बिशप कॉटन स्कूल शिमला के गलियारों में आज भी किंवदंती की तरह सुनाया जाता है प्रिंसिपल गोल्डस्टीन से जुड़ा हुआ प्रेरक प्रसंग

बिशप कॉटन स्कूल शिमला के गलियारों में आज भी किंवदंती की तरह सुनाया जाता है प्रिंसिपल गोल्डस्टीन से जुड़ा हुआ प्रेरक प्रसंग
विनोद भावुक/ शिमला
मेजर आर. के. वॉन गोल्डस्टीन के जीवन से जुड़ा एक रोचक और प्रेरणादायक प्रसंग आज भी बिशप कॉटन स्कूल शिमला के गलियारों में एक किंवदंती की तरह सुनाया जाता है। बात तब की है, जब मेजर गोल्डस्टीन बिशप कॉटन स्कूल के प्रधानाचार्य थे। एक दिन सुबह की असेंबली के लिए स्कूल की घंटी समय पर नहीं बजी। चपरासी कहीं व्यस्त था और छात्र बेसब्री से प्रार्थना की प्रतीक्षा कर रहे थे।
जब गोल्डस्टीन को इस देरी की जानकारी मिली, तो उन्होंने कुछ कहे बिना खुद घंटी की रस्सी खींचकर उसे बजाया और स्टूडेंट्स से कहा कि जब ज़िम्मेदारी तुम्हारे पास न पहुंचे, तब भी नेतृत्व करना मत भूलो। उस क्षण ने छात्रों पर गहरी छाप छोड़ी। घटना इतनी प्रसिद्ध हुई कि छात्रों को यह बताया जाता रहा कि गोल्डस्टीन सर एक ऐसे प्रधानाचार्य थे, जो ज़रूरत पड़ने पर शिक्षक, सैनिक या सेवक सहित हर भूमिका निभाने को तैयार रहते थे।
सादगी और नेतृत्व शैली की मिसाल
मेजर गोल्डस्टीन बिशप कॉटन स्कूल शिमला में प्रधानाचार्य थे। एक दिन स्कूल की एक विज्ञान प्रयोगशाला में एक छोटा विस्फोट हो गया। धमाके से खिड़की के शीशे टूट गए, और एक छात्र को हल्की चोट भी आई। पूरे स्कूल में अफरातफरी मच गई। शिक्षक चिंतित थे और छात्रों को सजा देने की बात कर रहे थे।
मेजर गोल्डस्टीन ने एक असामान्य कदम उठाते हुए सभी छात्रों और शिक्षकों को सभा हॉल में बुलाया। उन्होंने कहा कि यदि कोई छात्र प्रयोग करते हुए सीखने की कोशिश करता है और उससे कुछ बिगड़ता है, तो उसकी ज़िम्मेदारी उस शिक्षक की है। कोई उम्मीद नहीं कर रहा था कि एक प्रधानाचार्य इतने बड़े मसले की ज़िम्मेदारी स्वयं लेंगे।
वायसरॉय ऑफ इंडिया के संगीत निदेशक के बेटे
शिमला की पहाड़ियों में बसा बिशप कॉटन स्कूल न केवल अपनी स्थापत्य भव्यता और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि स्कूल के इतिहास में मेजर गोल्डस्टीन शिक्षा, अनुशासन और प्रेरणा के पर्याय के तौर पर दर्ज हैं। उनका जन्म शिमला के एक ऐसे परिवार में हुआ था, जिसका रिश्ता भारत और ब्रिटिश शासन की सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ा था।
मेजर गोल्डस्टीन के पूर्वज फेलिक्स कार्ल वॉन गोल्डस्टीन एक जर्मन कुलीन थे। वे 1857 से पहले ही भारत आ गए थे और वायसरॉय ऑफ इंडिया के संगीत निदेशक बने। शिमला में उस परिवार की बेनमोर और वाइल्ड फ्लावर हॉल जैसी संपातियां थीं।
ब्रिटिश-भारतीय सेना के मेजर
बिशप कॉटन स्कूल शिमला में पढ़ाई के दौरान गोल्डस्टीन की नेतृत्व क्षमता सामने आई। 1927 में वे इबेटसन हाउस के हाउस कैप्टन बने। उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से की और वहां हॉक्स क्लब के सदस्य बने, जो उस समय खेल और बुद्धिमत्ता का प्रतीक माना जाता था।
गोल्डस्टीन ब्रिटिश-भारतीय सेना में मेजर बने। ब्रिटिश-भारतीय सेना में मेजर के पद पर सेवा करते हुए, उन्हें युद्ध सेवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें ‘मोस्ट एक्सीलेंट ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर’ की सदस्यता भी प्रदान की गई, लेकिन उनका असली जुनून तो शिक्षा में था।
जिस स्कूल में पढे, उसी के प्रिंसिपल बने
1930 के दशक में मेजर गोल्डस्टीन बिशप कॉटन स्कूल में शिक्षक नियुक्त हुए। कुछ समय बाद वे लाहौर के एचिसन कॉलेज में भी पढ़ाने गए। फिर 1963 में वह ऐतिहासिक क्षण आया, जब वे बिशप कॉटन स्कूल के प्रधानाचार्य बने। वे इस स्कूल के एकमात्र ऐसे पूर्व छात्र थे, जिन्हें अपने स्कूल में प्रधानाचार्य बनने का गौरव मिला।
उनके कार्यकाल के दौरान 1972 में पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो ने इस स्कूल का दौरा किया था।
1978 में उनके निधन के साथ ही वॉन गोल्डस्टीन परिवार का शिमला से शताब्दियों पुराना रिश्ता भी खत्म हो गया, लेकिन उनकी शिक्षा और सेवा की विरासत आज भी बिशप कॉटन स्कूल की दीवारों में गूंजती है। उनकी स्मृति में स्कूल में इंटर-स्कूल क्रिकेट टूर्नामेंट आयोजित किया जाता है।
हिमाचल और देश-दुनिया की अपडेट के लिए join करें हिमाचल बिज़नेस
https://himachalbusiness.com/when-british-veterinarian-william-moorcraft-was-attacked-by-bees-and-the-villagers-of-sirmaur-state-saved-his-life/