शिव सन्याल : सृजन, सेवा, संवेदना और समर्पण का सफर

शिव सन्याल : सृजन, सेवा, संवेदना और समर्पण का सफर
पंकज दर्शी / धर्मशाला
हिमाचल की सुरम्य वादियों से निकली एक सिविल इंजीनियर की मधुर आवाज़, जो कभी काव्य बनकर झरनों सी बहती है, तो कभी सामाजिक सरोकारों की वेदना बनकर मंचों से गूंजती है। यह आवाज़ है शिव सन्याल की, जो एक एक ईमानदार अभियंता, रचनाशील कवि, जनसेवक और साहित्यिक मंचों के सक्रिय हस्ताक्षर हैं। इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल करने के बाद शिव सन्याल लोक निर्माण विभाग में नियुक्त हुए और अप्रैल 2014 को सहायक अभियंता के पद से सेवानिवृत्त हुए।
तकनीकी दक्षता के साथ शिव सन्याल ने मानवीय संवेदनाओं को हमेशा संजोकर रखा, जो उनकी कविताओं में झलकता है। उनका मानना है कि साहित्य केवल कल्पना नहीं, बल्कि समाज का आईना है। उनके लिए कविता आत्मा की पुकार है और मंच एक साधना। वे जनसेवा को जीवन का लक्ष्य मानते हैं और कलम को समाज की आवाज़।
संस्कृति, सेवा और संवेदना की विरासत
शिव सन्याल का जन्म 2 अप्रैल 1956 को हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन कांगड़ा जिला की देहरा तहसील के समरालिया गांव में हुआ। अब यह गांव पौंग बांध की जलराशि में समा चुका है। पिता राम पाल सान्याल और माता वीरों देवी के सान्निध्य में उन्हें संस्कृति, सेवा और संवेदनाओं की विरासत मिली।
उनका स्थायी निवास जिला कांगड़ा के ज्वाली तहसील के मकड़ाहन, गांव में है, जहां से वे रचनात्मकता की नई किरणें फैलाते रहते हैं।
नियमित छप रही हैं रचनाएं
शिव सन्याल कांगड़ा कला संगम के सक्रिय सदस्य हैं और कवि सम्मेलनों में निरंतर प्रस्तुति देकर श्रोताओं को भावविभोर करते हैं। उनकी रचनाएं दिव्य हिमाचल, हिमाचल दस्तक प्रभात, और वर्तमान अंकुर जैसे समाचार पत्रों में नियमित प्रकाशित होती आ रही हैं।
उनके साहित्यिक योगदान के लिए मुंशी प्रेमचंद सम्मान, साहित्य भारती सम्मान, साहित्य रत्न, सर्वश्रेष्ठ दोहाकार पुरस्कार, छंद शिरोमणि सम्मान और रंग रसिया सम्मान जैसे कई राष्ट्रीय स्तर के सम्मानों से उन्हें नवाजा गया है।
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