इस ग्रांई देया लंबरा हो इन्हां छोरूआं जो लेयां समझाई कि बत्ता जांदे सीटी मारदे’ इस अमर गीत की गायिका थीं शांति विष्ठ

इस ग्रांई देया लंबरा हो इन्हां छोरूआं जो लेयां समझाई कि बत्ता जांदे सीटी मारदे’ इस अमर गीत की गायिका थीं शांति विष्ठ
इस ग्रांई देया लंबरा हो इन्हां छोरूआं जो लेयां समझाई कि बत्ता जांदे सीटी मारदे’ इस अमर गीत की गायिका थीं शांति विष्ठ
वीरेंद्र शर्मा वीर/ धर्मशाला
यह बात सच है कि हर इंसान के अंदर कोई न कोई हुनर छुपा रहता है। जो भी अपने हुनर को पहचान कर जिद और जुनून से उसे संवार लेता है, वह जिंदगी में कुछ खास कर गुजरता है। कांगड़ा जिला मुख्यालय धर्मशाला सा सटे दाड़ी कस्बे की शांति बिष्ट उन लोगों में शुमार रहीं, जिनको इस बात का इल्म था कि उनकी आवाज में बहुत मिठास है।
नियमित रियाज से अपनी इसी मखमली आवाज के जरिये ‘इस ग्रांई देया लंबरा हो इन्हां छोरूआं जो लेयां समझाई कि बत्ता जांदे सीटी मारदे’ को कुछ इस अंदाज में गाया कि इस गीत की रिकॉर्डिंग को आधी सदी बीत जाने और गायिका के परमधाम की यात्रा पर निकाल जाने के बावजूद आज भी यह गीत पहाड़ के ताज़ा हवा के झोंके जैसा है।
शिमला से क्योंथल जाते समय बस में लिखे दो अंतरे
शांति विष्ट के पति जयदेव किरण म्हाचली पहाड़ी में एक गीत रच रहे थे। गीत के बोल थे, ‘इस ग्रांई देया लंबरा हो, इन्हा छोरूआ जो लेया समझाई कि बत्ता जादे सीटी मारदे।’ इसकी चर्चा उन्होंने शांति से की।
इस दंपति ने मिलकर गाना लिखा। शांति ने इस इस गीत के दो अंतरे शिमला से क्योंथल स्कूल के लिए जाते समय बस में लिखे। इस गीत को शांति विष्ट ने बड़ी रूह से गाया। यह गीत शांति विष्ट के स्टारडम का गवाह बन गया।
राजस्थान, गुजरात तक हिट हुआ गीत
शांति विष्ट के गाये ‘इस ग्रांई देया लंबरा हो… गीत को हिमाचल प्रदेश से बाहर जम्मू-कश्मीर, गुजरात और राजस्थान तक सराहा गया। रेडियो पर प्रशासण के अलावा दूरदर्शन पर भी इस गीत का प्रसारण हुआ। शांति विष्ठ साल 1976 में जालंधर दूरदर्शन पर हिमाचली लोकगीत संगीत प्रस्तुत करने वाली पहली हिमाचली महिला कलाकार बनी। इसके बाद संगीत के सफर में उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
बचपन में सीख लिया तबला और ढोलक बजाना
शांति का जन्म धर्मशाला के साथ लगते दाड़ी गाँव में लीलावती और उमेद सिंह बसमेत के घर 10 अक्तूबर 1946 को हुआ। शांति को बचपन से गीत- संगीत और नृत्य में आनंद आता था और नन्ही सी उम्र में स्कूल प्रतियोगिताओं में लोकगीत गाने और लोक नृत्य का सार्वजनिक प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था।
इसी उम्र में तबला और ढोलक बजाणा भी सीख लिया। उस दौर में मनोरंज का साधन लोकसंगीत ही हुआ करता था। जहां भी लेडीज संगीत होता, ढोलक बजाने का जिम्मा शांति का ही होता।
पहले स्टेटहुड डे पर शिमला में धमाल
हिमाचल निर्माता यशवंत सिंह परमार के मुख्यमंत्री काल में हिमाचल प्रदेश को केंद्र सरकार से स्टेटहुड का तोहफा मिला। कांगड़ा जनपद की लोक संस्कृति को पहली बार राजधानी शिमला में प्रदर्शित करने का यह पहला बड़ा अवसर था। सांस्कृतिक दल के कलाकार चुने गए तो शांति का नाम भी उनमें बतौर टीम लीडर शामिल था।
शांति के परिजनों ने किशोरी शांति को शिमला भेजने से दो टूक इंकार कर दिया। इस पर आयोजनों ने उनके परिजनों से विशेष अनुरोध किया, तब जाकर कहीं बात बनी। शिमला में कार्यक्रम को खूब सराहना मिली और इसी के साथ शांति के लोकगीत-संगीत का सफर शुरू हो गया।
संगीत की शिक्षा, आकाशवाणी में ऑडीशन
शांति ने धर्मशाला से स्नातक करने के बाद जेबीटी और एल टी की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान उनकी शादी मशहूर लेखक एवं गीतकार जयदेव विष्ट से हो गई। शादी के बाद वे अपने पति के साथ शिमला चली गई। मिडल बाजार के विद्या मंदिर में मसहूर संगीतज्ञ डॉ. भीमदत्त काले से विधिवत संगीत की शिक्षा ली और आकाशवाणी शिमला में ऑडीशन दिया।
