उसके दरबार में आकर राजा को इतना घमंड ?
अगली बार राजा ने पच्चीस मन चावल के साथ नंगे पांव मंदिर की परिक्रमा की। भंडारे में इस बार भी लोग 25 मन चावल खा कर चले गए।
आम जनमानस के मानस पर अंकित इस लोककथा सहित इस मंदिर को लेकर कई कथाएं सुनाई जाती हैं. साक्षात प्रत्यक्ष देव स्थान को लेकर सच यह है कि यहां हर रोज भंडारे का आयोजन होता है और मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए ठहरने की निशुल्क व्यवस्था है.
कांगड़ा जिला के देहरा उपमंडल के चनौर गांव में द्वापर युग में पाण्डवों के बनवाए तीन मन्दिर हैं। पहला मन्दिर दुर्गा चण्डी का है। दूसरा मन्दिर श्री लक्ष्मी नारायण का है और तीसरा मन्दिर श्री रुद्र भगवान (शिव महादेव) का है।
बताया जाता है कि पहले मन्दिर में चण्डी दुर्गा और तीसरे मन्दिर में रुद्र की मूर्ति स्थापना खुद पाण्डवों ने की थी.
इन दोनों मन्दिरों के मध्य में छोटा मन्दिर (गुफा) है, जिसमें श्री लक्ष्मी नारायण विराजमान है।
परिसर में बना दूसरा मन्दिर उस समय खाली था. पाण्डवों ने कहा था कि इस मन्दिर में भगवान की मूर्ति विराजमान होंगी और गांव चनौर के नाम से मशहूर होगा।
बात उस समय की है जब कांगड़ा के राजा घमण्ड चन्द थे. चनौर से अंदाजन आधे मील के फासले पर चपलाह नामक स्थान पर हल चलाते समय भूमि में से मूर्ति प्रकट हुई। किसान ने हल को पीछे खींच कर बड़ी सावधानी से मूर्ति को बाहर निकाला।
चूँकि यह स्थान कांगड़ा और डाडा सीबा की सीमा पर था, इसलिए दोनों राजाओं को सूचित कर दिया गया।
राजाओं के साथ कई विद्वान पधारे।
डाडा सीबा रियासत के राजा ने मूर्ति की चपलाह गांव में ढाई मील दक्षिण की ओर टिपरी का बाग नामक स्थान पर विराजमान करना चाहा।
मूर्ति को सुखपाल में बैठा कर चार पुरूषों ने उठाकर टिपरी के बाग में रख दिया.
स्थान निश्चित करने के बाद जब फिर सुखपाल को उठाने लगे तो वह इतना वजनदार हो गया कि 50 आदमी भी उसको नहीं उठा पाए.
राजा को स्वप्न हुआ कि मूर्ति को स्नान कराओ. पानी के लिए उन्होंने खड्ड में छोटा-सा गढ़ा किया और देखते ही देखते वहां पानी ही पानी निकल पड़ा. पहले वहां पर पानी नहीं था।
कुछ दिन मूर्ति वहीं रही. दोनों राजाओं में मूर्ति स्थापना को लेकर बहस हो गई।
राजा घमण्ड चन्द को स्वप्न में आदेश हुआ कि मूर्ति की पाण्डवों द्वारा बनाये मन्दिर के मध्य वाले स्थान पर स्थापना की जाये।
जिस सुखपाल को 50 व्यक्ति नहीं उठा सके थे, उसी सुखपाल में रखी मूर्ति को एक ही पुरुष ने अपने कन्धे पर उठा लिया, जिस रास्ते से मूर्ति को लाया गया, उस रास्ते में पानी निकलता गया। चण्डी दुर्गा और रुद्र के मध्य में खाली मन्दिर में मूर्ति को विराजमान कर दिया गया.
इस गांव का असली नाम कसौली है। इन तीन मन्दिरों के कारण इसका नाम चनौर पड़ा। दुर्गा चण्डी से “च” शब्द लिया गया। नारायण से “न” शब्द दिया गया और रुद्र से “र” शब्द लिया गया। इन तीनों को मिला कर चनर बना, जो कलांतर में चनौर बन गया।
पानी की कूहल के जरिये मन्दिरों तक लाया गया। अब पानी बारह मास चलता रहता है। मन्दिर के चारों ओर पानी कूहलों द्वारा बहता है। गर्मियों-सर्दियों में पानी एक जैसा बहता रहता है।
कहा जाता है कि डाडा सीबा के राजा राम सिंह पानी को कूहल बनवा कर अपनी रियासत को ले चले. राजा की कूहल में पानी चढने से पहले सूख गया, तो एक बार फिर कोशिश की गई. तब राजा को स्वप्न हुआ जिसमें भगवान ने कहा कि यह मेरा पानी है, यह मेरे चरणों में बहेगा इस पर राजा ने पानी ले जाने के विचार त्याग दिया. राजा द्वारा बनवाई उन कूहलों के निशान अभी भी मिलते हैं।
मंदिर में पूजा राजा घमण्ड चन्द के पुरोहित काश्मीरी पण्डतों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी की जाती आ रही है। साल भर यहां यज्ञ होते हैं। नव विवाहित जोड़े आशीर्वाद लेने इस मंदिर में आते हैं और नव विवाहितें मंदिर में चूड़ा उतरने की रीत निभाती हैं.
हिमाचल प्रदेश और पंजाब में इस मंदिर के प्रति लोगों में गहरी आस्था है और बड़ी संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं.
हाई कोर्ट के दखल के बाद मंदिर के संचालन के लिए मंदिर कमेटी का गठन किया गया है. एसडीएम देहरा को कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है. मंदिर में पूजा करने वाले महंत परिवार को चढ़ावे का आधा हिस्सा मिलता है..
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