Prisoners of War : इटली में छ्पे योल के दिन
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अंग्रेजों के ताकतवर होने के प्रति भारतीयों में शक पैदा कर गए इटली के युद्धबंदी
विनोद भावुक/ धर्मशाला
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान कांगड़ा के योल में इटली के Prisoners of War (युद्धबंधियों) को कैद किया गया था।
विश्वयुद्ध के खत्म होने के बाद देश लौटे Prisoners of War ने योल के अपने जेल के अनुभवों के बारे में इटालियन में कुछ किताबें प्रकाशित की, लेकिन यह ज्ञात नहीं कि कोई भी सैनिक कभी योल वापस आया या नहीं।
योल का दौरा करने वाले इटली के पहले संवाददाता
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद योल का दौरा करने वाले साप्ताहिक ‘इल टेम्पो’ के संवाददाता गीनो टोमाजुओली इटली के पहले पत्रकार थे। उन्हें सिर्फ पांच मिनट के लिए युद्धबंधियों के शिविर में जाने की अनुमति मिली थी, लेकिन विभिन्न तरकीबें लड़ा कर वह पूरा दिन वहां रहने में कामयाब रहे थे।
उन्होंने देखा कि इतालवी कैदियों को फुटबाल ग्राउंड बनाने के लिए पहाड़ को समतल करने के लिए बहुत काम करना पड़ रहा था।
कैदी नए भारत के दुश्मन
मई 1949 में गीनो टोमाजुओली एक दिलचस्प लेख लिखा। वे लिखते हैं, ‘भारत अब स्वतंत्र हो चुका है और कश्मीर पर कब्ज़ा करने के लिए पाकिस्तान के साथ ‘शाश्वत युद्ध’ शुरू कर चुका है।
गांधी की हत्या कर दी गई है और एक महीने से इटली अटलांटिक गठबंधन में शामिल हो गया है। शिविर नंबर 28 अभी भी उपयोग में है। इस बार कैदी नए भारत के दुश्मन भारतीय असंतुष्ट, कम्युनिस्ट और कश्मीर में पकड़े पाकिस्तानी सेना के सलाहकार दो ब्रिटिश अधिकारी हैं।
इटालियंस के प्रति दयालुता
गीनो टोमाजुओली आगे लिखते हैं, ‘युद्धबंदी शिविर का निदेशक एक सिख कप्तान है, जो अभी भी Prisoners of War इटालियंस को दयालुता के साथ याद करता है और पर्यटकों के रूप में उनकी वापसी की उम्मीद करता है। कप्तान ने शिविर के वर्तमान मेहमानों और Prisoners of War इटालियंस के बीच व्यवहार में अंतर पर टिप्पणी की।’
अंग्रेजों से मुक्ति में योगदान
कप्तान ने टोमाजुओली को बताया, ‘भारत में हर जगह कोई भी इटली और Prisoners of War इटालियंस के लिए एक जीवंत सहानुभूति और विनम्र जिज्ञासा पाता है। भारतीयों को पांच पीढ़ियों से अंग्रेजों द्वारा शिक्षित किया गया है। उनमें यह विश्वास पैदा किया गया है कि यूरोप एक शक्तिशाली, विशाल और मेहनती इंग्लैंड से बना है।
इतालवी Prisoners of War अंग्रेजों के विश्वास के प्रति भारतीयों में संदेह पैदा करने वाले पहले लोग हैं। अनैच्छिक रूप से ही सही, उन्होंने अंग्रेजों की श्रेष्ठता से भारत की धीमी मुक्ति में योगदान दिया।’
योल में इटालियंस की यादगार
विदाई के रूप में इतालवी Prisoners of War ने एक स्मारक बनाया जो आज योल छावनी में खड़ा है। स्मारक का वर्णन इस प्रकार है:
स्वतंत्र होने के लिए जन्मे
असामान्य पत्थर का अवशेष साल 1941 से 1945 तक युद्धबंदी शिविर योल में बंद रहे इतालवी Prisoners of War ने बनाया था। पत्थरों की सबसे ऊपरी जोड़ी मनुष्य की स्वतंत्रता की अतृप्त प्यास का प्रतीक है, जिसे यहां एक पक्षी के पंखों के जोड़े के रूप में दर्शाया गया है, जो खुद को कैद से मुक्त करने के लिए संघर्ष कर रहा है।
संरचना का बाकी हिस्सा जेल की दीवारों का प्रतिनिधित्व करता है। यह सुंदर विचार यह मानवीय भावना का प्रतीक हैं, जिसे Prisoners of War होते हुए भी इटालियन अपने पीछे छोड़ गए।
इन्हें भावी पीढ़ी को बनाए रखना चाहिए और उसका अनुकरण करना चाहिए। आज तक यह साथी सैनिकों के सहयोग से अछूता खड़ा है और प्रकृति और समय दोनों के क्रूर क्रोध से भी बचा हुआ है।
‘मैं एक सैनिक हूं…..’
इस स्मारक के साथ की दो अन्य स्मारक हैं। एक बड़े आकार का घिसा हुआ जूता, जो कड़ी मेहनत का प्रतिनिधित्व करता है, जिस पर कैप्शन है ‘मैं एक सैनिक हूं और अपने राष्ट्र की रक्षा करना मेरा धर्म है।’थोड़ा ऊपर राजपूत शैली में एक विशाल सुंदर पत्थर की स्मृति दीवार है, जिसका नाम ‘श्रद्धा-तारा’ है, जो राइजिंग स्टार कोर के वीर शहीदों की याद में बनाई गई है, जिन्होंने राष्ट्र के लिए अपनी सेवाएं देनी शुरू कीं, लेकिन वापस नहीं लौटे।
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