शिमला की नाटे कद की लड़की की बच्चों जैसी आवाज, जिसने दो देशों के दिलों पर किया राज, ऑल इंडिया रेडियो की परवीन अख्तर रेडियो पाकिस्तान की मुनी बाज़ी

शिमला की नाटे कद की लड़की की बच्चों जैसी आवाज, जिसने दो देशों के दिलों पर किया राज, ऑल इंडिया रेडियो की परवीन अख्तर रेडियो पाकिस्तान की मुनी बाज़ी
शिमला की नाटे कद की लड़की की बच्चों जैसी आवाज, जिसने दो देशों के दिलों पर किया राज, ऑल इंडिया रेडियो की परवीन अख्तर रेडियो पाकिस्तान की मुनी बाज़ी
पंकज दर्शी / शिमला
रोचक, मनोरंजक और ज्ञानवर्धक कहानियों के प्लेटफॉर्म हिमाचल बिजनेस पर आज बात शिमला की बच्चों जैसी एक ऐसी आवाज की, जिसने दो देशों के दिलों पर राज किया। शिमला में पैदा हुई नाटे कद की परवीन अख्तर ने ऑल इंडिया रेडियो दिल्ली में एक हास्य रेडियो कलाकार के रूप में अपना करियर शुरू किया और खूब नाम कमाया।
भारत- पाकिस्तान विभाजन के चलते परवीन अख्तर पलायन कर पाकिस्तान चली गईं और रेडियो पाकिस्तान की मुनी बाज़ी के रूप में अपनी प्रतिभा से खूब नाम कमाया। वे लगभग 45 वर्षों तक रेडियो से जुड़ी रहीं। मुन्नी ने शादी नहीं की और अपना पूरा जीवन अपने दो भाइयों और बहन की परवरिश में लगा दिया।
छोटे कद की बड़ी कलाकार
परवीन अख्तर का जन्म 28 फरवरी 1929 को तत्कालीन ब्रिटिश भारत के शिमला में हुआ था।
वयस्क होने पर भी वह केवल 50 इंच लंबी थीं और उनकी आवाज़ बच्चों जैसी थी। परवीन अख्तर ने साल 1940 के दशक की शुरुआत में ऑल इंडिया रेडियो दिल्ली में हास्य रेडियो कलाकार के रूप में अपना करियर शुरू किया।
1947 में परवीन अख्तर अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चली गईं। कवि बेहज़ाद लखनवी ने उन्हें रेडियो पाकिस्तान से जोड़ा। उन्होंने लाहौर में रेडियो पर दो साल तक नाटक कलाकार के रूप में काम किया। बीच में वे कुछ साल कराची में रहीं और 1958 में रेडियो पाकिस्तान में लौट आईं।
बच्चों के कार्यकर्मों में काम आई आवाज
अपनी बच्चों जैसी आवाज़ के कारण मुनी बाज़ी ने रेडियो पाकिस्तान के लिए नाटकों में बच्चों की भूमिकाएं स्वीकार कीं। उन्होंने कई ड्रामा सीरियल किए, जिनमें कैद-ए-हवस और जंजीर बोलती है शामिल हैं। उन्होंने 30 से ज़्यादा सालों तक बच्चों के कार्यक्रम नौनिहाल में काम किया, जिसका नाम बाद में बदलकर बच्चों की दुनिया कर दिया गया।
उन्होंने रेडियो पाकिस्तान कराची से बच्चों के रेडियो कार्यक्रम ‘टोट बटोट’ में नियमित रूप से आवाज़ दी। अपने खराब स्वास्थ्य के कारण वे 1993 में सेवानिवृत्त हुईं, लेकिन उन्होंने 1998 तक अनुबंध पर काम किया। 14 मई 2007 को 78 साल की उम्र में कराची में हृदय गति रुकने से मुनी बाजी की मृत्यु हो गई।
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Jyoti maurya

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