ब्रिटिश वैज्ञानिक विलियम जेम्सन का चमत्कार, दुनिया को दिया ‘कांगड़ा’ चाय के स्वाद का उपहार

ब्रिटिश वैज्ञानिक विलियम जेम्सन का चमत्कार, दुनिया को दिया ‘कांगड़ा’ चाय के स्वाद का उपहार
विनोद भावुक/ धर्मशाला
कांगड़ा चाय आज जीआई टैग प्राप्त विशेष उत्पाद है। कांगड़ा चाय की प्याली में स्कॉटिश चिकित्सक एवं वनस्पतिशास्त्री डॉ. विलियम जेम्सन की दूरदर्शिता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और भारत से आत्मिक जुड़ाव आज भी महसूस किया जा सकता है। डॉ. जेम्सन कांगड़ा चाय के जन्मदाता थे। 19वीं सदी में जब भारत ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था, तब इस स्कॉटिश डॉक्टर ने कांगड़ा जनपद की मिट्टी में चाय का वह बीज बोया, जिसकी खुशबू आज भी दुनिया भर में महसूस की जाती है।
साल 1838 में जेम्सन ने भारतीय चिकित्सा सेवा में बंगाल में सेवा शुरू की। वहां उन्होंने एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के क्यूरेटर के रूप में काम किया। बाद में वे सहारनपुर वनस्पति उद्यान के अधीक्षक बने। यहीं से उनकी चाय को लेकर वैज्ञानिक खोज और जुनून की शुरुआत हुई। साल 1849 में अंग्रेज़ों ने कांगड़ा घाटी की ओर रुख किया। डॉ. जेम्सन ने पालमपुर के पास होलटा में चाय की खेती शुरू की। उन्होंने ही चीन से चाय का बीज, उपकरण और प्रशिक्षकों को मंगवाने की सिफारिश की थी।
लंदन और एम्स्टर्डम तक हुई मशहूर
1852 में लिखी अपनी पुस्तक ‘Suggestions for the Importation of Tea Makers, Implements and Seeds from China में डॉ. जेम्सन ने कांगड़ा में चाय की खेती की शुरुआत का विस्तार से उल्लेख किया है। उनकी पुस्तक में सुझाव था कि भारत में चाय की खेती तभी सफल हो सकती है, जब चीन से सीधे विशेषज्ञों को बुलाया जाए। चाय के उत्पादन और प्रसंस्करण की पारंपरिक तकनीकें चीन से सीखी जाएं। उन्होंने खास तौर पर Camellia sinensis प्रजाति के बीजों का उल्लेख किया।
1852 के तुरंत बाद, कांगड़ा घाटी में चीन से मंगाए गए बीजों की बुवाई शुरू की गई। पालमपुर और बैजनाथ के इलाकों में चीनी प्रशिक्षकों की मदद से बागानों की संरचना की गई। चीन से आए बीज, उपकरण और विशेषज्ञता ने भारत की कांगड़ा की धरती पर एक सुगंधित क्रांति को जन्म दिया।
इससे कांगड़ा चाय की वह परंपरा बनी, जो आज दुनिया भर में मशहूर है। उनकी दूरदर्शिता और वैज्ञानिक सोच के चलते कांगड़ा चाय जल्द ही लंदन और एम्स्टर्डम जैसे शहरों में बहुत मशहूर हो गई।
हिमालयी क्षेत्र में चाय संस्कृति के जनक
विलियम जेम्सन का जन्म 1815 में स्कॉटलैंड के लीथ शहर में हुआ था। वे एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक परिवार से संबंध रखते थे। विलियम ने एडिनबरा विश्वविद्यालय से मेडिकल की पढ़ाई की, लेकिन उनका झुकाव जल्द ही वनस्पति विज्ञान की ओर हो गया। 1863 में उन्हें रॉयल सोसायटी ऑफ एडिनबरा का फेलो चुना गया। 1875 में वे भारत के डिप्टी सर्जन जनरल बने और उनके योगदान के लिए उन्हें CIE (Companion of the Order of the Indian Empire) की उपाधि दी गई।
डॉ. विलियम जेम्सन केवल एक चिकित्सक या वनस्पति वैज्ञानिक नहीं थे, वे हिमालयी क्षेत्र में चाय संस्कृति के जनक थे। पालमपुर और धर्मशाला के चाय बागानों में आज भी उनकी मेहनत की झलक मिलती है। भारत की धरती से गहरे जुड़ाव के कारण वे यहीं के हो कर रह गए। उन्होंने 18 मार्च 1882 को देहरादून में अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु एक युग अंत था, लेकिन उन्होंने हिमालय की घाटियों में जो चाय की खुशबू बिखेरी थी, उसके साथ वे आज भी जीवित हैं।
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