Rock Temple : मसरूर से स्वर्ग सा दिखता धौलाधार

Rock Temple : मसरूर से स्वर्ग सा दिखता धौलाधार

विनोद भावुक/ धर्मशाला

पहाड़ पर एक ही चट्टान को काट कर बनाया गए इस मंदिर समूह को कोई हिमालयन पिरामिड कहता है तो कोई हिमालयन एलोरा। कांगड़ा से 15 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित Rock Temple मसरूर से जुड़ी कुछ कहानियां, कई दन्त कथाएं और रहस्यमयी इतिहास है। कभी इस मंदिर से धौलाधार को निहारना स्वर्ग सी अनुभूति देता  है।

पुरातत्व विभाग के अनुसार 8वीं सदी में बना Rock Temple समुद्र तल से 2500 फुट की ऊंचाई पर स्थित उत्तर भारत का इकलौता ऐसा मंदिर है।

पुरातत्व विभाग के अनुसार 8वीं सदी में बना Rock Temple समुद्र तल से 2500 फुट की ऊंचाई पर स्थित उत्तर भारत का इकलौता ऐसा मंदिर है।

मुख्य मंदिर वस्तुत: एक शिव मंदिर था, जिसके साथ विभिन्न मंदिर थे। साल 1905 में कांगड़ा में आए बड़े भूकंप से मसरूर के मंदिर काफ़ी हद तक नष्ट हो गए।

पहाड़ पर एक ही चट्टान को काट कर बनाया गए इस मंदिर समूह को कोई हिमालयन पिरामिड कहता है तो कोई हिमालयन एलोरा। कांगड़ा से 15 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित Rock Temple मसरूर से जुड़ी कुछ कहानियां, कई दन्त कथाएं और रहस्यमयी इतिहास है।

अभी यहां श्री राम, लक्ष्मण व सीता की मूर्तियां स्थापित हैं। सदियों गुमनामी में डूबा रहा यह मंदिर अब पुरातात्विक महत्व की राष्ट्रीय धरोहर है।

Rock Temple के पास कभी रहा होगा नगर

Rock Temple के पास पहाड़ी ढलान पर जंगली क्षेत्र में फैले वास्तु अवशेषों के आधार अनुमान लगाना आसान है कि प्राचीन समय में मसरूर मंदिर के आसपास एक नगर रहा होगा।

Rock Temple के पास पहाड़ी ढलान पर जंगली क्षेत्र में फैले वास्तु अवशेषों के आधार अनुमान लगाना आसान है कि प्राचीन समय में मसरूर मंदिर के आसपास एक नगर रहा होगा। मुख्य मंदिर समूह के अलावा पहाड़ी की पूर्वी दिशा में कुछ शैलोत्कीर्ण गुफाएं और तालाब है। इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि ये गुफाएं उस समय के शैव धर्मावलंबियों एवं अनुयायियों के आवास थे।

1835 में ऑस्ट्रिया के खोजकर्ता ने किया मंदिर का ज़िक्र

साल 1835 में ऑस्ट्रिया के खोजकर्ता बैरन चार्ल्स हूगल ने कांगड़ा के एक ऐसे Rock Temple का ज़िक्र किया है। उनके अनुसार यह मंदिर एलोरा के मंदिरों से काफ़ी मेल खाता है।

साल 1835 में ऑस्ट्रिया के खोजकर्ता बैरन चार्ल्स हूगल ने कांगड़ा के एक ऐसे Rock Temple का ज़िक्र किया है। उनके अनुसार यह मंदिर एलोरा के मंदिरों से काफ़ी मेल खाता है।

यूरोप के एक अन्य यात्री ने भी साल 1875 में एक ऐसे ही मंदिर का ज़िक्र किया है, लेकिन  ब्रिटिश राज में उस समय के अंग्रेज़ अधिकारियों ने इस मंदिर पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया।

नजर में ऐसे चढ़ा Rock Temple

हारग्रीव्ज़ ने मंदिरों का अध्ययन किया और साल 1915 में Rock Temple मसरूर मंदिर पर एक पुस्तक लिखी, जिसके प्रकाशन के बाद इस मंदिर को भारतीय पुरातत्व विभाग का संरक्षण मिला।

साल 1913 में अंग्रेज़ अधिकारी हेनरी शटलवर्थ Rock Temple मसरुर आया। इसी अधिकारी को इस मंदिर की खोज का श्रेय दिया जाता है। उसने इस अद्भुत मंदिर के बारे में भारतीय पुरातत्व विभाग के अंग्रेज़ अधिकारी हेरोल्ड हारग्रीव्ज़ को बताया था।

हारग्रीव्ज़ ने मंदिरों का अध्ययन किया और साल 1915 में Rock Temple मसरूर मंदिर पर एक पुस्तक लिखी, जिसके प्रकाशन के बाद इस मंदिर को भारतीय पुरातत्व विभाग का संरक्षण मिला।

पत्थर पर नक्काशी का बेजोड़ नमूना

Rock Temple मसरूर मंदिर पत्थर पर नक्काशी की बेजोड़ कला का नमूना है। पहाड़ काट कर गर्भ गृह, मूर्तियां, सीढ़ियां और दरवाजे बनाए गये हैं। मंदिर की दीवार पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश और कार्तिकेय के साथ अन्य देवी- देवताओं की आकृतियां बनाई गई हैं।

पत्थरों पर ऐसी बारीक नक्काशी करना कोई आसान काम नहीं रहा होगा। कारीगर कौन थे? कहाँ से आए थे? अभी तक ऐसे कई सवाल बिना जवाब के हैं।

मंदिर के सामने खूबसूरत झील

Rock Temple मंदिर के बिल्कुल सामने विशाल झील है, जो मंदिर की खूबसूरती में और भी निखार देती है। झील में अब भी पानी मौजूद है। इस झील में मानों सामने खड़ा धौलाधार उतर आता है। यहां से धौलाधार की सुंदरता देखते ही बनती है।

इस झील में मंदिर के कुछ हिस्सों का प्रतिबिंब भी दिखाई देता है। जनश्रुतियों के मुताबिक इस झील को पांडवों ने ही अपनी पत्नी द्रौपदी के लिए बनवाया था।

पांडवों से जुड़ी दंतकथा

दन्त कथाओं के मुताबिक Rock Temple मसरूर मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान किया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत में पांडवों ने अपने वनवास के दौरान इस मंदिर का निर्माण किया था और अपनी पहचान उजागर होने से पहले ही यह जगह छोड़ कर कहीं और चले गए।

कहा जाता है कि पांडव स्वर्गारोहण से पहले भी इसी स्थान पर ठहरे थे। मंदिर में विशाल पत्थरों के बने दरवाजानुमा द्वार हैं, जिन्हें ‘स्वर्गद्वार’ कहा जाता है।

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