Temple of Himachal Pradesh : शिव चरण छूकर अस्त होते सूर्यदेव

Temple of Himachal Pradesh : शिव चरण छूकर अस्त होते सूर्यदेव

हिमाचल बिजनेस कंटेन्ट/ कांगड़ा

Temple of Himachal Pradesh में आज बात देवभूमि कहे जाने वाले एक ऐसे मंदिर की, जो लगातार 8 महीने तक गायब हो जाता है।

फिर मंदिर अचानक प्रकट होता है, तो लोगों को थोड़ी देर के लिए अपनी आंखों पर भी यकीन नहीं होता। यह स्थान हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में ज्वाली तहसील के अंतर्गत आता है।

जिला कांगड़ा मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है 6 मंदिरों की श्रृंखला, Temple of Himachal Pradesh को ‘बाथू की लड़ी’ के नाम से जाना जाता है।

बाथू की लड़ी मंदिर में एक ऐसा भी रहस्य है, जो सारे विज्ञान को फेल कर देता है। मौसम चाहे जैसा भी हो यहां सूर्य अस्त तभी होता है, जब सूरज की आखिरी किरणें बाथू मंदिर में विराजमान महादेव के चरण छूती हैं।

मुगलकाल में इस अद्भुत रहस्य को देखकर मुगल बादशाहों ने पूरी ताकत लगा दी, ताकि इस Temple of Himachal Pradesh में सूर्य की किरणों को जाने से रोका जा सके, लेकिन वे इसमें कामयाब नहीं हो सके। छठी शताब्दी में बाथू मंदिर की स्थापना हुई है।

पांडवों ने बनाई बाथु की लड़ी

मुगलकाल में इस अद्भुत रहस्य को देखकर मुगल बादशाहों ने पूरी ताकत लगा दी, ताकि इस Temple of Himachal Pradesh में सूर्य की किरणों को जाने से रोका जा सके, लेकिन वे इसमें कामयाब नहीं हो सके। छठी शताब्दी में बाथू मंदिर की स्थापना हुई है।

Temple of Himachal Pradesh के इन मंदिरों की उत्पत्ति के बारे में कहानियां लोक कथाओं में प्रचलित हैं कि मंदिर की स्थापना महाभारत काल में पांडवों द्वारा की गई। वे यहां से स्वर्ग तक सीढ़ी बनाना चाहते थे। ये लगभग 5 हजार साल पहले का बताए जाते हैं। बाथू मंदिर की स्थापना छठी शताब्दी में गुलेरिया साम्राज्य के समय की गई।

स्वर्ग की सीढ़ियां एक रहस्य

अज्ञातवास पर निकले पांडव जहां कहीं भी रुकते थे, वहां वे अपने रहने के लिए निर्माण कार्य शुरू कर देते थे, लेकिन Temple of Himachal Pradesh बाथू की लड़ी में मंदिर के निर्माण के दौरान उन्होंने स्वर्ग जाने के लिए सीढ़ी बनाने का फैसला किया।

अज्ञातवास पर निकले पांडव जहां कहीं भी रुकते थे, वहां वे अपने रहने के लिए निर्माण कार्य शुरू कर देते थे, लेकिन Temple of Himachal Pradesh बाथू की लड़ी में मंदिर के निर्माण के दौरान उन्होंने स्वर्ग जाने के लिए सीढ़ी बनाने का फैसला किया।

इसलिए उन्होंने भगवान  शिव की आराधना की और श्रीकृष्ण की सहायता से स्वर्ग के लिए सीढ़ियां बनाने का काम शुरू किया। क्योंकि उन्हें एक रात में ही सीढ़ियां बनने का काम पूरा करना था, इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने 6 महीने की एक रात कर दी।

पांडवों ने 6 महीने में भगवान शिव का मुख्य मंदिर और 5 मंदिर बनाए, परंतु स्वर्ग की सीढ़ियां पूरी तरह तैयार नहीं हो पाई और आज भी करीब 40 सीढ़िया वहां मौजूद हैं, जिसे लोग बड़ी आस्था के साथ पूजते हैं।

मंदिरों को नहीं होता पानी का असर

Temple of Himachal Pradesh के इन मंदिरों के पास एक बहुत ही बड़ा पिल्लर है। जब पौग डैम का पानी काफी ज्यादा होता है तब ये सभी मंदिर पानी में डूब जाते हैं और सिर्फ इस पिल्लर का ऊपरी हिस्सा ही नजर आता है।

हैरानी की बात यह है कि पिछले करीब छ्ह दशक से ये मंदिर हर साल पानी में 8 महीने के लिए डूब जाता है, बावजूद इसके मंदिर पर कोई असर नहीं होता।

मंदिर की बुनियाद और बनावट आज भी वैसी ही है, जैसी हजारों साल पहले थी। इस मंदिर के पत्थरों पर माता काली और भगवान गणेश की प्रतिमा बनी हुई है। मंदिर के अंदर भगवान विष्णु और शेष नाग की मूर्ति रखी हुई है।

रमणीय स्थल, पर्यटन से दूर

यह स्थान इतना मनमोहक है कि हर कोई अनायास ही इस तरफ आकर्षित हो जाए, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि चारों तरफ पौंग डैम के बीच में स्थित यह मंदिर श्रृंखला आज भी पर्यटन से दूर है। पुरातत्व विभाग और हिमाचल प्रदेश के भाषा संस्कृति विभाग ने Temple of Himachal Pradesh के इस स्थल को पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए कोई खास प्रयास नहीं किए हैं।

ऐसे पहुंचे मंदिर तक

इस Temple of Himachal Pradesh तक केवल मई-जून में ही पहुंच सकते हैं, जब जलस्तर घटता है। यहां तक धमेटा और नगरोटा सूरियां से नाव द्वारा एवं ज्वाली से सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। मंदिर के आसपास टापू की तरह जगह है, जिसका नाम रेनसर है। रेनसेर में फॉरेस्ट विभाग का गेस्ट हाउस भी है। यहां कई तरह के प्रवासी पक्षी देखे जा सकते हैं।

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