प्राइवेट जैम्स जोसफ डाली : आयरलैंड की आजादी के महानायक, जिन्हें 22 साल की उम्र में सोलन के डगशाई में दिया गया था मृत्युदंड

प्राइवेट जैम्स जोसफ डाली : आयरलैंड की आजादी के महानायक, जिन्हें 22 साल की उम्र में सोलन के डगशाई में दिया गया था मृत्युदंड
प्राइवेट जैम्स जोसफ डाली : आयरलैंड की आजादी के महानायक, जिन्हें 22 साल की उम्र में सोलन के डगशाई में दिया गया था मृत्युदंड
विनोद भावुक/ सोलन
भारत की तरह आयरलैंड पर भी अंग्रेजों का शासन था, जिसे भारत के दो साल बाद 18 अप्रैल 1949 को आजादी मिली। आयरलैंड की आजादी की लड़ाई आयरलैंड के बाहर भी लड़ी गई और। वहाँ के कई देशभक्तों ने अपने वतन को आजाद करवाने के लिए भारत में भी आयरलैंड के सैनिकों ने विद्रोह किया और कुर्बानियां दीं।
रोचक, मनोरंजक और ज्ञानवर्धक कहानियों के प्लेटफॉर्म ‘हिमाचल बिजनेस’ पर आज प्रेरक कहानी आयरलैंड के स्वतन्त्रता संग्राम के महान नायक प्राइवेट जैम्स जोसफ डाली की, जिन्होंने अपने वतन की आजादी की लड़ाई ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हिमाचल प्रदेश के सोलन कस्बे से लड़ी और 22 साल की उम्र में मातृभूमि पर शहीद हो गए।
जोसफ डाली को डगशाई की एक कब्र में दफनाया गया। साल 1970 में आयरिश विद्रोह की 50वीं वर्षगांठ पर डगशई में आयरलैंड के महानायक जोसफ डाली की कब्र खोदकर उसके पार्थिव शरीर को आयरलैंड ले जाया गया। जोसफ डाली आयरलैंड के एक महान स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा मिला। जोसेफ़ डेली को आज भी एक पारंपरिक आयरिश गीत में याद किया जाता है जिसे ‘ले हिम अवे ऑन द हिलसाइड’ के नाम से जाना जाता है।
भारत में भी लड़ा गया एग्लो-आयरिश
भारत की तरह आयरलैंड पर भी अंग्रेजों का कब्जा था। वहाँ के लोग अंग्रेजों के अधिपत्य से दुखी थे। 1919-1921 के बीच आयरलैंड के देशभक्तों ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ा, जिसे आयरिश वार ऑफ इन्डीपेंडेस अथवा एग्लो-आयरिश युद्ध कहा जाता है। साल 1920 में ही एग्लो-आयरिश युद्ध में 300 से अधिक आयरिश देशभक्तों ने अपने देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर सर्वोच्च बलिदान दिया। इस युद्ध का अंत 11 जुलाई 1921 को हुआ।
उस वक्त भारत में तैनात अंग्रेजी सेना में आयरलैंड की सैन्य कंपनियां शामिल थीं। इनमें से एक कंपनी जालंधर तथा दूसरी सोलन छावनी में तैनात थी। जालंधर और सोलन में ब्रिटिश सेना में तैनात आयरलैंड के सैनिकों ने भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर आदेशों को मानने से इंकार कर दिया और अपने राष्ट्र ध्वज और आयरिश रिपब्लिक पार्टी के चिन्ह को लहराया।
बंदूकें लूटने की कोशिश, ब्रिटिश सैनिकों ने चलाई गोली
20 जून 1920 को जालंधर में तैनात कनाट रेंजर्ज की एक कम्पनी ने आयरलैंड में ब्रिटिश सैनिकों के दमन के विरोध में अपनी सैन्य सेवाएं देने से मना कर दिया। अगले ही दिन आयरलैंड के सैनिकों वाली इस कंपनी के दो क्रांतिकारियों को जालंधर से सोलन छावनी भेजा गया। उस वक्त आयरलैंड कनाट रेंजर्ज की एक अन्य कम्पनी सोलन में तैनात थी। सोलन की कंपनी के आयरिश सैनिकों ने बगावत कर दी।
आयरलैंड के सैनिकों में अपने वतन की आजादी के तराने गाए और ब्रिटिश वर्दी के ऊपर रिपब्लिकन पार्टी का चिन्ह लगाया। 1 जुलाई 1920 की शाम को 30 आयरिश सैनिकों ने सोलन छावनी में शस्त्रागार से बंदूकें और असला- बारूद लूटने का प्रयास किया। इस पर सुरक्षा में तैनात ब्रिटिश सैनिकों ने गोली चला दी, जिससे दो आयरिश सैनिकों की मौत हो गई और कई घायल हुए।
आयरिश सैनिकों का कोर्ट मार्शल
इस घटना के बाद सोलन तथा जालंधर छावनी में आयरिश सैनिकों को नजरबंद कर भारी सुरक्षा व कड़े पहरे में रखा गया। आयरिश सैनिकों का कोर्ट मार्शल किया गया। 61 सैनिकों को विद्रोह करने व सैन्य नियमों का पालन न करने के लिए दोषी पाया गया, जिसमें से 15 आयरिश सैनिकों को फांसी की सजा सुनाई गई। जैम्स जोसफ डाली तथा अन्य दोषी सैनिकों को सोलन छावनी के समीप डगशाई छावनी के कारागार में में बनाई गई काल कोठरियों में रखा गया।
मृत्युदंड के रूप में गोलियों से जैम्स जोसफ डाली के शरीर के चीथड़े उड़ा डाले। शरीर के छोटे-छोटे हिस्सों को इकट्ठा कर माचिस की डिबियों में बंद कर कब्र में दफनाने के लिए पादरी को दिया। वह ब्रिटिश सेना का आखिरी अधिकारी था जिसे अपनी सेना के विरुद्ध बगावत करने के लिए मृत्युदंड दिया गया था।
कुर्बानी लाई रंग
जैम्स जोसफ डाली को सोलन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ हुए आयरिश विद्रोह का नेता माना गया। उन्हें अन्य दोषी सैनिकों के साथ सोलन छावनी के समीप डगशाई छावनी के कारागार में में बनाई गई काल कोठरियों में रखा गया। 2 नवम्बर 1920 को प्राइवेट जैम्स जोसफ डाली को ब्रिटिश सैनिकों ने डगशाई के कारगार में फायरिंग स्कार्ड ने गोली मार कर मृत्यु दंड दिया।
जिस वक्त इस महानायक को मृत्युदण्ड दिया गया, वह मात्र 22 वर्ष का था। जोसफ डाली ने अपनी माता को लिखे आखिरी पत्र में लिखा ‘यह सब मातृभूमि आयरलैंड के लिए है, मैं मरने से डरता नहीं हूं।‘
भारत की जमीन पर शहीद होने वाले आयरलैंड के महान नायक जोसेफ़ डोली की कुर्बानी व्यर्थ नहीं गई। भारत की आजादी के दो साल बाद साल 1949 में आयरलैंड भी अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुआ।
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Jyoti maurya

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