Temple of Himachal Pradesh : टीले पर पानी, शिव की मेहरबानी

Temple of Himachal Pradesh : टीले पर पानी, शिव की मेहरबानी

देवराज ढडवाल, कुंजर महादेव

हिमाचल प्रदेश को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता, यहां घर-घर में देवालय है। यहां के हर शहर और हर गांव में कोई न कोई मंदिर है। kai Temple of Himachal Pradesh विश्व प्रसिद्ध हैं और लाखों पर्यटक हर साल देवदर्शन के मकसद से आते हैं। यहां के कई शक्तिपीठ और कई शिवधाम धार्मिक पर्यटन के विश्व मानचित्र पर अपनी खास पहचान रखते हैं।

ऐसे भी कई Temple of Himachal Pradesh हैं, जिनके saath शिव की आस्था के जुड़ी कई अदभुत निशानियां और कहानियां हैं। ऐसे कई धार्मिक स्थल अभी तक नजरअंदाज ही हैं। यही कारण है कि ऐसे स्थानों तक पर्यटकों की आमद कम है। कुदरत की हसीन वादियों में ऐसे कितने ही धार्मिक स्थल पर्यटन के रूप में चमकने को बेताव हैं। इनमें से Temple of Himachal Pradesh है कुंजर महादेव। भगवान शिव की तपोभूमि होने के बाबजूद कुंजर महादेव वह मुकाम हासिल नहीं कर पाया, जो मणिमहेश, बैजनाथ या काठगढ़ आदि शिवधामों को हासिल हुआ है।

अब तक गुमनाम कुंजर महादेव

पहाड़ की चोटी पर पहुंच कर कुंजर महादेव के दीदार होते हैं। शिव के पदचिन्ह के रूप में इस Temple of Himachal Pradesh में पवित्र कुंआ आस्तित्व में आया है। कुंजर महादेव में खंडित शिला का पूजन होता है और मंदिर का निर्माण जारी है।

लाहडू को चम्बा जिला के गेटवे के नाम से भी जाना जाता है। लाहडू से 12 किलोमीटर पातका और उससे छह किलोमीटर कच्ची सड़क का सफर तय करने के बाद तीन किलोमीटर की ट्रैकिंग कर आप ऐसे खूबसूरत भूभाग पर होते हैं, जहां हरी भरी वादियां, घुमावदार खेत और उन खेतों में काम करते मेहनतकश लोग आपका ध्यान आकर्षित करते हैं।

पहाड़ की चोटी पर पहुंच कर कुंजर महादेव के दीदार होते हैं। शिव के पदचिन्ह के रूप में इस Temple of Himachal Pradesh में पवित्र कुंआ आस्तित्व में आया है। कुंजर महादेव में खंडित शिला का पूजन होता है और मंदिर का निर्माण जारी है।

टीले पर कुआं, अजब चमत्कार

धार्मिक मान्यता है कि कभी इस Temple of Himachal Pradesh में शिव ने तपस्या की थी। यहां खंडित शिला व भगवान शिव के पदचिन्हों के निशान रह गए। उन पदचिन्हों के स्थान पर पानी एकत्रित हो गया जो आज भी 'कुंजर' पर्वतखंड पर एक कुंए के रूप उपस्थित है। यह एक साक्षात चमत्कार है कि इतनी ऊंचाई पर टीले पर कैसे एक कुआं हो सकता है।

धार्मिक मान्यता है कि कभी इस Temple of Himachal Pradesh में शिव ने तपस्या की थी। यहां खंडित शिला व भगवान शिव के पदचिन्हों के निशान रह गए। उन पदचिन्हों के स्थान पर पानी एकत्रित हो गया जो आज भी ‘कुंजर’ पर्वतखंड पर एक कुंए के रूप उपस्थित है। यह एक साक्षात चमत्कार है कि इतनी ऊंचाई पर टीले पर कैसे एक कुआं हो सकता है। शिव उपासक इसे शिव के ही एक चमत्कार के रूप में देखते हैं। स्थानीय लोगों में इस स्थान के प्रति गहरी आस्था है।

राधा अष्टमी के दिन होता है पवित्र सान

सावन या भादों महीने में राधा अष्टमी के दिन इस Temple of Himachal Pradesh में पवित्र स्नान होता है और हजारों श्रदालु यहां पर पवित्र स्नान कर खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं। किवदंती है कि उस दिन कुएं का पानी अचानक ऊपर छलक आता है और लोग स्नान करके अपने सारे पापों को धो डालते हैं।

सावन या भादों महीने में राधा अष्टमी के दिन इस Temple of Himachal Pradesh में पवित्र स्नान होता है और हजारों श्रदालु यहां पर पवित्र स्नान कर खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं। किवदंती है कि उस दिन कुएं का पानी अचानक ऊपर छलक आता है और लोग स्नान करके अपने सारे पापों को धो डालते हैं। मणिमहेश यात्रा और शिवरात्रि उत्सव के दौरान भी इस Temple of Himachal Pradesh में शिव भक्तों का तांता लगा रहता है।

