Temple of Himachal Pradesh : दीवारों पर रामायण- महाभारत

Temple of Himachal Pradesh : दीवारों पर रामायण- महाभारत

विनोद भावुक / उदयपुर

Temple of Himachal Pradesh में इस बार कहानी लाहौल-स्पीति जिला की लाहौल घाटी के गांव उदयपुर में सातवीं शताब्दी में निर्मित प्रसिद्ध मकुला देवी का मंदिर की।

जिला मुख्यालय केलांग से 56 किलोमीटर दूर स्थित खूबसूरत गांव उदयपुर में मुकुला देवी का प्रसिद्ध मंदिर प्राचीन काष्ठ कला का अद्भुत उदाहरण है।

इस Temple of Himachal Pradesh का इतिहास जहां द्वापर युग से जुड़ा हुआ है, वहीं यह मंदिर अपनी अद्भुत शैली के चलते आकर्षण का विशेष केंद्र है।

इस धरोहर Temple of Himachal Pradesh के रखरखाव का जिम्मा भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के पास है। पुजारी दुर्गा दास करीब 40 वर्षों से मंदिर में पुजारी का काम संभाल रहे हैं।

इस धरोहर Temple of Himachal Pradesh के रखरखाव का जिम्मा भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के पास है। पुजारी दुर्गा दास करीब 40 वर्षों से मंदिर में पुजारी का काम संभाल रहे हैं।

विश्वकर्मा ने एक दिन में बनाया मंदिर

जिला मुख्यालय केलांग से 56 किलोमीटर दूर स्थित खूबसूरत गांव उदयपुर में मुकुला देवी का प्रसिद्ध मंदिर प्राचीन काष्ठ कला का अद्भुत उदाहरण है। इस Temple of Himachal Pradesh का इतिहास जहां द्वापर युग से जुड़ा हुआ है, वहीं यह मंदिर अपनी अद्भुत शैली के चलते आकर्षण का विशेष केंद्र है।

कहा जाता है कि माता Temple of Himachal Pradesh मृकुला देवी मंदिर पांडवों के वनवास के समय महाबली भीम द्वारा लाए गए एक वृक्ष की लकड़ी से देवताओं के शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा ने एक दिन में निर्मित किया था।

मृकुला देवी को माता काली महिषासुर मर्दिनी के रूप में पूजा जाता है। जब महिषासुर का वध करके जिस खप्पर में महिषासुर का रक्त भरा था, वह आज भी माता काली की मूर्ति के पीछे रखा गया है और उसे श्रद्धालुओं का देखना पूर्णतया निषेध है।

इस खप्पर को वर्ष में केवल एक बार लाहौल-स्पीति के विख्यात लोक उत्सव फागली के दौरान मंदिर से आरती करते हुए पुजारी अपने निवास स्थान को ले जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो इस खप्पर को गलती से देख ले वह अंधा हो जाता है।

कलकते से आई काली

इस धरोहर Temple of Himachal Pradesh के रखरखाव का जिम्मा भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के पास है। पुजारी दुर्गा दास करीब 40 वर्षों से मंदिर में पुजारी का काम संभाल रहे हैं।

ऐसी मान्यता है कि मां काली खप्पर वाली कलकत्ते से आई है, जिसका प्रमाण मंदिर प्रांगण में शिला पर बने पैरों के निशान हैं।

उसके बाद ऐसा निशान कापुंज नामक स्थान पर है। ऐसा ही निशान चिनाव नदी के पार भी है तथा उसी सीध में पहाड़ी पर भी चरणचिन्ह हैं।

रामायण-महाभारत काल का संगम

यह Temple of Himachal Pradesh बाहर से देखने पर साधारण घर जैसा लगता है, लेकिन इसके भीतर एक ऐसा अनोखा कला संसार है, जिसे देखकर कलाप्रेमी अभिभूत हो उठते हैं। मंदिर में लकड़ी की दीवारों पर बेहद दार्शनिक एवं अद्भुत चित्रकारी का नमूना पेश किया गया है।

यह Temple of Himachal Pradesh बाहर से देखने पर साधारण घर जैसा लगता है, लेकिन इसके भीतर एक ऐसा अनोखा कला संसार है, जिसे देखकर कलाप्रेमी अभिभूत हो उठते हैं। मंदिर में लकड़ी की दीवारों पर बेहद दार्शनिक एवं अद्भुत चित्रकारी का नमूना पेश किया गया है।

