The Ganges देवभूमि हिमाचल प्रदेश : गिरि गंगा, खीर गंगा, बाण गंगा, हिमरी गंगा, गंगभैरों, ग॑गथ
विनोद भावुक/ कांगड़ा
भारत में The Ganges गंगा नदी की अपार महिमा सर्वत्र व्याप्त है। The Ganges गंगा नदी की बेजोड़ पवित्रता के कारण देश के अन्य भागों की भांति हिमाचल प्रदेश में भी कुछ नदियों, जलतीर्थों और स्थानों के साथ गंगा का नाम जुड़ा है। हिमाचल प्रदेश के इन स्थानों को मां गंगा के समान ही पवित्र तीर्थस्थान माना जाता है और इनके प्रति स्थानीय लोगों में विशेष आस्था है। इन स्थानों पर स्नान को गंगा स्नान के बराबर माना जाता है। क्या आप हिमाचल प्रदेश में स्थित The Ganges गंगा से जुड़े इन स्थानों से परिचित हैं? नहीं हैं और इन स्थानों की तीर्थाटन कर पुण्य कमाना चाहते हैं तो इस आर्टिकल में एचएम आपको उन सभी जलतीर्थों से परिचय करवाते हैं।
गिरि गंगा
गिरि गंगा शिमला जिला की जुबबल तहसील के खड़ा पत्थर के समीप कुपड़ नामक स्थान से निकलती है और सिरमौर जिला की पांवटा तहसील के डाक पत्थर नामक स्थान पर यमुना से जा कर मिलती है। किंबदंती है कि हरिद्वार के एक साधु गंगाजल लाये और यहां आकार रुके। किसी ने कमण्डलु से यहां धरती पर गिरा दिया। जल यहां धरती क साधु के मुख से अकस्मात् शब्द निकले,’ ‘गिरी गंगा’ अर्थात् गंगा जल गया। गंगाजल गिरने से यहां एक जल कुण्ड बना और जलधारा प्रभाहित हुई, जिसे गिरी गंगा कहा गया। उच्चारण और लिखित में अप गिरि गंगा प्रचलित है।
खीर गंगा
कुल्लू जिला की पार्वती घाटी के सुप्रसिद्ध तीर्थस्थल मणिकर्ण से 25 किलोमीटर आगे खीर गंगा तीर्थ है। लोक धारणा है कि शिव, पार्वती और कुमार कार्तिकेय वहा भ्रमण कर रहे थे तो कार्तिकेय ने यहीं पर साधना करने का निश्चय किया। शिव-पावती ने उन्हें सफल मनोरथ आशीर्वाद दिया। माता पार्वती का हृदय ममत्व से भर गया और आवेग में उनके स्तनों से दूध की धारा झर गई और जल स्त्रोत में बादल गई। इस जल में दूध का आभास अब भी होता है। जल स्त्रोत में दूध की मलाई जैसी परत दिखती है। माता पार्वती ने इस जल स्त्रोत को तीर्थ का वरदान दिया है। आधि-व्याधियों से पीड़ित यहां स्नान कर उनसे मुक्ति पाते हैं। जल कुण्ड से 250-300 मीटर की दूरी पर कार्तिकेय स्वामी के साधना प्रवास की साक्षी गुफा आज भी विद्यमान है। संस्कृत में दूध को क्षीर कहते हैं। क्षीर से ही खीर शब्द की व्युत्पत्ति हुई है। पावन तीर्थ के भाव से इसके साथ गंगा शब्द संयुक्त हुआ और यह स्थान खीर गंगा कहलाया।
बाण गंगा
कांगड़ा जिला के धौलाधार पर्वत से निकल कर बनेर नदी चामुण्डा, कांगड़ा, हरिपुर, गुलेर होती हुई नरहाणा पत्तन के पास व्यास नदी में मिलती है। अब यह स्थान |पोंग बांध में समाहित हो गया है। बनेर नदी के लिए एक अन्य नाम बाण गगा भी बहुत प्रचलित है। मान्यता है कि धौलाधार में जिस स्थान पर इस नदी का उद्गम है, वहां यह पानी अर्जन ने धरती पर बाण मार कर निकाला था। इसलिए इसका बाण गंगा नाम प्रचलित हुआ। चामुण्डा और कांगड़ा में लोग इस नदी में तीर्थ स्नान करते हैं। कांगड़ा के ऐतिहासिक दुर्ग के समीप बाण गंगा और मांझी नदी के संगम स्थल पर हरिद्वार की भांति मृतकों की अस्थियां भी प्रवाहित की जाती है।
हिमरी गंगा:
मण्डी ज़िला की पधर तहसील में घोघरधार के बीच में देवता हुरंग नारायण का तीर्थ है हिमरी गंगा। इस तीर्थ का जल हिम जैसा शीतल है, इसीलिए हिमरी गंगा कहलाता है। इस तीर्थ में 20 भादों को स्नान का विशेष पर्व मनाया जाता है, जिसमें लोग दूर-दूर से आकर तीर्थ स्नान करते हैं।
ग॑गथ :
कांगड़ा जिला का गंगथ गांव छौंछ खड़ड के किनारे बसा है। प्राचीन काल में इस स्थान पर लोग मृतकों की अस्थियां प्रवाहित करते थे। अतः इस स्थान को गंगा का महत्त्व प्राप्त था और इसे गंगा स्थल कहा जाता था। गंगा स्थल ही बाद में बदलते-बदलुते गंगथ हो गया है।
गंगभैरों:
कांगड़ा जिला में कांगड़ा- बगली-धर्मशाला सड़क पर गंगभैरों नाम का एक धार्मिक स्थान है। कहा जाता है कि मानव लीला करते हुए एक बार शंकरपार्वती इधर भ्रमण कर रहे थे। किसी बात पर पार्वती से शंकर रूट गए और यहां एक स्थान पर झाड़ियों के बीच तपस्या में बैठ गए। उनकी जटाओं में बास कर रही गंगा ने गाय का रूप धारण किया और वहां चरने-विचरने लगी। शंकर जी को जब इसका ज्ञान हुआ तो उन्होंने भैरव को गाय उनके पास लाने को कहा। जब इस स्थान पर गाय घुटने टेक कर नाले मे पानी पी रही थी। वह ग्वाले के भेष में वहां पहुंच गया। गाय ने भैरव को पहचान लिया और, वह अन्तर्ध्यान होकर शिव की जटाओं में पहुंच गई। गंगा और भैरव की इस घटना से यह स्थान गंगभैरों प्रचलित हुआ। झील किनारे यहां शिव का मंदिर है, जिसमें शिवरात्रि का विशेष आयोजन होता है।