साल 1974 में भाषा अध्यापक के तौर पर क्योंथल में उनकी पहली नियुक्ति हुई। नौकरी के बाद ही सही मायने में उनकी गायिकी में निखार आया। इसके बाद लोक संगीत में शांति विष्ट एक ध्रुव तारे की तरह चमकी।
एनसीईआरटी की रिसोर्स पर्सन
शांति विष्ट के पति जयदेव किरण ने हमेशा उन्हें प्रेरित और प्रोत्साहित किया। शांति विष्ट ने अपने संगीत करियर में 300 से ज्यादा हिमाचली पहाड़ी गीत गाये। शांति विष्ट को एनसीईआरटी का हिमाचल प्रदेश के लिए रिसोर्स पर्सन चुना गया।
इसके तहत उन्होंने प्रदेश के करीब पचास हजार बच्चों और दस हजार शिक्षकों को ट्रेनिंग दी। उस दौरान हर साल बाल दिवस पर शिमला के लेडीज़ पार्क में प्रोग्राम होता था, जिसमें वे बच्चों को हिमाचली संस्कृति, लोक गीत और लोकनृत्य सिखाते थे।
दिल्ली के लाल किले से विशेष समूहगान
शांति विष्ठ ने नवंबर 1986 में विशाल हिमाचल दिवस पर कांगड़ा लोकदल का संचालन किया। उन्हें साल 1987 में आजादी की चालीसवीं वर्षगांठ के अवसर पर लाल किले से ध्वजारोहण के मौके पर विशेष समूह गान में हिमाचल प्रदेश के सांस्कृतिक दल में शामिल होने का मौका मिला।
भाषा एवं संस्कृति विभाग ने शांति विष्ट के गीतों का एल पी रिकार्ड बनाया। आकाशवाणी शिमला की बदौलत रेडियो कश्मीर के लिए गोजरी गीत रिकॉर्ड किए। शांति विष्ट ने डोगरी, नेपाली और पंजाबी लोकगीतों को भी अपनी आवाज दी। उन्होंने श्रीनगर के पुंछ में सेना के लिए आयोजित संगीत कार्यक्रम में भाग लिया।
वैष्णों माता दा हिट भजन
शांति विष्ठ वैष्णो माता के दर्शन के लिए कटड़ा से माता के भवन तक पैदल सफर कर रहे थे, उसी दौरान माता का भजन तैयार हो गेया। अपने लिखे इस भजन को उन्होंने खुद आवाज दी और यह भजन बहुत मशहूर हुआ। ‘माता तेरे मंदरा बजदे ढोल नगाड़े।‘
कभी वैष्णो माता जाने वाले माता के भक्तों की जुबान पर होता था। कभी यह भजन माता के टॉप के भजनों में शुमार होता था और महामाई में आस्था रखने वाले रोज इसे गुनगुनाते थे।
स्कूल का सांस्कृतिक दल, गुजरात में कैंप
शांति विष्ठ ने पंजाब बहुत से लोक कलाकारों के साथ काम किया। जयदेव किरण का लिखा और शांति विष्ठ का गाया पहाड़ी गीत ‘लाड़ा भूखा आया मैं खिचड़ी पकावा’ भी बहुत मशहूर हुआ। जब शांति विष्ठ का तबादला क्योंथल से पोर्टमोर स्कूल के लिए हुआ तो सहयोगी शिक्षकों के अनुरोध पर उन्होंने एक सांस्कृतिक दल का गठन किया।
इस सांस्कृतिक दल ने बहुत से स्कूली बच्चों को लोक संगीत और नृत्य की शिक्षा दी और गुजरात के राजकोट में एक महीने का कैंप लगाया।
गायिकी की ओट में रही चित्रकारी
शांति विष्ठ ने गजेंद्र चौहान के नाटक ‘इश्क नहीं आसां’ के लिए गीत लिखे। पढ़ने-लिखणे, गाणे- बजाने और नृत्य में निपुण शांति विष्ट के मन को असली शांति रंगों से खेल कर मिलती थी। उनको पेंटिंग्स बनाने का बड़ा शौक था। उन्होंन कई पेंटिंग्स बनाई, लेकिन लोकगायिका ते तौर पर इतना बड़ा रुतबा था कि उनकी चित्रकारी का जिक्र बहुत ही कम हुआ।
सामाजिक संस्था प्रभा भारती कला संगम ने शांति विष्ठ को लोक संगीत के लिए दिये योगदान के लिए सम्मानित करते हुए उन्हें हिमाचल स्वर कोकिला का खिताब दिया।
पहाड़ के लोक जीवन के लिए अनमोल अमानत
जीवन की संध्या में अपने दौर की मशहूर लोकगायिका को बीमारियों ने घेर लिया। 2016 के आस- पास उन्हें पक्षघात का अटेक हुआ और शरीर के एक तरफ के अंगों पर गहरा प्रभाव पड़ा। परिजनों ने उनके उपचार पर पानी की तरह पैसा बहाया, लेकिन जीवन के आखिरी दिनों में पूरे एक साल के लिए लोगों को मोह लेने वाली आवाज पूरी तरह से खामोश हो गई थी।
9 अगस्त 2020 की सुबह गीतकार, पेंटर, लोक गायिक और लोक नर्तकी शांति विष्ठ अपने टूटीकंडी वाले घर में स्वर्ग सिधार गईं। वह अपने पीछे पहाड़ के लोक जीवन के लिए छोड़ गई तीन सौ से ज्यादा की एक अनमोल विरासत।
हिमाचल और देश-दुनिया की अपडेट के लिए join करें हिमाचल बिज़नेस
https://himachalbusiness.com/shanta-kumar-the-pioneer-of-giving-a-new-direction-to-development-daughter-of-a-staunch-congressman-has-written-a-book-on-sanghi-shanta-kumar/

Jyoti maurya

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *