Pustak Vivad: ’संभोग से समाधि’ को लेकर ओशो के खिलाफ कुल्लू कोर्ट ने निकला गिरफ्तारी वारंट अमेरिका तक गया

बोम्बे हाई कोर्ट से शिमला हाईकोर्ट तक हुई मामले की सुनवाई
विनोद भावुक/ कुल्लू
Pustak Vivad का यह प्रकरण 1986 का है। आचार्य रजनीश जिन्हें उनके अनुयायी भगवान मानते थे, कुल्लू आए। पतलीकूहल के एक रिसोर्ट में उनके जन्मदिन पर योग साधना का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस आयोजन में दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया के संवाददाता एवं वरिष्ठ पत्रकार नवल ठाकुर भी शामिल हुए। उन्होंने आयोजन के दौरान ही उनकी बहुचर्चित किताब ’संभोग से समाधि’ को पढ़ डाला। किताब में शामिल शिव और पार्वती को लेकर लिखे गए कथित अशलील एक प्रसंग को लेकर एक पत्रकार इनता दुखी हुआ कि कुल्लू की एक अदालत में रजनीश ओशो के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करवा दिया। ओशो की इस किताब पर Pustak Vivad शुरू हो गया।
Pustak Vivad पर कुल्लू कोर्ट ने निकाले गिरफ्तारी वारंट
Pustak Vivad पर कुल्लू के तत्कालीन एडिशनल जज जेएन भरवालिया ने चर्चित किताब को गवाह मानते हुए आचार्य रजनीश के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिए। आचार्य रजनीश के अनुयाशी एक अधिवक्ता ने कोर्ट के आदेश की सूचना उन तक पहुंचा दी। इससे पहले ही कोर्ट के आदेश पर अमल हो पाता अगली ही सुबह रजनीश ओशो अपने निजी जाहज से कुल्लू से निकल निकल गए।
गिरफ्तारी वारंट के खिलाफ बोम्बे हाई कोर्ट में याचिका
Pustak Vivad पर कुल्लू कोर्ट से जारी गिरफ्तारी वारंट पूरे देश में घूमता रहा, लेकिन वारंट की तामील नहीं हो पाई। रजनीश ओशो अमेरिका चले गए थे, इसलिए कुल्लू कोर्ट के वारंट को अमेरिका भी भेजा गया, लेकिन आचार्य रजनीश ओशो को वारंट फिर भी तामील नहीं हुई। अपनी पुस्तक’ कड़वा सच’ में नवल ठाकुर ने लिखा है कि फिर आचार्य रजनीश की ओर से बोम्बे हाईकोर्ट में गिरफ्तारी वारंट के विरूध याचिका दायर की गई और बोम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें बहस के लिए बोम्बे बुलाया।
बॉम्बे के बाद शिमला का सफ़र
नवल ठाकुर अपनी पुस्तक में लिखा है कि उन्होंने एक पत्र लिख कर बोम्बे हाईकोर्ट को सूचित किया कि बोम्बे हाईकोर्ट को याचिका सुनने का अधिकार नहीं है, क्योंकि मामला हिमाचल प्रदेश का है और हिमाचल प्रदेश में ही घटना हुई है। इस पर बोम्बे हाईकोर्ट ने रजनीश ओशो की याचिका खारिज कर दी। तब आचार्य रजनीश ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट शिमला में गिरफ्तारी वारंट के विरूध याचिका दायर की। Pustak Vivad पर अदालत ने आचार्य रजनीश के हक में फैसला देकर नवल ठाकुर की मूल शिकायत को खारिज कर दिया और गिफ्तारी से आचार्य रजनीश को राहत मिली।
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