गुवाहाटी की राष्ट्रीय इतिहास कांग्रेस में अपनी चमक दिखा चुका है मंडी में सहेजा बिरला सोने का सिक्का, डॉ. कमल ‘प्यासा’ ने संभाल कर रखा है प्राचीन दुर्लभ सिक्कों का अनमोल खजाना

गुवाहाटी की राष्ट्रीय इतिहास कांग्रेस में अपनी चमक दिखा चुका है मंडी में सहेजा बिरला सोने का सिक्का, डॉ. कमल ‘प्यासा’ ने संभाल कर रखा है प्राचीन दुर्लभ सिक्कों का अनमोल खजाना
गुवाहाटी की राष्ट्रीय इतिहास कांग्रेस में अपनी चमक दिखा चुका है मंडी में सहेजा बिरला सोने का सिक्का, डॉ. कमल ‘प्यासा’ ने संभाल कर रखा है प्राचीन दुर्लभ सिक्कों का अनमोल खजाना
विनोद भावुक/ मंडी
गुवाहाटी में आयोजित राष्ट्रीय इतिहास कांग्रेस में मंडी के डॉ. कमल ‘प्यासा’ के सहेजे सोने के बिरले सिक्के की चमक देख इतिहासकार हैरान रह गए थे। यहीं पर उन्होंने मंडी में विभिन्न कालखंडों में प्रचलन में रहे सिक्कों पर विशेष शोधपत्र पढ़ कर खूब तालियां बटोरी थीं। 79 साल के सेवानिवृत स्कूल प्रिंसिपल डॉ. कमल ‘प्यासा’ ने प्राचीन दुर्लभ सिक्कों का खजाना संभाल कर रखा है। उनके सहेजे फ़ॉसिल्स, मेडल्स, टिकटों और प्राचीन दुर्लभ सिक्कों की दो बार मंडी में प्रदर्शनियां आयोजित हो चुकी हैं।
नाहन में आयोजित बाल विज्ञान मेले में उनके सहेजे टिकटों की प्रदर्शनी लग चुकी है। उनके बनाए चित्रों की सात प्रदर्शनियां आयोजित हो चुकी हैं और साहित्यकार के तौर पर कहानी संग्रह, कविता संग्रह और कला संस्कृति विषयों पर उनकी सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
बचपन की यादों में भारत विभाजन की टीस
कमल ‘प्यासा’ का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के हज़रो ज़िला के कैम्बल पुर में हुआ। भारत विभाजन के समय वे अपनी मां की गोद में थे। विभाजन के बाद उनका परिवार पहले कांगड़ा जिला के नगरोटा बगवां पहुंचा, फिर कुछ दिन बाद दिल्ली चला गया। बाद में स्थाई रूप से मंडी शहर में बस गया।
कमल ‘प्यासा’ 5वीं तक आर्य समाज स्कूल में पढे और विजय हाई स्कूल मंडी से मैट्रिक की। उन्होंने वल्लभ महाविद्यालय मंडी से बीएससी की और शिमला से बीएड की डिग्री ली। नौकरी के दौरान उन्होंने संगीत विशारद, पत्रकारिता में स्नातकोत्तर,एमए, एमफिल, पीएचडी और जीव जंतु कल्याण में एडब्लूयुसी की डिग्री भी ली।
उच्च शिक्षा सहित कई तरह के प्रशिक्षण
डॉ कमल प्यासा ने अपने सेवाकाल में जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के प्रशिक्षण हासिल कर अपने स्टूडेंट्स के हुनर और कौशल को निखारने में शानदार कार्य किया है। उन्होंने जीव जंतु कल्याण प्रशिक्षण, कार्यालय ढंग व वित्तीय प्रशासन, पर्यावरण अभिमुखी प्रशिक्षण,टांकरी लिपि का प्रशिक्षण, विज्ञान प्रशिक्षण, तारा मंडल प्रशिक्षण, जीव विज्ञान प्रशिक्षण, प्रोजेक्टर प्रशिक्षण और बाल विकास अधिमुखीकरण प्रशिक्षण लिया है।
उन्होंने राजस्थान का गहन अध्ययन कर अभिमुखीकरण प्रशिक्षण, स्वयंसेवी संगठनों के अधिकारियों का समाज कल्याण में अभिमुखीकरण प्रशिक्षण, राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस प्रशिक्षण, संग्रहालय एवं पाठशालाओं के संचालन में प्रशिक्षण, जीव जंतु कल्याण मुख्य स्रोत व्यक्ति प्रशिक्षण, नशाबंदी प्रशिक्षण और जीव जंतु कल्याण में विशेष कोर्स एवं प्रशिक्षण प्राप्त किया है।
शिक्षक और समाजसेवी की भूमिका