इस Temple of Himachal Pradesh में रामायण एवं महाभारत काल के चित्र अंकित हैं। वहीं गंगा-यमुना व 8 ग्रह, भगवान विष्णु के 10 अवतार, शिव भगवान का तीसरा नेत्र खुलने व उनका विराट रूप, माता महिषासुर मर्दिनी का चित्र, सागर मंथन, भगवान श्रीकृष्ण व अर्जुन, द्रौपदी स्वयंवर, अभिमन्यु का चक्रव्यूह, तीरों पर लेटे भीष्म पितामह व जल लेकर आते अर्जुन आदि अनेक चित्र मंदिर के इतिहास के गवाह हैं।

धर्म के मार्ग पर चलने वालों की परीक्षा

Temple of Himachal Pradesh मृकुला माता मंदिर के प्रांगण में आज भी महाभारत कालीन एक पांडु पत्थर है। मृकुला के दरबार में रखा पड़ा पत्थर धर्म के मार्ग पर चलने वालों की परीक्षा लेता है। भीम द्वारा रखा गया यह ऐतिहासिक पत्थर आज भी भक्तों को पाप व धर्म का एहसास करवा रहा है। श्रद्धापूर्वक मां मृकुला व माता काली का जयकारा लगाने पर यह पत्थर सीधे हाथ की एक अंगुली से उठ जाता है।

Temple of Himachal Pradesh मृकुला माता मंदिर के प्रांगण में आज भी महाभारत कालीन एक पांडु पत्थर है। मृकुला के दरबार में रखा पड़ा पत्थर धर्म के मार्ग पर चलने वालों की परीक्षा लेता है। भीम द्वारा रखा गया यह ऐतिहासिक पत्थर आज भी भक्तों को पाप व धर्म का एहसास करवा रहा है। श्रद्धापूर्वक मां मृकुला व माता काली का जयकारा लगाने पर यह पत्थर सीधे हाथ की एक अंगुली से उठ जाता है।

‘पांडु’ पत्थर की मान्यता

मान्यता है कि भीम जब अज्ञातवास में लाहौल के उदयपुर में आए तो उन्होंने इस पत्थर को मंदिर के प्रांगण में रखा। भीम इस पत्थर के वजन के बराबर एक समय में भोजन करते थे।

अज्ञातवास के दौरान माता कुंती जब पांडवों के लिए भोजन पकाती थी तो भीम अपने भाइयों के हिस्से का सारा भोजन खा जाता था। तब माता कुंती इस पत्थर के बराबर भोजन भीम को देती थी।

गर्मियों में श्रद्धालुओं की कतारें

सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण कई दिन उदयपुर शेष विश्व से कट जाता है, जिस कारण यहां सैलानी नहीं आते, लेकिन गर्मियों में इस Temple of Himachal Pradesh मृकुला देवी मंदिर की अद्भुत कलाकृतियां देखने के लिए देशभर के कलाप्रेमियों का तांता लग जाता है। यहां के लोग खुले दिल से सैलानियों का स्वागत करते हैं।

चश्मे और कायल के पेड़

उदरपुर की उत्तर दिशा में मंदिर के साथ एक चरणामृत चश्मा है। एक अन्य प्राचीन चश्मा गांव की पूर्व दिशा में है जो कोईडी मूर्ति के नाम से प्रसिद्ध है। यह संयोग ही है कि दोनों चश्मों के साथ विशालकाय कायल के पेड़ हैं जो आज भी मौजूद है। उदयपुर गांव के दक्षिण-पश्चिम से चिनाब नदी बहती है।

उजड़ कर बसा उदयपुर !

ऐसा बताते हैं कि उदयपुर कभी 140 घरों का गांव था, जो उजड़ गया था। इसके उजड़ने की पुष्टि यहां खुदाई में दीवारों के अवशेष मिलने से होती है। गांव के लोगों का मानना है कि उदयपुर गांव में 60 साल पहले केवल 4 घर थे, लेकिन अब यह गांव एक किलोमीटर के कस्बे में फैल चुका है।

उदयपुर में मिनी मनाली

उदयपुर के पश्चिम में देवदार के पेड़ों का घना जंगल कभी रियोढन नाम से जाना जाता था। आज इसे लोग मिनी मनाली के नाम से जानते हैं। उदयपुर से एक किलोमीटर की दूरी पर मनाली-जम्मू राजमार्ग स्थित है। उससे चार किलोमीटर की दूरी पर प्राकृतिक सौदर्य से परिपूर्ण मडग्राम (5 गांवों का समूह) है।

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