सियासी किस्से : नियुक्तियों में हुई बंदरबाँट तो दलित लड़की के बताने पर शांता कुमार ने कैंसिल कर दी थी 500 पदों के लिए हुई भर्ती परीक्षा

सियासी किस्से : नियुक्तियों में हुई बंदरबाँट तो दलित लड़की के बताने पर शांता कुमार ने कैंसिल कर दी थी 500 पदों के लिए हुई भर्ती परीक्षा
हिमाचल बिजनेस/ धर्मशाला
आज से 48 साल पहले 1977 में शांता कुमार हिमाचल प्रदेश का मुख्यमंत्री बने। प्रदेश के एक सरकारी विभाग में 500 नियुक्तियां की जा रही थीं। उस विभाग के मंत्री शांता कुमार के विश्वसनीय मित्र और पार्टी के प्रमुख नेता थे। शांता कुमार शिमला जिला के एक स्थान पर कार्यक्रम में गए थे, जहां उनसे मिलने के लिए बहुत से लोग खड़े थे। शांता कुमार ने देखा, मैले कपड़ों में एक लड़की उस भीड़ से रास्ता बनाकर उनसे मिलना चाह रही है। पुलिस उस लड़की को रोक रही है। यह देख शांता कुमार ने उस लड़की को अपने पास बुलाया।
आते ही लड़की फूट-फूट कर रोने लगी। शांता कुमार ने उसे अपनी बात कहने को कहा। इस पर लड़की बोली, ‘मैं इस गाँव की एक गरीब हरिजन परिवार की लड़की हूँ। मैंने बिजली विभाग में टेस्ट दिया था। मैं प्रथम श्रेणी में पास हूँ, लेकिन मैं उस टेस्ट को पास नहीं कर सकी। पड़ोस के गाँव का एक तृतीय श्रेणी में पास एक नेता का लड़का पास हो गया है। ऐसे और भी कई पास हो गए।‘
शांता कुमार ने उस लड़की का नाम-पता लिखा। शिमला पहुँच कर उन्होंने सारा रिकॉर्ड मँगवाया और अपने प्रमुख अधिकारी को जाँच पर लगाया। उनकी हैरानी की सीमा नहीं रही, जब यह पता लगा कि 500 में से लगभग 200 रिजल्ट बदल दिये गए थे। नीचे वाले को ऊपर और ऊपर वाले को नीचे कर दिया गया था।
शांता कुमार गहरी सोच में पड़ गए। वह केवल एक वोट से मुख्यमंत्री बने थे। जनता पार्टी के 54 विधायकों में जनसंघ के केवल 16 थे। सब ने उनसे कहा, चुप रहो, आँखें बंद कर लो। यदि कुछ किया तो कुर्सी चली जाएगी। शांता कुमार ने भर्ती की फाइल उठाई और सीधे दिल्ली अटल बिहारी वाजपेयी के पास पहुँचकर उन्हें पूरी बात बताई।
विभाग के मंत्री का नाम सुनकर अटल भी एक बार चिंता में पड़ गए और फिर शांता कुमार की ओर देखकर पूछा, ‘क्या करना चाहते हो ?’ शांता कुमार ने कहा, ‘ कितनी भी कीमत चुकानी पड़े, मैं नियुक्तियों को रद्द करूँगा। वाजपेयी का आशीर्वाद लेकर शांता कुमार शिमला लौटे और इन पदों के लिए हुई परीक्षा रद्द कर दी।
उसी दिन से हिमाचल प्रदेश जनता पार्टी में भयंकर संकट आ गया। उनके कुछ मित्र उनके शत्रु बन गए। जिनके बच्चे पास हुये थे, वे नाराज हो गए। पूरे प्रदेश में उनके साहसिक कदम की खूब तारीफ हुई, लेकिन शांता कुमार को सदन के अंदर दो बार विश्वास मत लेना पड़ा। शांता कुमार ने अपनी एक पुस्तक में इस प्रसंग का उल्लेख किया है।
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