शिक्षक के तौर पर कमल ‘प्यासा’ की पहली स्थाई नियुक्ति सोलन में स्वारघाट के पास राजकीय उच्च पाठशाला बाह में हुई। उसके बाद मंडी, पनारसा, मंडी, मैरा मसीत, बरयारा में सेवाएं प्रदान कीं। उन्होंने विज्ञान अध्यापक के तौर पर करियर की शुरुआत कर विज्ञान सलाहकार (सुपरवाइजर), लेक्चरर और मुख्याध्यापक पद को सुशोभित किया और स्कूल प्रिंसिपल के पद से सेवामुक्त हुए।
डॉ कमल प्यासा ने नौणी विश्वविद्यालय में तारा मंडल प्रदर्शन समन्वयक और भाषा संस्कृति विभाग शिमला के पाण्डुलिपि मिशन में राज्य सर्वेक्षक के तौर पर अहम भूमिका निभाई 1999 से 2022 तक वे वल्लभ महाविद्यालय मंडी में इग्नू यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स के लिए काउंसलर रहे । वे हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से 10 स्टूडेंट्स को इतिहास में एमफिल करवा चुके हैं, जबकि उनकी गाइडेंस में दो स्टूडेंट्स पीएचडी कर रहे हैं।
जीव जंतुओं के कल्याण को समर्पित
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने डॉ कमल प्यासा को आईएईसी सदस्य के रूप में नामांकित किया है। वे भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड मद्रास की ओर से जीव जंतु कल्याण शिक्षा अधिकारी हैं। वे अर्बन कॉपरेटिव बैंक के नामित डायरेक्टर हैं। वे भाषा व संस्कृति विभाग के सांस्कृतिक सर्वेक्षक, मंडी साक्षरता व जन विकास समिति के संस्थापक सदस्य और वित सचिव रह चुके हैं। वे स्टूडेंट्स और लोगों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा करने के लिए विज्ञान मेलों का आयोजन करते आ रहे हैं।
डॉ कमल प्यासा कला, संस्कृति, पुरातत्व व साहित्यिक सम्मेलनों में वाराणसी, कोलकाता, झारखंड, जयपुर, चंडीगढ़ और दिल्ली में भाग ले चुके हैं। वे ‘मंडी मनरेगा’ पत्रिका के संपादक रहे हैं। उन्होंने अंडमान निकोबार और केरल के संस्थानों का दौरा कर सामाजिक संस्थाओं में भूमिका निभाने की जानकारी हासिल की है। वे हिमाचल महिला मंडल नामक संस्था में बाल स्वास्थ्य व जन स्वास्थ्य के लिए सेवाएं दे रहे हैं।
बीबीसी लंदन की प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार
कमल ‘प्यासा’ को लेखन ,अध्यापन, कला, संस्कृति, पुरातत्व, जीव जंतु कल्याण और विज्ञान के क्षेत्र में, जिला स्तर से लेकर अंतररास्ट्रीय स्तर तक के कई सम्मान मिले हैं। उनको बीबीसी लंदन ने अंतर राष्ट्रीय विज्ञान प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर 1968 में सम्मानित किया है। वर्ष 1998 में उन्हें प्रदेश सरकार ने श्रेष्ठ अध्यापक सम्मान दिया है। हिमाचल शिक्षा विभाग और भाषा संस्कृति विभाग ने उन्हें हिंदी व पहाड़ी लेखन के लिए सम्मानित किया है।
राज्य विज्ञान तकनीकी व पर्यावरण परिषद शिमला ने उन्हें वर्ष 1991,1993 व 1994 में विज्ञान की विभिन्न उपलब्धियो के लिए सम्मानित किया है। 1975 में दैनिक वीर प्रताप ने राष्ट्र स्तरीय साहित्य प्रतियोगिता प्रथम आने और उसी साल कहानी लेखन के लिए मासिक पत्रिका ‘जागृति’ चंडीगढ़ ने संतावना पुरुस्कार से सम्मानित किया है। उन्हें वर्ष 2004 में कला व संस्कृत के संरक्षण के लिए हिमाचल केसरी केसरी सम्मान मिला है तो 2018 में उन्हें मंडी महोत्सव के अवसर पर मंडी रतन सम्मान दिया गया है। भारतीय संस्कृति निधि ने उन्हें 2021 में कला, संस्कृति व इतिहास कार्य के लिए सम्मानित किया है।
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डॉ कमल प्यासा से उनकी ई मेल; pyasa.kamalpruthi@gmail.com के जरिये संपर्क किया जा सकता है।
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Jyoti maurya

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