कहानी आयरलैंड की नोरा रिचर्ड्स की जिसमें लंदन में भारतीयों का मज़ाक उड़ाने पर अंग्रेजों का किया था विरोध, कांगड़ा के अन्द्रेटा गांव से जगाई थी क्रांति की अलख

कहानी आयरलैंड की नोरा रिचर्ड्स की जिसमें लंदन में भारतीयों का मज़ाक उड़ाने पर अंग्रेजों का किया था विरोध, कांगड़ा के अन्द्रेटा गांव से जगाई थी क्रांति की अलख
चमेली निवास के बाहर लगी हुई पट्टिका पर क्यों अंकित है. ‘थके हुए दिल को आराम दो, तुम्हारा काम पूरा हो गया’
विनोद भावुक/ पालमपुर
अंद्रेटा के चमेली निवास के बाहर लगी हुई पट्टिका पर अंकित है. ‘थके हुए दिल आराम दो, तुम्हारा काम पूरा हो गया है।’ स्लेट की छत वाले इस मिट्टी के घर के बाहर छोटा सा ओपन एयर थियेटर हैं, जो किसी जमाने में नाट्य प्रस्तुतियों का एक बहुत बड़ा केंद्र हुआ करता था। यह पंजाबी थियेटर की ‘दादी’ कही जाने वाली उस नोरा रिचर्ड्स की ऐतिहासिक धरोहर है, जो पंजाब और पंजाबी थियेटर के प्रति प्यार के चलते अपनी मातृभूमि आयरलैंड को छोड़ कर सालों यहां साधनारत रहीं। युवा पीढ़ी के कम ही लोगों को पता होगा कि लंदन के थियेटर में प्रदर्शित एक डॉक्यूमेंट्री ‘थ्रू रोमांटिक इंडिया’ में भारतीयों के उपहासपूर्ण चित्रण का विरोध करने पर आयरलैंड में नोरा रिचर्ड्स पर मानहानि का मुकद्दमा किया गया और एक महीने तक जेल में रखा गया था। जेल से रिहा होने के बाद भारत आने के लिए पैसे जुटाने के लिए उन्होंने घरेलू सहायिका की नौकरी की थी।
तंबू में रहना, पराल के गद्दे पर सोना
1924 में नोरा ब्रिटिश मित्र श्रीमती पार्कर की तरफ से उपहार में मिले घोड़े पर सवार होकर अद्रेटा पहुंची। अद्रेटा के अपने शुरुआती दिनों में नोरा ने कई कठिनाइयों का सामना किया। तब उनके जीवन में एक तंबू और पराल के गद्दे पर सोना और किफायती भोजन करना शामिल था। बाद में अंद्रेटा की इसी 15 एकड़ जमीन पर पंजाबी रंगमंच एक नए अवतार में पैदा हुआ था। पंजाबी रंगमंच में जान फूकने की बुनियाद नोरा काफी समय पहले 1914 में लाहौर में पंजाबी नाटक ‘दुल्हन’ और ‘दीने दी बारात’ का मंचन करके डाल चुकी थीं।
आगंतुकों में पृथ्वीराज कपूर और बलराज साहनी
अंद्रेटा के ओपन एयर थियेटर में हर साल मार्च में उत्सव का माहौल रहता था। नोरा अपने नाटकों के पात्रों के रूप में स्थानीय कलाकारों का चयन करती थीं। नोरा निर्देशित नाटक ‘सुहाग’ और ‘पुत्त घर आया’ के शानदार प्रदर्शन ने उन्हें स्थानीय लोगों का प्रिय बना दिया। इन नाटकों में ग्रामीण जीवन का यथार्थवादी चित्रण किया गया था। यहीं से ईश्वर चंद नंदा, डॉ. हरचरण सिंह, बलवंत गार्गी और गुरचरण सिंह जैसे पंजाबी नाटक के कई प्रसिद्ध नाम सामने आए। भारतीय सिनेमा के दिग्गज पृथ्वीराज कपूर, बलराज साहनी और बलवंत गार्गी अन्द्रेटा के नियमित आगंतुक बन गए थे।
पंजाबी नाटकों का नया अवतार
नोरा की शादी फिलिप अर्नेस्ट रिचर्ड्स से हुई थी, जो लाहौर के दयाल सिंह कॉलेज में अंग्रेजी साहित्य पढ़ते थे। नोरा की थियोसोफी में रूचि थी और वह डॉ. एनी बेसेंट के थियोसोफिकल आंदोलन और होमरूल आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थीं। वे पति की मृत्यु पर इंग्लैंड लौट गईं पर 1924 में भारत वापस आ गईं। नोरा रिचर्ड्स ने अपने जीवन के 60 वर्ष पंजाब की संस्कृति को समृद्ध करने के लिए समर्पित कर दिए। 1970 में, पंजाबी नाटक में उनके योगदान के लिए, पंजाबी विश्वविद्याल पटियाला ने उन्हें डीलिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया।
दिन में काम, रात को लेखन
मूर्तिकार व चित्रकार भाबेश चंद्र सान्याल ने अपनी आत्मकथा में नोरा रिचर्ड्स के बारे में विस्तार से चर्चा की है। वे लिखते हैं, ‘वह घर में बने चूड़ीदार खादी कुर्ते में हाथ में खुरपा लेकर मेरा स्वागत करती थी। उसके सफेद बाल घूंघट से ढके होते थे, जिसके ऊपर वह टोपी पहनती थी। कमर के चारों ओर एक सूती डोरी में एक सीटी और एक थैली बंधी होती थी, जिसमें उसका चश्मा, चाबियों का गुच्छा, कलम और पेंसिल, राइटिंग पैड और एक घड़ी होती थी। वह अपना साहित्यिक कार्य, पत्र लेखन और पढ़ने का काम रात को करती थीं। तीन मार्च 1971 नोरा ने यहीं पर दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी दिली इच्छा के अनुसार हिन्दू रीति रिवाज से उनका अंतिम संस्कार किया गया।
हिमाचल और देश-दुनिया की अपडेट के लिए join करें हिमाचल बिज़नेस
https://himachalbusiness.com/treasurer-uma-thakur-nadyak-engaged-in-the-preservation-of-himachali-pahari-language-and-folk-literature-from-the-platform-of-himvani/