एक दौर वह भी था जब कांगड़ा जनपद में किसी जज के बराबर थी सरपंच की पावर

एक दौर वह भी था जब कांगड़ा जनपद में किसी जज के बराबर थी सरपंच की पावर
एक दौर वह भी था जब कांगड़ा जनपद में किसी जज के बराबर थी सरपंच की पावर
विनोद भावुक/ धर्मशाला
एक दौर वह भी था जब कांगड़ा जनपद में सरपंच की पावर किसी जज के बराबर होती थी। ब्रिटिश राज से पहले कांगड़ा जनपद में सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह अनुशासित थी। उस दौर में पंचायतों की भूमिका सर्वोपरि थी और पंचायत स्तरीय न्याय प्रणाली बेहद मजबूत थी। उस व्यवस्था में सरपंच की हैसियत किसी जज से कम नहीं होती थी। पंचायतें विवाह विवाद, ज़मीन बंटवारे और पशु चोरी जैसे अपराधों के मामलों में न्यायिक अधिकार रखती थीं। पंचायतों का निर्णय सामाजिक रूप से बाध्यकारी होता था।
ब्रिटिश भारतीय सेवा के अंग्रेज अधिकारी लियोनार्ड मिडलटन की लिखी पुस्तक ‘कस्टमरी लॉ ऑफ कांगड़ा डिस्ट्रिक्ट’ कांगड़ा जनपद की एक सदी पुरानी सामाजिक व्यवस्था का आइना है। लियोनार्ड मिडलटन वे ब्रिटिश अधिकारी थे, जिन्होंने कांगड़ा की परंपराओं को क़ानूनी दस्तावेज का रूप दिया।
ब्रिटिश कानून का आधार बनीं स्थानीय परम्पराएं
लियोनार्ड मिडलटन लिखी गई पुस्तक ‘कस्टमरी लॉ ऑफ कांगड़ा डिस्ट्रिक्ट’ ब्रिटिश काल में कांगड़ा ज़िले में प्रचलित रीतियों, परंपराओं, सामाजिक और न्याय व्यवस्था पर आधारित है।
लियोनार्ड मिडलटन ने 19वीं शताब्दी के अंत में कांगड़ा की स्थानीय जातीय परम्पराओं, विवाह, भूमि विवाद, उत्तराधिकार, पंचायत, और सामाजिक मर्यादाओं से जुड़ी परम्पराओं का दस्तावेजीकरण किया था।
यह वह समय था जब अंग्रेज़ कांगड़ा जनपद के स्थानीय समाज की संरचना को समझने और नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे थे। ब्रिटिश प्रशासन ने जनपद के स्थानीय रिवाजों को समझकर ‘कस्टमरी लॉ’ के रूप में आधिकारिक बनाया।
उत्तराधिकार का कानून और विवाह प्रथा
लियोनार्ड मिडलटन ब्रिटिश भारतीय सिविल सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी थे। उनकी पुस्तक में यह विशेष रूप से दर्ज है कि कांगड़ा के कुछ स्वर्ण समुदायों में भूमि उत्तराधिकार का नियम पुत्रों तक सीमित था। परिवार में कोई पुरुष वारिस न होने की सूरत में महिलाओं को पारिवारिक संपत्ति का सीमित अधिकार दिया जाता था।
कांगड़ा जनपद में विवाह एक सामाजिक अनुबंध था, जिसमें समुदाय की सहमति, जातिगत मर्यादाएं, और दहेज की परंपराएं प्रमुख थीं। विवाह अक्सर पूर्व निर्धारित उम्र में होते थे और पुनर्विवाह (विधवा विवाह) कुछ ही जातियों में मान्य था।
पहाड़ी समाज की जमीनी परंपराओं का चित्रण
ब्रिटिश सरकार ने लियोनार्ड मिडलटन को विशेष रूप से कांगड़ा ज़िले की रिक्वायर्ड सेटलमेंट प्रक्रिया और लैंड रिकॉर्डिंग के लिए नियुक्त किया गया था। ज़मीन का विभाजन, कराधान, रिकॉर्ड-कीपिंग और स्थानीय रीतियों का दस्तावेजीकरण उनके काम में शामिल था। उनका यह पद उन्हें स्थानीय सामाजिक-आर्थिक संरचना को समझने और ब्रिटिश प्रशासन की नीतियों के साथ तालमेल बिठाने का अधिकार देता था।
इसी प्रोजेक्ट के दौरान उन्होंने ‘कस्टमरी लॉ ऑफ कांगड़ा डिस्ट्रिक्ट’ पुस्तक लिखी, जिसमें कांगड़ा जैसी पहाड़ी और विविध समाज की जमीनी परंपराओं को चित्रित किया।
भूमि वितरण और कर निर्धारण का आधार बनी किताब
लियोनार्ड मिडलटन ही वे ब्रिटिश अधिकारी थे, जिन्होंने कांगड़ा जनपद की स्थानीय रीतियों को ब्रिटिश प्रशासन से ‘कस्टमरी लॉ’ की मान्यता दिलावाई, जिसके बाद की ब्रिटिश शासन में उन्हें आधिकारिक और कानूनी रूप प्राप्त हुआ। ब्रिटिश राज में लियोनार्ड मिडलटन की यह पुस्तक कांगड़ा जनपद में ज़मीन के पुनर्वितरण और कर प्रणाली का महत्वपूर्ण आधार बनी।
‘कस्टमरी लॉ ऑफ कांगड़ा डिस्ट्रिक्ट’ पुस्तक इतिहास, विधि व समाजशास्त्र के शोधकर्ताओं के लिए मूलभूत स्रोत है और जनपद के सामाजिक-आर्थिक इतिहास को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण दस्तावेज हैं। यह पंचायतों को न्यायिक शक्तियां और अधिकार देकर घर- द्वार पर सुलभ और सस्ता न्याय उपलब्ध करवाने की अवधारणा का सबूत है।
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Jyoti maurya

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