चंद्रभागा के किनारे मिला दुनिया को पानी के औषधीय तत्वों का ज्ञान, पुनर्वसु आत्रेय ने लाहौल में किए चिकित्सीय प्रयोग

चंद्रभागा के किनारे मिला दुनिया को पानी के औषधीय तत्वों का ज्ञान, पुनर्वसु आत्रेय ने लाहौल में किए चिकित्सीय प्रयोग
विनोद भावुक / कुल्ल
मानव सभ्यता का विकास सदियों से नदियों के किनारे होता आया है। मानव सभ्यता ने जब स्वस्थ जीवन का महत्व जाना तो नदियों किनारे फली- फूली वनस्पतियों में कई औषधीय गुणों की खोज हुई। हिमाचल प्रदेश की चंद्रभागा नदी जिसे वैदिक काल में अक्सनी के नाम से जाना जाता था, उसके किनारे मिला प्राचीन औषधीय रहस्य आज भी दुनिया भर के चिकित्सा विज्ञान के लिए उपयोगी साबित हो रहा है।
कृष्ण मुरारी श्रीवास्तव अपनी पुस्तक ‘भारत के वैज्ञानिक’ में लिखते हैं कि वैदिककाल में आयुर्वेदाचार्य पुनर्वसु आत्रेय ने चंद्रभागा के किनारे पानी के औषधीय गुणों का ज्ञान दुनिया को करवाया और गर्म तथा ठंडे पानी के प्रभाव का भेद भी स्पष्ट किया। उन्होंने ही बात, पित्त और कफ की वैज्ञानिक विवेचना की।
चिकित्सा विज्ञान का वृत शब्दकोश आत्रेय संहिता
पुनर्वसु आत्रेय की लिखी आत्रेय संहिता को चिकित्सा विज्ञान का शब्दकोश कहा जाता है। पुनर्वसु आत्रेय ने रोगों के लक्षणों का ज्ञान करवाया और श्वास व नाड़ी की गति पर प्रकाश डाला। उन्होंने ही रोगों को साध्य और असाध्य की श्रेणियों में बांटा। उन्होंने हवा, मिट्टी और मौसम की विभिन्न परिस्थितियों में शरीर पर होने वाले प्रभावों का पता लगाया।
पुनर्वसु आत्रेय ने खट्टे, मीठे, तिक्त और कसैले स्वाद के शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों को स्पष्ट किया। पुनर्वसु आत्रेय ने दूध, गन्ने और मदिराओं के गुण- अवगुण ज्ञान किए। उन्होंने पशु- पक्षियों के मांस के पौष्टिक तत्वों को जान कर उनकी सेवन विधि बताई।
चिकित्सा शास्त्र के जनक
माना जाता है कि आत्रेय ही पहले वैज्ञानिक थे, जिन्होंने औषध विज्ञान को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया। उनका समय आठवीं सदी ईसा पूर्व माना जाता है। उन्होंने हिमालय क्षेत्र, खासकर चंद्रभागा नदी के आसपास के प्राकृतिक संसाधनों और जल की चिकित्सा क्षमता को पहचाना और भारत वर्ष में आयुर्वेद के ज्ञान का प्रचार किया।
पुनर्वसु आत्रेय को चिकित्सा शास्त्र का जनक कहा जाता उन्होंने रोगों का उपचार जल, वनस्पतियों और पर्यावरण से जोड़कर बताया। पुनर्वसु आत्रेय महान विद्वान और योग्य शिक्षक थे, जिनके कई शिष्य चिकित्सा जगत में बहुत मशहूर हुये।
श्रद्धा और सम्मान के पात्र पुनर्वसु आत्रेय
पश्चिमी चिकित्सा पद्धति में यूनान के हिप्पोक्रेट्स को चिकित्सा का भीष्म पितामाह कहा जाता है। पुनर्वसु आत्रेय की तुलना हिप्पोक्रेट्स से की जाती है। दोनों चिकित्सकों ने अपने- अपने देश में व्याप्त अंधविश्वासों को दूर किया। कृष्ण मुरारी श्रीवास्तव अपनी पुस्तक ‘भारत के वैज्ञानिक’ में लिखते हैं कि पुनर्वसु आत्रेय ने हिप्पोक्रेट्स से कहीं पहले भारत में चिकित्सा विज्ञान की नींव रख चुके थे।
विचित्र बात है कि अंधविश्वासों का खंडन करने वाले हिप्पोक्रेट्स कालांतर में पश्चिमी चिकित्सा जगत में खुद आडंबर का प्रतीक बनकर रह गए। दूसरी ओर भारत में अश्विनी कुमार, धन्वन्तरी और भारद्वाज के समान ही पुनर्वसु आत्रेय श्रद्धा और सम्मान के पात्र माने जाते हैं।
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