Pangna Fort: पर्यावरण सात मंज़िला भूकंपरोधी किला

वीरेंद्र शर्मा वीर/ चंडीगढ़
Pangna Fort एक एटिहासिक धरोहर है। मंडी जिला का पांगणा कस्बा कई वर्षों तक सुकेत राजवंश की राजधानी रहा है। सुकेत की स्थापना लगभग 765 ईस्वी में बंगाल के सेन राजा के पुत्र राजा वीर सेन ने की थी। 778 ई. में करसोग कस्बे के पास कुनू धार पर पहला महल बनाया गया, लेकिन बाद में वे पांगणा को राजधानी बनाया गया, जहां पांगणा किले का निर्माण किया गया। पांगणा किले का निर्माण सुकेत राजवंश के राजा वीर सेन ने लगभग 1211 ई. में करवाया था। Pangna Fort एक मीनार जैसी संरचना है। किले की सात मंजिला संरचना लगभग 60 फीट ऊंची है। किले की निचली पाँच मंजिलें साधारण मीनार जैसी संरचना हैं। ऊपर की दो मंजिलों में बरामदे के साथ बालकनियाँ और सुंदर रेलिंग हैं।
काठकूणी शैली का शानदार उदाहरण
Pangna Fort स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री जैसे पत्थर और लकड़ी से बना है, जो प्रकृति और पर्यावरण के अनुकूल हैं। इसे स्थानीय कारीगरों से बनाया गया है। पांगणा किला पारंपरिक वास्तुकला शैली में बना है, जिसे काठकूणी के नाम से जाना जाता है। काठ-कुन्नी इमारतें भूकंप प्रतिरोधी होती हैं। यह किला उस दौर की निर्माण कला का एक सुंदर उदाहरण है। पांगणा का माहामाया मंदिर भी धरोहर मंदिर है।
Pangna Fort की विशेषताएं
Pangna Fort में किला भवन, मंदिर, हॉल, हवन क्षेत्र और देखभाल करने वाले के लिए एक छोटी सी इमारत शामिल है। किले में प्रवेश दो तरफ से है, उनमें से एक सरल है और दूसरा पारंपरिक शैली में बना एक विस्तृत द्वार है। किले के बाहरी हिस्से पर छोटी-छोटी खिड़कियाँ हैं। किले के पीछे की ओर एक बावड़ी है। किले में प्रवेश करने के लिए सीढ़ियाँ हैं।
किले को संरक्षण की जरूरत
सेन वंश के पचास से अधिक प्रतापी राजाओं की आश्रयस्थली उनका हजार साल से ज्यादा पुराना Pangna Fort समय के थपेड़े सहते- सहते जर्जर हालत में पहुंच गया है। आज़ादी के बाद राजा लक्ष्मण सेन द्वारा राज्य के भारतीय जनसंघ में विलय के बाद अपनी शैली के लिए मश्हूर ये ऐतिहासिक धरोहर खंडहर में बदलती जा रही है। क्षेत्र के प्रसिद्ध बागवान , समाजसेवी और धार्मिक ऐतिहासिक मामलों के जानकार डॉ. जगदीश शर्मा अपने दम पर इस धरोहर को बचाने की मुहिम चला रहे हैं।
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