शिमला की ब्रिटिश लेखिका एलिस एलिज़ाबेथ ड्रैकॉट ने 120 साल पहले सात समंदर पार पहुंचा दी थी पहाड़ की लोककथाएं

शिमला की ब्रिटिश लेखिका एलिस एलिज़ाबेथ ड्रैकॉट ने 120 साल पहले सात समंदर पार पहुंचा दी थी पहाड़ की लोककथाएं
शिमला की ब्रिटिश लेखिका एलिस एलिज़ाबेथ ड्रैकॉट ने 120 साल पहले सात समंदर पार पहुंचा दी थी पहाड़ की लोककथाएं
विनोद भावुक/ शिमला
जीवन की जल्दबाजी और भागदौड़ में पक्षियों के गीत सुनने और फूलों की खुशबू के लिए किसी के पास कोई समय नहीं बचा है। यह सोचकर दुख होता है कि वह दिन तेजी से आ रहा है, जब उत्तरी भारत के ईमानदार पहाड़ी लोग आधुनिक सभ्यता के प्रभाव में अपनी लोककथाओं खो देंगे। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि बार- बार उन लोककथाओं को पढ़ा जाये, जो सदियों से पहाड़ के लोकजीवन की धड़कन रहीं हैं।
इसी पड़ताल में आज बात उस ब्रिटिश लेखिका एलिस एलिज़ाबेथ ड्रैकॉट कि जिसने 120 साल पहले पहाड़ की लोककथाओं को अंग्रेजी में संकलित कर सात समुन्द्र पार पहुंचा दिया था। उन्होंने ये लोककथाएं कृषक परिवारों से संबंधित ग्रामीण महिलाओं से सुनकर संकलित की थीं। थीं। ये लोककथाएं उस दौर के सामाजिक जीवन की गवाह और सांस्कृतिक विरासत हैं।
 
गांव- गांव जाकर जुटाई लोककथाएं
ब्रिटिश राज के दौरान एलिस एलिज़ाबेथ ड्रैकॉट नाम की एक अंग्रेज लेखिका ने शिमला के आप- पास के गांवों से लोककथाओं को संकलित कर 1906 में ‘Simla Village Tales; Or, Folk Tales from the Himalayas’ पुस्तक में प्रकाशित किया था। पुस्तक में 56 लोककथाएं शामिल हैं, जिनमें राजाओं, रानियों, जादूगरों और बोलने वाले जानवरों की कहानियां शामिल हैं।
ड्रैकॉट ने शिमला के गांवों में जाकर स्थानीय निवासियों से सीधा संवाद कर लोककथाएं एकत्रित कीं। उन्होंने लिखा है कि पूर्व में भारत में रहने के दौरान उन्होंने कई अद्भुत और रहस्यमय लोककथाएं सुनीं, जिन्हें उन्होंने इस संग्रह में संकलित किया। ये लोककथाएं हिमालयी क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक संरचना की झलक प्रस्तुत करती हैं।
हॉलम मुरे ने बनाए पुस्तक के लिए रेखाचित्र
पुस्तक के कुछ संस्करणों में शिमला और हिमालय क्षेत्र से संबंधित चित्रण और रेखाचित्र हैं, जो उस समय की सांस्कृतिक और भौगोलिक पृष्ठभूमि को दर्शाते हैं। हॉलम मुरे ने पुस्तक के लिए रेखाचित्र तैयार किए थे। एलिस एलिज़ाबेथ ड्रैकॉट का यह कार्य न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हिमालयी क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास भी है।
4 अप्रैल 1905 को कांगड़ा में आए भयानक भूकंप के बाद ड्रैकॉट को अचानक नर्वस ब्रेकडाउन के कारण भारत छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था। उपचार के बाद वे एक बार फिर इंग्लैंड से भारत लौटी और शिमला में जीवन बिताया। 4 मई 1939 को शिमला में उनकी मौत हो गई। शिमला के सैंजौली कब्रिस्तान में उनका अंतिम विश्राम स्थल है।
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Jyoti maurya

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