शिव की तपस्या, गड़रिये की उपस्थिति

इस Temple of Himachal Pradesh को लेकर एक दन्तकथा के अनुसार भगवान शिव ने कैलाश जाते समय कुछ समय के लिए यहां रुककर तपस्या की थी। कहते हैं कि भगवान शिव ने एक शिला का रूप धारण किया और साधना में लीन हो गए।

इस Temple of Himachal Pradesh को लेकर एक दन्तकथा के अनुसार भगवान शिव ने कैलाश जाते समय कुछ समय के लिए यहां रुककर तपस्या की थी। कहते हैं कि भगवान शिव ने एक शिला का रूप धारण किया और साधना में लीन हो गए।

एक गड़रिया वहां पर भड़ों को चराने के लिए आया और उस शिला पर बैठकर दराती को धार लगाने लगा। जब वह वहां से उठा और दराती के निरीक्षण के लिए एक पेड़ को काटना चाहा तो उसने दाराटी के एक ही वार से एक बड़े तने वाले पेड़ को काट दिया और गड़रिया अचंभित था।

गड़रिये ने तोड़ना चाहा चमत्कारी पत्थर

गड़रिये ने निश्चय किया कि वह शाम को घर वापसी पर इस चमत्कारी पत्थर को उठाकर ले जाएगा। दिन भर भेड़ें चराने के बाद शाम को जब उसने पत्थर को उठाकर ले जाने की कोशिश की तो वह उस पत्थर को हिला तक न सका। गडरिया इस कीमती पत्थर के मोहपास में बंध गया। पत्थर का एक हिस्सा तोड़कर अपने घर ले जाने का विचार आते ही उसने पूरी ताकत से उस पत्थर पर जोर जोर से प्रहार करना शुरू कर दिया। उसके प्रहारों से पत्थर में एक दरार सी आ गई।

गड़रिये को क्षमा, भेद न खोलेने की हिदायत

उसी क्षण भगवान शिव प्रकट हुए और नाराजगी प्रकट की और कहा कि आपने मेरी तपस्या में खलल डाला है। गड़रिया भगवान शिव के चरणों में गिर पड़ा। वह बोला कि उसने जो भी किया अज्ञानतावश किया है. अतः उसे क्षमा कर दिया जाए। चूंकि गड़रिया सही कर रहा था, इस पर प्रभु खुश हो गए और उसे माफ कर दिया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति को बताना मत कि मैं यहां तपस्या कर रहा हूं।

भेद खोलने पर पत्थर बन गया गड़रिया

गड़रिया चला गया, लेकिन उसने अन्य गडरियों को अपनी आपबीती सुना डाली। बस फिर क्या था वह गड़रिया एक चट्टान का रूप धारण कर गया। भगवान शिव भी वहां से कैलाश के लिए प्रस्थान कर गए और उस स्थान पर वह खंडित शिला व भगवान शिव के पदचिन्हों के निशान रह गए। उन पदचिन्हों के स्थान पर पानी एकत्रित हो गया जो आज भी ‘कुंजर’ पर्वतखंड पर एक कुंए के रूप उपस्थित है। यह एक साक्षात चमत्कार है कि इतनी ऊंचाई पर एक टीले पर कैसे एक कुआं हो सकता है।

मणिमहेश यात्रा, कुंजर महादेव कनेक्शन

कहते हैं मणिमहेश की यात्रा तब तक सफल नही होती, जब तक कि श्रदालू Temple of Himachal Pradesh कुंजर महादेव में शीश नहीं नवाते। मणिमहेश यात्रा के दौरान कई शिवभक्त कुंजर महादेव में पहुंच कर भजन कीर्तन और पवित्र स्नान करते हैं। कहा जाता है कि कुंजर महादेव में पवित्र स्थान महिमहेश के पवित्र स्नान की बराबर पुण्य देने वाला है।

कुंजर महादेव पहुंचने के लिए रोड़ मैप

पठानकोट तक रेल या हवाई मार्ग से पहुंचा जा सकता है। पठानकोट से 24 किलोमीटर दूर हिमाचल का नूरपुर तक बस से पहुंचा जा सकता है। नूरपुर से 22 किलोमीटर लाहडू व लाहडू से 12 किलोमीटर पातका बस, टेक्सी या निजी वाहन से पहुंचा जा सकता है। अब पातका से 6 किलोमीटर कच्ची सड़क या तीन किलोमीटर पैदल चढ़ाई चढ़कर  इस Temple of Himachal Pradesh कुंजर महादेव तक पहुंचा जा सकता है।

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