अढ़ाई दशक से पाकिस्तान के खिलाफ अकेले इंसाफ की जंग लड़ रहे कारगिल के पहले शहीद सैन्य अफसर के पिता

अढ़ाई दशक से पाकिस्तान के खिलाफ अकेले इंसाफ की जंग लड़ रहे कारगिल के पहले शहीद सैन्य अफसर के पिता
विनोद भावुक/ पालमपुर
कारगिल के पहले शहीद कैप्टन सौरभ कालिया के बुजुर्ग पिता डॉ. नरिंदर के कालिया अपने शहीद बेटे और उनके पाच साथियों के मानवाधिकारों के लिए अढ़ाई दशक से भी लंबे समय से अकेले लड़ाई लड़ रहे हैं। साल वर्ष 1999 में 22 साल के सौरभ कालिया और उनके पांच साथियों को पाकिस्तान ने तीन हफ्तों से ज्यादा समय तक बंधक बनाकर अमानवीय यातनाएं दी थी। बाद में उनके सिरों में गोलियां मारकर शव भारत को लौटा दिए गए।
डॉ. नरिंदर इस सैनिकों के साथ पाकिस्तान के कुकृत्य को ‘जेनेवा समझौते’ का उल्लंघन मानते हैं। इस मामले को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट तक ले जाने के लिए उन्होंने शासन और प्रशासन का लगभग हर दरवाजा खटखटाया है। वे देश के प्रधानमंत्रियों ,दूतावासों और कॉन्सुलेट तक पहुंचे हैं लेकिन अफसोस अभी तक कुछ हासिल नहीं हो पाया है। उनके मेलबॉक्स में अब भी लोगों के मेल आते रहते हैं। डॉ. नरिंदर की ओर से दाखिल सार्वजनिक न्याय याचिका पर दो लाख से ज्यादा भारतीयों ने हस्ताक्षर किए हैं।
सेना प्रमुख की पुस्तक में खुलासा
तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वी.पी. मलिक ने अपनी पुस्तक ‘कारगिल: फ्रॉम सरप्राइज टू विक्ट्री’ में लिखा है कि सेना ने भारत के रेडक्रॉस और रेडक्रॉस की अंतरराष्ट्रीय समिति से इन जवानों के शवों के पोस्टमॉर्टम करने की विनती की थी, लेकिन दोनों ही एजेंसियों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। बाद में सेना ने दिल्ली में शहीदों का पोस्टमोर्टम करवाया तो पाक की नापाक हरकत का खुलासा हुआ।
शहीद जवानों की पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि उन्हें जलती सिगरेटों से जलाया गया था। गर्म सलाखों से उनके कान के परदे छेदे गए और आंखें निकालने से पहले उनमें छेद कर दिए गए। दांत और सिरों की हड्डियां तोड़ दी गई थीं। उनके होंठ, नाक और गुप्तांग काटकर उन्हें भयावह यातनाएं दी गई थीं। ये सभी यातनाएं सैनिकों को मरने से पहले दी गई थीं। बाद में सभी को गोली मार दी गई थी।
पहला वेतन बैंक में आने से पहले शहादत
कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर से ग्रेजुएशन करने के बाद सौरभ कालिया कंबाइंड डिफेंस सर्विसेज की परीक्षा पास कर साल 1997 में आई.एम.ए. में गए। सौरभ के परिजन साल 1998 को उनकी पासिंग आउट परेड देखने गए थे।
जन्मदिन मनाने घर आने वाला था सौरभ
सौरभ ने 30 अप्रैल,1999 को अपने छोटे भाई वैभव के 20वें जन्मदिन पर उसे बधाई देने के लिए फोन किया था। तब सौरभ ने कहा था कि वह फॉरवर्ड पोस्ट के लिए रवाना हो रहा है, अगर चिट्ठी नहीं लिख पाऊँ या फोन नहीं कर पाऊँ तो परेशान मत होना।
तब 29 जून को अपना जन्मदिन मनाने के लिए घर आने की बात सौरभ ने कही थी। घरवालों को की गई सौरभ की वह आखिरी फोन कॉल थी। 9 जून को पाकिस्तान ने भारत को छह क्षत-विक्षत और विकृत शव लौटाए। उन शवों में 4 जाट के 22 साल के कैप्टन सौरभ कालिया का शव भी शामिल था।
बोरियां भर कर आती रहीं चिट्ठियां
रचना विष्ट रावत अपनी पुस्तक ‘कारगिल’ में लिखती हैं कि सौरभ की शहादत के बाद कई वर्षों तक उनके घर पालमपुर में आने-जानेवालों का तांता लगा रहा। बोरियों में भर-भर कर चिट्टियां आतीं थी। सौरभ की शहादत के बाद कई वर्षों तक उनके घर पालमपुर में आने-जानेवालों का तांता लगा रहा।
यूरोपीय परमाणु शोध संगठन की एक वैज्ञानिक ने शहीद के परिजनों को अपने साथ स्विट्जरलैंड रहने की प्रार्थना भी की।
कारगिल युद्ध में सौरभ कालिया की शहादत के बाद दिल छू लेनेवाला एक श्रद्धांजलि संदेश अमेरिका में बस गए एक पाकिस्तानी की तरफ से आया था। उसने शहीद के पिता डॉ. नरिंदर के. कालिया को कुरान की एक प्रति और फूलों के बीज भेजे थे। शोक संदेश में लिखा था,’सौरभ के साथ जो कुछ हुआ, उसका बेहद अफसोस है। हमारा देश अब मुल्लाओं के नियंत्रण में है।
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